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संयुक्त परिवार को समर्पित दीपावली विशेषांक पढ़ने को मिला। यह कोई छोटी बात नहीं है कि अभी भी बहुत सारे लोग संयुक्त परिवार में रह रहे हैं। संयुक्त परिवार की अपनी एक अलग विशेषता है। घर का हर सदस्य इस बात से निश्चित रहता है कि उसके पीछे कोई है,जो समय आने पर उसके सुख-दु:ख को बांट लेगा। यह भाव व्यक्ति को शक्ति देता है।
-गणेश कुमार
कंकड़बाग,पटना (बिहार)
ङ्म इस बेमिसाल अंक में कुटुम्ब व्यवस्था पर कई प्रेरक और अच्छी जानकारी मिली। आज एकल परिवार का चलन बढ़ रहा है। एकल परिवार यानी पति,पत्नी और बच्चे। इसके बावजूद पति और पत्नी के रिश्ते इतने खराब हो रहे हैं कि तलाक तक कि नौबत आ रही है। वहीं संयुक्त परिवारों में रहने वाले दम्पतियों में तलाक न के बराबर होता है।
-हरिओम जोशी
चतुर्वेदी नगर,भिण्ड(म.प्र.)
ङ्म संयुक्त परिवार की विशेषताओं को पाठकों तक पहुंचाने के लिए साधुवाद। इसके साथ ही यह भी बताया जाता कि संयुक्त परिवार टूट क्यों रहे हैं तो बहुत अच्छा होता। मेरी नजर में आज संयुक्त परिवार इसलिए भी टूट रहे हैं कि लोग मजबूर हैं। शहरों में तो अधिकांश लोग एक छोटी सी जगह में रहने को मजबूर हैं। ऐसे में संयुक्त परिवार की कल्पना कैसे की जा सकती है?
– हरेन्द्र प्रसाद साह
नया टोला,कटिहार(बिहार)
ङ्म संयुक्त परिवार में बड़े-बुजुगोंर् की छाया हर कष्ट को दूर कर देती है। मैं संयुक्त परिवार का सदस्य हूं। मेरी दो बेटियां और एक बेटा कब बड़े हो गए और शादी होकर परिवार वाले हो गए और मैं नाना जी, दादा जी बन गया पता ही नहीं चला। यह दुर्भाग्यपूर्ण और कष्टदायक है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और स्वछंदता की पराकष्ठा ने कुटुम्ब और परिवार व्यवस्था को भंग कर दिया है।
-मनोहर मंजुल
पिपल्या-बुजुर्ग,पश्चिम निमाड़(म प्र)
ङ्म संयुक्त परिवार को तोड़ने में गलत आर्थिक नीतियों का भी हाथ है। गलत आर्थिक नीतियों की वजह से देश के शहरों का विकास तो हुआ,पर गांवों का बुरा हाल हो गया। परिणाम यह हुआ कि लोग गांव से शहर की ओर पलायन करने लगे। इस कारण भी संयुक्त परिवार टूटा। अच्छा तो यह होता कि शहरों के साथ गांवों के विकास पर भी ध्यान दिया जाता।
-विशाल कुमार
शिवाजी नगर,वडा,थाणे (महाराष्ट्र)
ङ्मआज टी वी चैनलों पर बहुत ही घर-फोड़ू धारावाहिक दिखाए जा रहे हैं। कुछ धारावाहिकों में तो सास को इस तरह दिखाया जा रहा है,मानो वह सास नहीं,जल्लाद है। ऐसे ही किसी धारावाहिक में बहू का चित्रण बहुत ही गलत तरीके से किया जाता है। ऐसे में भला कोई परिवार संयुक्त कैसे रह सकता है? इसके बावजूद जो लोग संयुक्त परिवार में रह रहे हैं वे निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं।
-मनीष कुमार
तिलकामांझी,भागलपुर(बिहार)
ङ्म संयुक्त परिवार के लाभ ही लाभ हैं। जिन बच्चों को अपने बुजुगोंर् के साथ पलने का अवसर मिलता है,उनकी परिवार और समाज के प्रति अलग सोच होती है। यदि परिवार या समाज में कोई सुख-दु:ख होता है तो ऐसे बच्चे उसमें शामिल होकर कुछ करना चाहते हैं,किन्तु केवल अपने माता-पिता के साथ रहकर बढ़ने वाले बच्चों में ऐसी सोच की कमी दिखती है। ऐसे बच्चे किसी समस्या को लेकर अधिक चिन्तित भी होते हैं।
-दयाशंकर मिश्र
लोनी,गाजियाबाद(उ. प्र.)
