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मजदूरों की राष्ट्रव्यापी हड़तालश्रम कानून लागू करो, बंद करो ठेकेदारी- जितेन्द्र तिवारी

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Feb 23, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 23 Feb 2013 14:55:29

थ् दलगत सीमा से ऊपर उठकर सभी मजदूर संगठन एक हुए थ् राष्ट्रवादी भारतीय मजदूर संघ के साथ वामपंथी मजदूर संगठन और कांग्रेस का मजदूर संगठन भी हड़ताल में शामिल थ् सभी 11 मान्यता प्राप्त और सैकड़ों स्वायत्त मजदूर संगठनों का समर्थन थ् 10 करोड़ मजदूर से अधिक रहे हड़ताल पर बैंक, बीमा क्षेत्र, परिवहन, टेलीफोन, डाक व तार, बिजली आदि सभी सेवा सुविधाओं पर व्यापक असर

क्या है प्रमुख मांग?

थ् श्रम कानूनों का सही प्रकार से अनुपालन हो थ् ठेकेदारी प्रथा (कांट्रेक्ट सिस्टम) समाप्त हो थ् सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण बंद हो थ् सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा अनिवार्य हो थ् सामाजिक सुरक्षा के लिए अलग से कोष निर्धारित हो थ् पीएफ की सीलिंग खत्म करो

महंगाई हो या भ्रष्टाचार, बिगड़ती अर्थव्यवस्था हो या उससे उपजती अराजकता-सर्वाधिक पीड़ित होता है वह मजदूर वर्ग, जो अपने हाथों दिन भर की गई मेहनत से कमाई 2 जून की रोटी खाकर भी खुश रहता है। पर जब वह 2 वक्त की रोटी भी नसीब न हो और उसका शोषण भी हो, तो उसका आक्रोश फूट पड़ता है, सड़क पर प्रकट होता है। ऐसा ही कुछ हुआ गत 20 व 21 फरवरी को, जब देश के सभी प्रमुख मजदूर संगठनों के आह्वान पर राष्ट्रव्यापी हड़ताल हुई। यह अनेक वर्षों बाद पहला अवसर था जब दलगत सीमाओं से ऊपर उठकर सभी मजदूर संगठनों ने एक मंच को साझा किया, आम सहमति से राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया और उस हड़ताल को ऐतिहासिक रूप से सफल भी बनाया। नोएडा (उ.प्र.) को छोड़कर देशभर में बंद शांतिपूर्ण रहा।

हड़ताल का आह्वान करने वालों में सभी पंजीकृत व राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त मजदूर संगठन थे। इनमें संख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा संगठन भारतीय मजदूर संघ तो था ही, सत्तारूढ़ कांग्रेस का संगठन इंटक भी था। वामपंथी संगठन एटक, सीटू, ऐक्टू, आल इंडिया यूटीयूसी, यूटीयूसी, टीयूसीसी, एलपीएफ, हिन्द मजदूर संगठन (सोशलिस्ट पार्टी) और सेवा भी हड़ताल में शामिल थे। इनके अलावा सैकड़ों स्वायत्त मजदूर संगठनों ने भी हड़ताल का समर्थन किया।

केन्द्र सरकार मजदूरों के मामलों में किस हद तक लापरवाह और हठी है यह देखने को मिला उसकी हड़ताल रोकने की वार्ता प्रक्रिया में। श्रम मंत्री मल्लिकार्जुन खड्गे से मजदूर संगठनों के अधिकारिक समूह की वार्ता 13 फरवरी को विफल रही तो प्रधानमंत्री की पहल पर मंत्रियों का एक समूह गठित हुआ। इसमें वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम, रक्षामंत्री ए.के. एंटनी, कृषि मंत्री शरद पवार और श्रममंत्री मल्लिकार्जुन खड्गे शामिल थे। पर 18 फरवरी को जब बैठक होनी थी तब चिदम्बरम आए नहीं, एंटनी बीमार हो गए, पवार ने कहा- इस बारे में कुछ जानता नहीं और खड्गे के बस में कुछ था नहीं। लिहाजा हड़ताल हुई। बैंक, बीमा, स्टील, कोल, पोर्ट, परिवहन, बिजली, डाक व तार, बीड़ी निर्माण, निजी क्षेत्र के उद्योग, रेलवे के कुली, जलबोर्ड, आंगनवाड़ी, आशा, मिड-डे-मील आदि-आदि छोटे से लेकर बड़े उपक्रम में काम करने वाले मजदूर हड़ताल पर रहे। यातायात पर भारी असर रहा। उ.प्र. में रोडवेज बसें तो दिल्ली में आटोरिक्शा और टैक्सियां नहीं चलीं। बैंक बंद होने से लेन-देन और व्यापारिक गतिविधियां प्रभावित हुईं। अर्थशास्त्रियों ने हड़ताल से कुल मिलाकर 26 हजार करोड़ रु. का नुकसान बताया। पर मजदूर संगठनों की जायज मांगों के प्रति सत्तारूढ़ केन्द्र सरकार की कान पर जूं तक नहीं रेंगी। उसके प्रवक्ता ने कहा- बेअसर रही हड़ताल। जितेन्द्र तिवारी

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