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प्रयाग का संगम तट वह पावन स्थान है जहां ब्रह्मलीन पूज्य देवरहा बाबा के आशीर्वचन से श्रीराम मंदिर निर्माण का संकल्प लिया गया था। हिन्दू समाज के अनवरत संघर्ष के बाद भी अभी तक रामलला का मंदिर निर्मित नहीं हो सका है। इसलिए एक बार फिर संगम तट से यह संदेश पूरे देश में भेजा जाएगा कि हिन्दू संसद लाओ, देश बचाओ। 6 व 7 फरवरी, 2013 को विहिप के केन्दीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक और संत सम्मेलन के माध्यम से कुंभ में आये श्रद्धालुओं को यह बताने की तैयारी है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेसनीत सरकार कैसे हिन्दू संतों पर कुठाराघात कर उन्हें अपमानित कर रही है। हमारे धर्म शास्त्रों में यह मान्यता है कि माघ माह में गंगा, यमुना और अगोचर सरस्वती के पावन संगम तट पर सम्पूर्ण विश्व, सारे तीर्थ, सारे देवता पुण्य की एक डुबकी की अभिलाषा में आते हैं। इतिहास बताता है कि राजा हर्ष इस धर्म क्षेत्र में सब कुछ दान करके जाते थे लेकिन आज केन्द्र और राज्य में सत्तारूढ़ सरकारें इस पुण्य भूमि को राजनीति का अखाड़ा बना रही हैं। एक दूसरे को पीछे धकेलने के दांव चले जा रहे हैं। केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार के 800 करोड़ रु. के प्रस्ताव को स्वीकार किया था, जिसमें 70 प्रतिशत केन्द्र, 30 प्रतिशत राज्य की देनदारी थी। लेकिन यह पैसा इतने विलम्ब से मिला कि समय पर कार्य नहीं शुरू हो सके। आज भी तमाम प्रस्तावित कार्य बजट के अभाव में नहीं हो पा रहे हैं। इसके लिए दोनों एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं।
सबसे बड़ी समस्या सब्सिडी को लेकर है। अभी तक मेले में आने वाले साधु-संत और श्रद्धालुओं को गैस सिलेंडर, मिट्टी का तेल, राशन और चीनी सब्सिडी दर पर मिलते थे, लेकिन राज्य सरकार के इस प्रस्ताव पर केन्द्र सरकार चुप है। माना जा रहा है कि मेला क्षेत्र में बिना सब्सिडी का सिलेंडर ही मिलेगा जिसका मूल्य 1315 रुपए होगा। इसी बीच राज्य सरकार ने केन्द्र को कटघरे में खड़ा करते हुए मिट्टी का तेल छूट पर 15.50 रु. प्रति ली. की दर से उपलब्ध कराने का आदेश दिया। लेकिन पिछले 15 दिनों से मेला आबाद हो रहा है परंतु अभी तक साधु-संत अपनी सारी व्यवस्था महंगी दरों पर करने को विवश हैं। केन्द्र सरकार की मंशा इसी से स्पष्ट होती है कि प्रयाग आने जाने वाले तीर्थयात्रियों से वह 15 रुपया प्रति यात्री सरचार्ज वसूल करेगी। अर्थात हज यात्रा पर सब्सिडी और तीर्थ यात्रा पर सरचार्ज!
कड़ाके की ठंड में अलाव की समुचित व्यवस्था नहीं है। जूना अखाड़े के महासचिव विद्यानंद सरस्वती जी कुंभ व्यवस्था से बहुत आहत हैं। वे कहते हैं कि हमारे महामण्डलेश्वरों को सेक्टर 7 व 8 में बसाया जा रहा है जहां न बिजली है, न पानी की निकासी की व्यवस्था। आखिर टेंट कैसे लगें? अब इतने कम दिनों में हम अपने रहने की व्यवस्था कैसे करें? शाही स्नान 14 जनवरी की व्यवस्था कैसे करें? कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
एक लाख नागा संन्यासी
धर्म रक्षा के लिए आदि शंकराचार्य द्वारा गठित नागा संन्यासियों की संख्या समय के साथ बढ़ती जा रही है। जूना अखाड़े के महासचिव विद्यानंद महाराज बताते हैं कि उनके अखाड़े की संख्या लाखों में पहुंच रही है। जूना अखाड़े के सचिव श्री महंत हरिगिरी के अनुसार मकर संक्रांति के बाद पांच हजार, मौनी अमावस्या के बाद पन्द्रह हजार नागा संन्यासियों को दीक्षा दी जाएगी। इसी प्रकार महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, आवाहन, अग्नि, आनंद अखाड़ों के साथ वैष्णव अखाड़ों में भी नागा संन्यासी बनाये जाने की तैयारी की जा रही है। पंचायती अखाड़ा के सचिव एवं मठ बाघम्बरी गढ़ी के महंत नरेन्द्र गिरी कहते हैं कि नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया काफी जटिल है।
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