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उत्तराखण्ड/ रामनगर
'जीवन में चार चीजें कभी मत तोडि़ये'
विश्वास, रिश्ता, हृदय, वचन
क्योंकि जब ये टूटते हैं तो आवाज नहीं होती
लेकिन दर्द व कष्ट बहुत होता है।
इन्हीं चीजों से मिलकर बनता है- एक संयुक्त परिवार।
उत्तराखण्ड के रामनगर शहर में बसे मेहरोत्रा परिवार में कुल 18 सदस्य हैं, जो आज भी एक ही छत के नीचे रहते हैं, एक ही रसोई में इन सभी का खाना पकता है, जमीन पर बिठा कर सबको बड़े ही आदर के साथ खिलाया जाता है। सबके जिम्मे अपने-अपने काम हैं। बड़ी भाभी दीप्ति और भैया अशोक घर की रसोई के राशन का प्रबंध देखते हैं,उनसे छोटे आलोक और उनकी पत्नी ऋतु बच्चों की शिक्षा-दीक्षा का ख्याल रखते हैं, मंझले भैया अनूप और भाभी अभिलाषा बच्चों के परिधानों पर नजर रखते हैं, सबसे छोटे अनुभव और आरती का ध्यान माता-पिता से लेकर हर किसी के स्वास्थ्य और अन्य जरूरतों पर रहता है। सभी भाई कारोबार में एक साथ हाथ बंटाते हैं। खास बात यह कि सभी भाइयों के नाम ह्यअह्ण अक्षर से शुरू होते हैं। मां जी बताती हैं, इनके पापा की इच्छा थी कि सभी के नाम ह्यअह्ण से शुरू हों। छोटी बहू आरती अपने इस परिवार से परिचय कराती हैं- ह्यशादी कर जब मैं इस घर में आई तब मुझे कुछ अजीब सा लगा, लेकिन एक हफ्ते बाद मुझे संयुक्त परिवार का महत्व समझ में आया, मिल जुलकर रहने का अपना ही एक आनन्द है। हमें अपने सास-ससुर से जो अनुभव मिला उसकी कोई कीमत नहीं है।
ह्यआज के इस आधुनिक युग में जहां परिवार विच्छेदन और एकल परिवारों का बोलबाला है, संयुक्त परिवार अपने आप में एक मिसाल है। एक संयुक्त परिवार की धुरी उसका मुखिया होता है। यह वह व्यक्ति होता है जो पूरे परिवार को एक सूत्र में बांधे रखता है। हमारे परिवार रूपी वृक्ष की जड़ हैं हमारी दादी स्व. श्रीमती अन्नपूर्णा देवी मेहरोत्रा व बाबा स्व. श्री हरीश चन्द्र मेहरोत्रा जी, जिनके दो पुत्र ज्येष्ठ स्व. श्री रोहिताश मेहरोत्रा व हमारे प्यारे पापा श्री हरिओम मेहरोत्रा हैं। हमारे बाबा की मृत्यु अल्पायु में ही हो गयी थी। हमारी दादी ने बहुत संघर्ष से न सिर्फ अपने बच्चों का अच्छे से पालन पोषण किया वरन् उन्हें अच्छे संस्कारों की धरोहर दी। हमारे पिताजी का विवाह सन् 1962 में श्रीमती रेखा मेहरोत्रा के साथ हुआ जिनके चार बेटे हुए। बड़े बेटे श्री अशोक मेहरोत्रा का विवाह 1986 में श्रीमती दीप्ति मेहरोत्रा के साथ हुआ जिनके दो बच्चे हैं- यश और आयुशी। दूसरे बेटे श्री आलोक मेहरोत्रा का विवाह 1989 में ऋतु मेहरोत्रा के साथ हुआ, उनके बच्चे शुभ व सुरभि हैं। तीसरे बेटे अनूप मेहरोत्रा का विवाह भी उसी वर्ष श्रीमती अभिलाषा मेहरोत्रा के साथ हुआ, उनकी दो बेटियां हैं सुगन्धा व पलक। सबसे छोटे बेटे श्री अनुभव मेहरोत्रा का विवाह आरती मेहरोत्रा यानी मेरे साथ सन् 1999 में हुआ और हमारे बच्चे नंदिनी व युवराज हैं। हम सबको हमारी दादी जी, जिनको हम सब प्यार से अम्मा कहते हैं, का भरपूर प्यार व आशीर्वाद मिला। नन्हे युवराज के जन्म के पांच महीने बाद उनका देहान्त हो गया। जाते-जाते दादी इस परिवार रूपी वृक्ष को बहुत सक्षम व सशक्त बना गयीं। इस परिवार रूपी वृक्ष की जड़ों ने इसे मजबूत व हरा भरा बनाया है। एक व्यक्ति को स्वयं ही अपनी कमियों का सामना करना पड़ता है, फिर एक संयुक्त परिवार में सबकी खूबियों व खामियांे की चुनौतियों का सामना करना ही पड़ता है। हमारे मन में यह भावना है कि हमारे माता-पिता ने जिस बगिया को इतने प्यार और त्याग से सजाया है हम उसे बिखरने नहीं देंगे, यही भावना इस परिवार को बांधे रखती है।
