|
दिल्ली विधानसभा का चुनाव शुरू से भाजपा बनाम कांग्रेस रहा है, लेकिन पिछले चुनाव में 14 फीसदी वोट पाने वाली बसपा और पहली बार चुनाव मैदान में उतरी एएपी ने पुरानी तस्वीर को बदलकर रख दिया है। दिल्ली में तीन बार से लगातार शासन कर रही सरकार को जनता नकारते हुए बदलाव का संकेत दे रही है। चुनाव का परिणाम कुछ भी हो, लेकिन राजनीति पर पकड़ रखने वाले भी सटीक भविष्यवाणी करने से थोड़ा कतरा रहे हैं। सभी मानते हैं कि इस बार दिल्ली में चुनावी मुकाबला पिछले चुनावों की तुलना में दिलचस्प रहेगा।
विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने कमर कस ली है। पार्टी का दावा है कि हर हाल में इस बार कांग्रेस के कुशासन को खत्म कर दिया जाएगा। एक नजर यदि सर्वेक्षण के आंकड़ों पर दौड़ाएं तो पिछले चुनाव में 23 सीटें पाने वाली भाजपा इस बार 30 से अधिक सीटों पर विजयी होती दिखाई पड़ रही है। वर्ष 2008 में 43 सीटें पाकर सत्ता में तीसरी बार काबिज होने वाली कांग्रेस सरकार को इस बार भारी नुकसान हो सकता है यानी कांग्रेस 20 से 22 सीटों पर सिमट सकती है। इसके अलावा एएपी और बसपा भी सत्ता में आने का दम भर रही हैं। पुनर्वास बस्तियों में एएपी और बसपा कांग्रेस के वोट बैंक को बिगाड़ रही है। अनुमान है कि भाजपा 33 फीसदी, कांग्रेस 30 फीसदी, एएपी 23 फीसदी और अन्य दल 14 फीसदी वोट अपने पक्ष में प्राप्त कर सकते हैं। दिल्ली की करीब 20 सीटों पर कांटे की टक्कर बताई जा रही है। कांग्रेस दिल्ली में अपनी सरकार दोबारा बनाने का दावा कर रही है तो भाजपा उसकी जीत के क्रम को थामने के लिए पूरी तरह से तैयार है। माना जा रहा है कि बसपा और एएपी के चुनावी मैदान में डटे रहने से कांग्रेस के वोट बैंक को बड़ा झटका लग सकता है। इसका सीधा-सीधा लाभ भाजपा को मिल सकता है।
इन मोर्चों पर सामने आई नाकामी
महिलाओं के प्रति बढ़ता अपराध
महंगाई
भ्रष्टाचार
सुविधाओं का अभाव और योजनाओं का अधूरा रहना
कच्ची कॉलोनियों का मुद्दा
देश भर में भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेंद्र मोदी को लेकर जो उत्साह है, उसका फायदा भी भाजपा को चुनावों में मिलेगा। प्रदेश में एक तरफ से वसुंधरा लहर चल रही है,वहीं मोदी को चाहने वाले युवाओं में भी बेहद जोश है। कांग्रेस की आर्थिक नीतियों, बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई के चलते प्रदेश के युवा कांगे्रस से खासे नाराज हैं, इसका फायदा भाजपा को प्रदेश में हर स्थिति में मिलेगा।
राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस इस बार भी जीत का दम भर रही है, लेकिन राय-शुमारी में कांग्रेस को लेकर लोगों के मन में रोष और भाजपा के प्रति युवाओं का जोश इस बात को पुख्ता कर रहा है कि कांग्रेस इस बार राजस्थान में सरकार बनाने में कतई सफल नहीं हो पाएगी। प्रदेश कांग्रेस के तीन वरिष्ठतम मंत्रियों पर लगे यौन शोषण के आरोपों, प्रदेश में बढ़ती अपराधिक वारदात, युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी, विकास की परियोजनाओं को अधूरा छोड़ने, सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने जैसी बातों के चलते इस बार राजस्थान के लोग ह्यहाथ ह्ण पर ठप्पा लगाने के पक्ष में नहीं हैं। अपने वायदों को पूरा करने में नाकाम रही कांग्रेस पर से लोगों का विश्वास उठ गया है। चुनाव पूर्व रुझान कुछ ऐसा ही बता रहे हैं। यदि वर्ष 1993 से देखें तो राजस्थान में लगातार दोबारा किसी पार्टी की सरकार नहीं बनी है। चुनावी विश्लेषक भाजपा को 120 से 125 सीटें मिलने की बात कह रहे हैं। जबकि कांग्रेस को 60 तक सीटें मिलने की बात कही जा रही है। बाकी सीटें अन्य व निर्दलीय के खाते में जाने का आकलन है।
नाव डूबेगी तो इन्हीं वजहों से
प्रदेश के विकास के लिए केंद्र की तरफ से चलाई गई 13 योजनाओं में से 11 योजनाएं अधूरी पड़ी हुई हैं
प्रदेश में समाजिक सौहार्द बिगड़ा, पांच वर्षों के दौरान 24 दंगे हुए, 80 जगह तनाव बना
सरकार के तीन पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा, मलखान सिंह विश्नोई और बाबूलाल नागर यौन शोषण के मामले में जेल में बंद हैं। मदेरणा पर तो हत्या का भी आरोप है, इससे कांग्रेस की छवि बिगड़ी है
राजस्थान में 24़13 प्रतिशत की दर से हो रहे आर्थिक अपराध देश में पहले नंबर पर है
राज्य में बढ़ती बेरोजगारी के चलते युवा कांग्रेस से नाराज, एक लाख युवाओं को नौकरियां देने का आश्वासन नहीं हुआ पूरा
टिप्पणियाँ