दिल्ली में हाथ को नहीं जनता का साथ
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दिल्ली में हाथ को नहीं जनता का साथ

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Nov 16, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 16 Nov 2013 14:53:24

 

  दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और मिजोरम में चुनावी बिगुल बज चुका है। सभी पार्टियां चुनाव की तैयारियों में जुटी हुईं हैं। वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर लगाए जा रहे कयासों का काफी हद तक पता इन पांचों राज्यों के चुनाव परिणामों से चलेगा। बहरहाल यदि दिल्ली की बात करें तो यहां मुकाबला भाजपा, कांग्रेस और हाल ही में पैदा हुई आम आदमी पार्टी  (एएपी) के बीच में है। सभी राजनैतिक दल एक दूसरे को हराने का दम भरते हुए चुनाव में ताल ठोक रहे हैं। अपने-अपने तरकश से आरोपों और प्रत्यारोपों के बाण छोड़ रहे हैं। कांग्रेस विकास के मुद्दे को सीढ़ी बनाकर सत्ता पाने की कोशिश में जुटी है तो पहली बार चुनावों में दस्तक देने वाली एएपी बढ़ते भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर अपनी छवि गंगाजल जैसी बताकर सत्ता पाने का सपना संजोकर बैठी है। वहीं भारतीय जनता पार्टी के पास महंगाई, बिजली और पानी की बढ़ी हुईं दरों का मुद्दा है, जो हर दिल्ली वासी के लिए महत्वपूर्ण है और आम जनता के लिए मायने रखता है।  
यदि दिल्ली में पिछले विधानसभा चुनावों पर गौर किया जाए तो सीधा मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही रहा था, इस बार के चुनावी अखाड़े में एएपी नए पहलवान के तौर पर दंगल में उतरी है। अन्ना टीम के महत्वपूर्ण सदस्य रहे अरविंद केजरीवाल वर्ष 2011 में अन्ना के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए आंदोलन के समय सुर्खियों में आए थे। इससे पहले वह अपनी नौकरी छोड़कर समाज सेवा में लगे हुए थे। ये बात अलग है कि अन्ना के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले केजरीवाल ने तब कहा था कि वे कभी राजनीति नहीं करेंगे, लेकिन उन्होंने आखिरकार राजनीति में कदम रख ही दिया। उन्होंने कहा था कि वे कभी कोई पार्टी नहीं बनाएंगे, लेकिन बनाई, कहा था कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे, पर लड़ने की तैयारी में हैं। खुद अन्ना भी केजरीवाल के राजनीति में आने के चलते उनसे अलग हो गए।
समाज सेवा के माध्यम से राजनीति में प्रवेश करने वाले, सभी को भ्रष्टाचारी कह कर अपनी छवि एक ईमानदार व्यक्ति के तौर पर पेश करने में जुटे केजरीवाल चुनाव के लिए विदेशों से मिलने वाले चंदें को लेकर सवालों के घेरे में आ चुके हैं। एएपी के महत्वपूर्ण सदस्य वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण भी अपने बयानों को लेकर चर्चा में बने रहते हैं, अफजल गुरु की फांसी को लेकर को दिए अपने विवादस्पद बयान की वजह से भी वह सुर्खियों में रह चुके हैं। बरेली दंगों के आरोपी मोहम्मद रजा तौकीर से मिलकर आए अरविंद केजरीवाल एक तरफ तो भ्रष्टाचार मिटाने और सभी को साथ लेकर चलने की वकालत करते हैं, वहीं सांप्रदायिक और जातिगत आधार पर भी वोट मांगने से कोई गुरेज नहीं कर रहे।  दिल्ली के बहुत से लोगों का मानना है कि एएपी को लेकर पहले माना जा रहा था कि वह भाजपा के मतदाताओं  में सेंध लगाएगी, लेकिन मुस्लिम बाहुल्य इलाके जहां माना जाता है कि भाजपा को वहां से बेहद कम वोट मिलते हैं, ऐसे इलाके जिनको को कांगे्रस अपना वोट बैंक समझती है, वहां पर एएपी भाजपा की बजाए कांगे्रस के वोट बैंक में सेंध लगाएगी। भाजपा की बजाए आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कांग्रेस ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे। जिसका फायदा निश्चित तौर पर भाजपा को मिलेगा। विभिन्न एजेंसियों और मीडिया द्वारा किए गए सर्वे भी इसको पुख्ता करते हैं। एजेंसियां द्वारा दिल्ली में चुनावी रुझानों को लेकर किए गए सर्वेक्षणों में भी आम आदमी पार्टी की उपस्थिति को महत्वपूर्ण तो मान रही हैं, लेकिन चुनावी विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस को इसका ज्यादा नुकसान झेलना पड़ेगा।