वह कहावत तो आपने सुनी ही होगी-
बंद मुट्ठी लाख की, खुल गयी तो खाक की
आरती आगे कहती हैं, ह्यहमने साथ-साथ से बहुत से सुख व दु:खों का सामना किया है। हमें आज भी याद है हमारे मम्मी-पापा की शादी की 50वीं वर्षगांठ पर हमने एक गीत गाया था-
जिनके प्रात: दर्शन भर से मिलता पुण्य प्रताप,
धन्य हुए हम पा कर ऐसे ईश तुल्य मां-बाप।
मां रेखा से सत पथ चलना हम सबने सीखा है,
उनके अन्दर बिम्ब हमेशा देवी का देखा है।
जिनके आशीषों में सारी धरती सारा व्योम,
विष्णु शिव जैसे पाये हैं पिता श्री हरिओम।
माता-पिता के दाम्पत्य के हो गये हैं साल पचास,
आप हमारे साथ रहे हैं हमेशा बढ़ाने उल्लास।
आरती बताती गईं, ह्यइस उल्लास को हम सबने बड़े उत्साह के साथ मनाया। जितने भी हमारे रिश्तेदार व मेहमान आये थे सबने उनसे आशीर्वाद लिया व गले लगकर खूब रोये। हमारे ये आंसू हमें एक दूसरे से मजबूती से बंधे होने का अहसास करा रहे थे। हमारा पास-पड़ोस, हमारे मित्रगणांे में हमारा घर एक मिसाल के तौर पर जाना जाता है। हमारे पास पड़ोस के लोगों का इतना प्यार मिला है कि मेरे सबसे बड़े जेठ व जेठानी क्रमश: दो बार वार्ड सदस्य के चुनाव जीते व सच्चाई से अपने वार्ड की सेवा की। दस साल तक सुबह से ही लोग अपनी परेशानियां लेकर आते व अपने प्रतिनिधि का भरपूर सहयोग पाते रहे। इतने बड़े परिवार की एक ही रसोई है और हर काम बड़े सुनियोजित तरीके से होता है। मैं इस नई पीढ़ी को अपने अनुभवों के आधार पर यह कहना चाहती हूं कि मां-बाप को कभी सीढ़ी के पायदान की तरह इस्तेमाल न करें, वे एक पेड़ की जड़ की तरह हैं, पेड़ कितना भी हरा-भरा हो जाय जड़ को अगर काट दोगे तो पेड़ सूख जायेगा। अपनी थोड़ी सी आजादी के लिये हम प्यार भरे बन्धनों को तोड़ने में वक्त नहीं लगाते। आज के युग मंे ह्यहम दो हमारे दोह्ण नारे के चलते हर रिश्ता हर एक को नसीब भी नहीं होता। चाचा-चाची, ताऊ-ताई, बुआ-मासी, हममें से कितनों को ये रिश्ते मिले हैं? लेकिन हर रिश्ते की अपनी मिठास है। थोड़ी से नोक-झोंक, थोड़ी सी तकरार व ढेर सारा प्यार। ईश्वर ने जो भी रिश्ते आपको दिये हैं उसकी मिठास को अपने जीवन में बनाये रखिये। मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मैं एक संयुक्त परिवार का हिस्सा हूं मुझे अपने सास-ससुर व पूरे परिवार पर नाज है। मैं इस मौके पर अपने मम्मी-पापा को खुद की लिखी एक कविता समर्पित करना चाहती हूं। –
वृक्षों से ली छाया, शीतलता चन्दन की,
हृदय विशाल समन्दर का सा,
धरती से क्षमता क्षमा की,
रूप आपका धरा ईश ने, उदयीमान हुई कीर्ति घर की,
मनोभावों से सोचा चलकर रूप धरें शब्दांे का,
मन मन्थन से मोती ढूंढें, हार बनायें उसका,
प्यार का धागा, प्रीत के मोती बंधा रहे परिवार
साथ चलें उस छोर तलक, जहां मिलते हैं धरती-आकाश। सच, श्रमती आरती मेहरोत्रा की बात सोलह आने खरी है। यह प्यार का धागा और प्रीत के मोती ही हैं, जो रिश्तों में मिठास भरते हैं। दिनेश
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