ङ्म संयुक्त परिवार से व्यक्ति को एक ऐसी ऊर्जा मिलती जिससे वह जीवन में आने वाली समस्याओं को बहुत ही आसानी से पराजित कर देता है। आप यह बात कभी भी आजमा सकते हैं। यदि आप कभी किसी उलझन में पड़ जाते हैं तो जरूर अपने घर के किसी सदस्य को वह उलझन बताएं तो कोई रास्ता निकल जाएगा। किन्तु यह तब होगा जब आपमें परिवार भाव रहेगा।
-हरिहर सिंह चौहान
जंवरीबाग नसिया,इन्दौर(म. प्र.)
नेहरू की गलती
जम्मू-कश्मीर के विलय दिवस के अवसर पर प्रकाशित लेख ह्यकठघरे में नेहरू,हरि सिंह नहींह्ण से कई नई जानकारी मिली। नेहरू की गलतियों से धरती का स्वर्ग कश्मीर आज धधक रहा है। यदि कश्मीर के विलय का काम सरदार पटेल के पास होता तो यकीन मानिए कि कश्मीर की ऐसी हालत आज नहीं होती। सरदार पटेल ने जिन रियासतों का भारत में विलय कराया उनमें किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं है। नेहरू ने केवल कश्मीर का भारत में विलय कराया और जिसका दुष्परिणाम भारत आज तक भुगत रहा है।
-गोपाल
गांधीग्राम,गोड्डा(झारखण्ड)
हर घर में हों शौचालय
बहुत ही दु:ख की बात है कि आज भी हमारे यहां करोड़ों लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं। देश के अधिकांश गांवों के अधिकतर घरों में शौचालय नहीं हैं। इससे सबसे अधिक महिलाओं को परेशानी होती है। सरकार ऐसी कोई योजना बनाए जिससे कि देश के हर घर में शौचालय बने। इस कार्य को बहुत ही प्रमुखता से लेने की जरूरत है।
-विपिन वर्णवाल
प्रतीत नगर,रायवाला,
देहरादून(उत्तराखंड)
लालू और कांग्रेस
चारा घोटाले में लालू यादव का जेल जाना यह बताता है अब कांग्रेस के लिए लालू उपयोगी नहीं रहे। कांग्रेस अपने लिए जिन लोगों को अभी भी उपयोगी मान रही है उनमें मुलायम सिंह यादव,मायावती,नीतीश कुमार आदि प्रमुख हैं। यही कारण है कि मुलायम सिंह के सारे मामले खत्म कर दिए गए। मायावती के मामलों को भी रफा-दफा करने की जुगत चल रही है। अब कांग्रेस बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर डोरे डाल रही है। इसी क्रम में भारत सरकार ने बिहार को कुछ आर्थिक मदद भी दी है। लेकिन चाहें मुलायम हों,मायावती हों या नीतीश यह जान लें कि स्वार्थ सधते ही कांग्रेस इन्हें अपने से दूर कर देगी। लालू की राजनीतिक यात्रा कांग्रेस विरोध से शुरू हुई थी। किन्तु उनकी मजबूरियों ने उन्हें कांग्रेस की गोद में बैठने को विवश कर दिया था।
-रमेश कुमार मिश्र
कांदीपुर,अम्बेदकरनगर(उ. प्र.)
संकट में बेचारे ये लक्ष्मी पुत्र
देश-दुनिया में उद्योगपतियों के लिए यह समय खासा उतार-चढ़ाव का है। संसार के अनेक धनपति इस समय अपनी कम्पनी या अचल सम्पत्ति बेचने को विवश हैं। किंगफिशर के विजय माल्या,यूचर ग्रुप के किशोर बियाणी,स्टील किंग लक्ष्मी मित्तल-ये ऐसे नाम हैं,जो संसार भर के बाजार में जाने जाते हैं। लेकिन हाल के दिनों में इन लोगों को अपने व्यापार में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इस कारण इन्हें अपनी कम्पनियों को बेचने जैसे कठोर निर्णय भी लेने पड़े हैं। बात विजय माल्या से शुरू करते हैं। इनकी कम्पनी किंगफिशर कभी देश की सबसे अहम और एक बड़ी कम्पनी मानी जाती थी। घाटे के कारण 2011 में यह कम्पनी दूसरे नम्बर पर खिसक गई और कर्ज के बोझ तले दबती गई। हालत यह हो गई कि कम्पनी ने विमान खरीदने के लिए जो कर्ज लिया था वह भी देने लायक नहीं रही। अब किंगफिशर की जो स्थिति है ,वह किसी से छुपी नहीं है। कभी उसके बिकने की खबर आती है,तो कभी बंद होने की । इतना ही नहीं माल्या को अपनी एक और कम्पनी यूनाइटेड स्पिरिटस की हिस्सेदारी भी ब्रिटिश कम्पनी को बेचनी पड़ी।