कांगे्रस गिनाती है विकास लोग पूछते हैं घोटाले
यदि कांग्रेस की बात करें तो शीला दीक्षित और उनकी सरकार के तमाम मंत्री व विधायक उनके कार्यकाल में दिल्ली में सबसे ज्यादा विकास किए जाने की दुहाई देते हैं। वहीं जनता कांग्रेस से घोटालों को लेकर बार-बार सवाल पूछती है।
शीला समेत तमाम कांग्रेसी दिल्ली में चारों तरफ फैली मेट्रो, चौड़ी सड़कों, नए-नए फ्लाइओवर, चौबीसों घंटे बिजली मिलने की बात कहकर मतदाताओं को लुभाने की पुरजोर कोशिश में जुटे हैं। गौर करने वाली बात है कि दिल्ली के विकास का श्रेय शीला सरकार को देना बेमानी है, दिल्ली में विकास राष्ट्रमंडल खेलों के चलते हुआ। इसके लिए केंद्र की तरफ से रकम मुहैया कराई गई थी। दिल्ली को बेहतर बनाने के लिए हजारों करोड़ रुपये का कोष दिया गया था। राष्ट्रमंडल खेल होने के बाद जब खेलों में करोड़ों के घोटाले की बात आई तो मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अपना पल्ला झाड़ लिया। उन्होंने कहा कि खेलों के लिए केंद्र सरकार ने बाकायदा ह्यराष्ट्रमंडल खेल समिति ह्ण बनाई गई थी, दिल्ली सरकार का खेलों से कोई मतलब नहीं था। जब विकास की बात हुई तो शीला दीक्षित कहती हैं कि उनकी सरकार के प्रयासों के कारण दिल्ली में विकास हुआ, लेकिन जब राष्ट्रमंडल खेलों में हुए घोटाले  को लेकर कुछ पूछा जाता है तो साफ अपने आप को बचा लेती हैं। विज्ञापन के मामले में सरकारी धन का दुरुपयोग करने व वर्ष 2008 में चुनावों से पहले कच्ची कॉलोनियों को पक्का करने की बात कहकर बिना मूलभूत सुविधाएं दिए उन कॉलोनियों के लोगों को प्रोविजनल सर्टिफिकेट बांटने के लिए मामले में लोकायुक्त भी उन्हें दोषी ठहरा चुके हैं। 16 दिसंबर जैसी घटना के बाद जब मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से दिल्ली में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने पुलिस को गृह मंत्रालय के अधीन होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया। जब गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि यदि दिल्ली सरकार मांगे तो हमें पुलिस उसके अधीन में देने में कोई परेशानी नहीं हैं, इस पर शीला दीक्षित साफ मुकर गईं, तब उन्होंने कह दिया कि हमने दिल्ली पुलिस को कभी अपने अधीन करने की बात नहीं की।
महंगाई डुबोएगी कांग्रेस की लुटिया
यदि दिल्ली में चुनाव को लेकर महत्वपूर्ण मुद्दों की बात करें तो बिजली की बढ़ी दरें, सुरक्षा व्यवस्था और महंगाई के चलते आम लोगों के घर का बिगड़ता बजट अहम हैं। इन मुद्दों का समाधान होना जरूरी है। लोगों का मानना है कि केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियां महंगाई रोकने में नाकाम रही हैं। इसका खामियाजा दिल्ली में भी कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा। यदि वर्ष 1998 में प्याज के बढ़े दामों के चलते जनता भाजपा से सत्ता छीनकर कांग्रेस को सौंप सकती है तो वर्तमान में प्याज के साथ बाकी चीजों पर बढ़ी महंगाई भी दिल्ली में कांग्रेस के लिए कड़ी चुनौती साबित होगी।   दिल्ली से आदित्य भारद्वाज

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