पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दो
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पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दो

by
Jan 12, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Jan 2013 14:08:57

पाकिस्तानी सेना ने पुंछ इलाके में भारत के दो जांबाज सैनिकों के साथ जो बर्बरता दिखाई है, उसने भारत सरकार के सामने एक गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है कि वह शांति वार्ताओं व परस्पर व्यापार बढ़ाने के पाकिस्तानी धोखे से बाहर निकलकर एक संप्रभु व स्वाभिमानी राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान को उसी की भाषा में मुंहतोड़ जवाब दे। क्या शहीद हेमराज की धर्मपत्नी धर्मवती की चीत्कार सरकार के कानों तक पहुंच रही है कि उसे संतुष्टि तब मिलेगी जब सरकार उसके पति का कटा सिर लाकर दे और वह व उसके बच्चे शहीद के अंतिम दर्शन कर सकें। धर्मवती ने कहा है कि सरकार में यदि हिम्मत है तो उसके पति का सिर लाकर दे, नहीं तो वह समझेगी कि सरकार अपंग है। भारत माता के दो वीर सपूतों के साथ पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा बरती गई हैवानियत और भारत सरकार द्वारा बस 'कड़ा विरोध' दर्ज कराने से देश का जनमानस गुस्से में है कि आखिर कब तक हम 'अमन की आस' में पाकिस्तान के सामने घुटने टेकते रहेंगे और बार–बार देश के अपमान को भूलकर पाकिस्तान की भारत विरोधी करतूतों व रिश्तों को संवारने की इकतरफा कोशिश करते रहेंगे? इस अमानवीय दुस्साहसिक घटना के बाद भी हमारी सरकार पाकिस्तानी उच्चायुक्त  को बुलाकर फटकार लगाने व दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई किए जाने की मांग को ही कड़ा विरोध मान रही है तो यह उसकी एक और गलतफहमी है, क्योंकि मुम्बई हमले में पाकिस्तानी सेना, आईएसआई और वहां के आतंकवादी सरगनाओं के खिलाफ सबूतों के साथ दोषियों की सूची भी भारत ने पाकिस्तान को सौंपी है, बार–बार उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की है, लेकिन पाकिस्तान अपनी फितरत से कहां बाज आया? जब सरकार 'कड़ी कार्रवाई किए जाने तक कोई वार्ता नहीं' जैसे अपने ही संकल्प से डिग गई और प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने स्वयं इस गतिरोध को तोड़कर शर्म अल शेख में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से वार्ता की और कभी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को घेरने व बेनकाब करने का सटीक प्रयास नहीं किया, बल्कि अपने नरम रुख के कारण भारत की एक 'आसान लक्ष्य' की छवि बना दी तो पाकिस्तान भारत के प्रति अपना धूर्त्ततापूर्ण व शातिराना रवैया क्यों बदलेगा?

सीमा पर संघर्षविराम को आएदिन तोड़ने की हिमाकत, गोलीबारी और भारत में आतंकवादी घुसपैठ जैसी पाकिस्तानी हरकतें लगातार जारी हैं। जैसे वहां भारत सरकार का कोई वजूद ही नहीं है। यह तो हमारे बहादुर सैनिकों की हिम्मत है कि अपनी जान पर खेलकर पाकिस्तानी मंसूबों को ध्वंस करने की जी तोड़ कोशिश करते हैं। इसी का परिणाम है कि पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष हो या वहां की सरकार के कर्त्ताधर्त्ता, सब खुलकर जम्मू-कश्मीर में भारत विरोधी गतिविधियों को समर्थन देने की घोषणाएं करते हैं। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने तो कश्मीर में सक्रिय जिहादी आतंकवादियों को 'स्वतंत्रता सेनानी' तक का तमगा दे दिया था और पिछले ही वर्ष जब पाकिस्तानी विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार वार्ता के लिए भारत यात्रा पर आईं तो सबसे पहले उन्होंने कश्मीर के अलगाववादियों व भारत विरोधी तत्वों से मुलाकात की। इस सब पर भारत सरकार की अनदेखी या नरम रवैये के कारण न केवल पाकिस्तान का हौसला बढ़ता है, बल्कि उसकी शह पर जम्मू-कश्मीर व भारत के अन्य भागों में भारत की एकता-अखंडता, राष्ट्रीय सुरक्षा व आंतरिक ताने-बाने के खिलाफ हिंसक युद्ध में संलग्न जिहादी आतंकवादी व राष्ट्रद्रोही अलगाववादी न केवल पाकिस्तानी झंडे फहराते हैं, मस्जिदों से इमामों के हाथों उपद्रवियों को पैसे बंटवाते हैं, कश्मीर में इस्लामी कैलेंडर जारी करते हैं, बल्कि दिल्ली आकर सरकार की नाक के नीचे 'आजाद कश्मीर' का नारा उछालते हैं, उस पर सेमीनार करते हैं और सरकार आंखें मूंदकर बैठी रहती है, उनके विरुद्ध कार्रवाई की हिम्मत तक नहीं दिखाती। उल्टे सरकार के इस कमजोर रुख से हमारे वीर जवानों का मनोबल टूटता है। सरकार के इस रवैये से पहले ही देश का जनमानस निराश है, लेकिन हमारे जांबाज सैनिकों हेमराज व सुधाकर सिंह की नृशंस हत्या पर पाकिस्तान से आर-पार की मानसिकता से उद्वेलित देशवासी सरकार से फिर नाउम्मीद हो गए हैं। मंत्रिमण्डल की सुरक्षा मामलों की समिति का फैसला कि मामले को ज्यादा तूल न दिया जाए और गृहमंत्री का कहना कि रिश्तों में सुधार को लेकर भारत अपने रुख पर कायम है, एक बार फिर भारत सरकार की कूटनीतिक विफलता और कमजोर इच्छाशक्ति का परिचायक है। सरकार जनाकांक्षा को समझे और अपनी इस दुर्बल मानसिकता से उबरे।

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