अब बात किशोर बियाणी की। इन्होंने कुछ समय पहले बिग बाजार के रूप में एक नया व्यापार शुरू किया है। किशोर अपने इस व्यवसाय को खुदरा बाजार में एक नई क्रांति मान रहे हैं। पर यह भी सफल रहेगा,यह निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। यूचर ग्रुप खासे कर्ज का भी भागीदार रहा है। कम्पनी अधिक धन नहीं कम पा रही थी इस कारण कर्जा चुकाना भी मुश्किल हो रहा था। इस स्थिति से उबरने के लिए किशोर को उस समय लाभ में चल रहे पैंटालून का व्यवसाय 1600 करोड़ रु में आदित्य बिरला नुवो को बेचना पड़ा था। इस साल भी किशोर को लाइफ इंश्योरेंस ज्वाइंट वेंचर को अपनी 22 ़ 5 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचनी पड़ी।
इसके बाद दुनिया में स्टील किंग के नाम से विख्यात लक्ष्मी मित्तल की भी बात हो जाए। वे भी कर्ज के चलते इस समय संकट से घिरे हैं। 90 हजार करोड़ रु की सम्पत्ति के मालिक लक्ष्मी मित्तल आठ साल तक ब्रिटेन के सबसे अमीर व्यक्ति रहे हैं। 2006 में आर्सेलर खरीदकर ये दुनिया के सबसे बड़े स्टील उत्पादक बने थे। ये भी कर्ज के भार से दबे हैं। पिछले दिनों यह खबर आई थी कि कर्ज चुकाने के लिए इन्हें लन्दन का वह घर बेचना पड़ सकता है,जिसको वे अपने सपनों का महल मानते हैं। इन्होंने यह घर लन्दन के सबसे महंगे इलाके केन्सिंगटन पैलेस में 2008 में 1027 करोड़ रु में खरीदा था। अब खबर यह आ रही है कि यह घर वे बेच नहीं रहे हैं।
सच तो यह है कि मित्तल के संघर्ष का दौर उसी समय शुरू हो गया था जब इन्होंने आर्सेलर के लिए बोली लगाई थी। स्टील कम्पनी आर्सेलर में मित्तल और उनकी पत्नी उषा का 40 प्रतिशत हिस्सा है। इसकी कीमत बीते साल ढ़ाई लाख करोड़ रु थी,जो इस साल घटकर 54 हजार करोड़ रह गई है। यानी एक साल में ही 80 प्रतिशत का नुकसान। कहा जा रहा है कि इस समय मित्तल पर 25 हजार करोड़ रु का कर्ज है। संसार में बीते दो साल में स्टील की मांग कम होने से इसका प्रभाव आर्सेलर पर भी पड़ा है। सन् 2013 में ही आर्सेलर को 20 हजार करोड़ रु का नुकसान हुआ है। इसी की भरपाई के लिए 25 हजार करोड़ रु का कर्ज लेना पड़ा है। सवाल उठता है कि मित्तल की आर्थिक स्थिति खराब क्यों हुई? इसके कई कारण हैं। उल्लेखनीय है कि फ्रांसीसी सरकार कभी भी यह नहीं चाहती थी कि आर्सेलर का मालिक कोई गैर फ्रांसीसी बने। लेकिन बोली में मित्तल के कौशल ने बाजी मार ली और वे आर्सेलर के मालिक बन गए। मित्तल द्वारा आर्सेलर का अधिग्रहण फ्रांस की सरकार को ठीक नहीं लगा और अब जब मौका आया है तो वह मित्तल से हिसाब-किताब बराबर कर लेना चाहती है। पता हो कि दुनिया में स्टील की मांग कम होने से मित्तल ने फ्रांंस में आर्सेलर की दो इकाइयों को बन्द करने का फैसला लिया है,किन्तु इसका काफी विरोध हो रहा है। फ्रांंस की सरकार ने तो नाराजगी व्यक्त करते हुए यहां तक कहा है कि यदि मित्तल अपने इस फैसले को रद्द नहीं करेंगे तो आर्सेलर का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाएगा। कहा जा रहा है कि इस समय फ्रांंस में लक्ष्मी मित्तल के विरुद्घ काफी गुस्सा है। हालांकि इनसान के जीवन में उतार-चढ़ाव एक निरन्तर प्रक्रिया है। जो इनसान आज जिस मुकाम पर है वह हमेशा उसी मुकाम पर रहेगा या जो आदमी आज गरीबी की जिन्दगी जी रहा है वह जीवन भर फटेहाल ही रहेगा ऐसा सर्वथा सत्य नहीं है। वक्त बलवान होता है। कब किसके दिन अच्छे और किसके खराब हो जाएं,यह कुछ नहीं कहा जा सकता है। इसीलिए भारतीय जीवन दर्शन में यह कहा गया है कि इनसान को किसी भी प्रकार का घमण्ड नहीं पालना चाहिए।
-संजय रोकड़े
103,देवेन्द्र नगर,अन्नपूर्णा रोड
इन्दौर(म. प्र.)
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