दूध की गंगा बहाने वाले भगीरथ
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दूध की गंगा बहाने वाले भगीरथ

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Sep 15, 2012, 12:00 am IST
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दिंनाक: 15 Sep 2012 15:14:18

श्रद्धाञ्जलि-वर्गीज कुरियन

दूध की गंगा बहाने वाले भगीरथ

प्रो. ओम प्रकाश सिंह

दूध के मामले में डेनमार्क नहीं, भारत को शीर्ष पर पहुंचाने में प्रमुख भूमिका रही वर्गीज कुरियन की। 26 नवम्बर, 1921 को ब्रिटिश भारत के मद्रास प्रेसीडेंसी के शहर कालीकट (केरल) में एक सिविल सर्जन के घर इस कर्मयोगी का जन्म हुआ। उनके माता-पिता ने तो उनका नाम वर्गीज कुरियन रखा, लेकिन समाज ने इस कर्मयोगी को कार्यों के आधार पर – 'अमूल मैन', 'मिल्कमैन आफ इंडिया' एवं 'श्वेत क्रांति के जनक' आदि नाम दिये। उनके कार्यों से प्रभावित होकर उन्हें कई विश्वविद्यालयों ने डाक्टरेट की मानद उपाधि से भी सम्मानित किया। इसके अलावा भारत सरकार ने 'पद्मविभूषण' जैसे राष्ट्रीय अलंकरण से सम्मानित किया। कुरियन को मैगसेसे सम्मान भी प्राप्त हुआ था।

सादगी भरा जीवन

कुरियन ने प्रारंभिक शिक्षा पैतृक जिले में ग्रहण करने के बाद मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। कुछ समय तक टाटा स्टील, जमशेदपुर में कार्य करने के बाद अध्ययन के लिए मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी गये। छात्रवृत्ति के आधार पर विदेश से अध्ययन करके 13 मई, 1949 को भारत आये। इसी वर्ष भारत सरकार ने क्रीम के उत्पादन पर शोध के लिए वर्गीज को आणंद (गुजरात) भेजा। कालीकट में जन्मे, मद्रास एवं मिशिगन यूनिवर्सिटी की शिक्षा के बावजूद उन्होंने आणंद जैसे छोटे शहर में नौकरी एवं शोध के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य को भी सहर्ष स्वीकार किया। सुविधायुक्त परिवेश में पले-बढ़े कुरियन को आणंद में कुछ समय तक आवास नहीं मिला। इस अवधि में वे एक छोटे से गैरेज में रहे, लेकिन वह धुन के पक्के थे। विपरीत परिस्थिति में भी हिम्मत नहीं हारे। उन्हें आणंद में ही आनन्द आने लगा।

कुरियन के जीवन में विरोधाभास भी कम नहीं थे। अंग्रेजी और मलयालम तथा तमिल भाषा जानने वाले कुरियन को 'क्रीम' पर शोध के लिए गुजराती भाषी 'आणंद' भेजा गया था। वे स्वयं तो दूध नहीं पीते थे, फिर भी 'दूध' की गंगा बहाने का भगीरथ प्रयास किया। इन विरोधाभासों से तो यही लगता है कि उन्होंने अपनी रुचि और स्वार्थ के स्थान पर परमार्थ को ही महत्व दिया। आराम और ऐश्वर्य के स्थान पर सादगी तथा कर्म को प्रमुख स्थान दिया। उनमें भूख थी कार्य की। लोभ नहीं था धन का। जीवन पर्यन्त कार्य में लगे रहे। इसी कारण लगभग 30 संस्थाओं के संस्थापक अथवा जनक के रूप में भी उनकी पहचान थी। वे 'अमूल' के संस्थापक भले नहीं थे, लेकिन 'अमूल' को शीर्ष पर ले जाने का कार्य उन्होंने ही किया। 'अमूल' दुग्ध उत्पादन समूह की स्वतंत्र पहचान बनाने में वर्गीज कुरियन को अपनी पहचान मिटानी पड़ी। इसीलिए वर्गीज कुरियन की पहचान वर्गीज कुरियन के रूप में न रहकर 'अमूल मैन' की हो गयी। ऐसा कर्मयोगी मिलना दुर्लभ है, जिसने स्वयं की पहचान और अपनी प्रिय संस्था 'अमूल' की पहचान को एक कर दिया था।

'अमूल' के साथ जीवन यात्रा

'अमूल' वास्तव में आणंद मिल्क यूनियन लिमिटेड का ही संक्षिप्त नाम है। इसकी स्थापना 1946 में हुई। वर्तमान में 'अमूल' ब्राण्ड नाम है। कुछ लोग इसे संस्कृत के 'अमूल्य' से भी जोड़ते हैं। वैसे तो वर्गीज कुरियन 'क्रीम' पर शोध के लिए 'आणंद' आये थे, लेकिन धीरे-धीरे यहीं रच-बस गए। 1949 में आणंद आने के बाद कुरियन ने दुग्ध उत्पादक किसानों की समस्या भी समझी। उस समय (गुजरात के)  डेयरी उद्योग पर पोल्सन नामक कम्पनी का एकाधिकार था। यह कम्पनी मुम्बई में दूध भेजा करती थी। लेकिन किसानों को सही कीमत नहीं मिलती थी। इसी समस्या के कारण गांधीवादी नेता को-आपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन के जिला अध्यक्ष त्रिभुवन भाई पटेल के अनुरोध पर कुरियन अपनी सरकारी नौकरी छोड़ कर 'आणंद मिल्क यूनियन लिमिटेड' से जुड़े। उन्होंने दूध से मक्खन निकालने और दूध को सुरक्षित मुम्बई भेजने के लिए 11 माह के परिश्रम से 'मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट' तैयार किया। इसी प्लांट का उद्घाटन करने पंडित जवाहरलाल नेहरू आणंद गये थे। इसी में से 'आणंद मिल्क यूनियन लिमिटेड' अर्थात 'अमूल ब्राण्ड' शुरू हुआ। इस प्रकार 'अमूल' ब्राण्ड का प्रारम्भ कुरियन के नेतृत्व में हुआ। यद्यपि इससे पूर्व 1946 से 'आणंद मिल्क यूनियन लिमिटेड' अस्तित्व में थी।

वर्गीज कुरियन के द्वारा प्रारंभ 'अमूल' डेयरी देश ही नहीं, पूरी दुनिया में एक मानक है। कुरियन सिर्फ 'अमूल' तक ही सीमित नहीं रहे। 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कुरियन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड का गठन किया। कुरियन 1998 तक राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अध्यक्ष रहे। इस प्रकार 33 वर्षों तक उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर डेयरी का विकास किया। 1970 के दशक में पूरे देश में दूध के उत्पादन तथा बिक्री की व्यवस्था के लिए 'श्वेत क्रांति' प्रारम्भ की। 1973 में गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ की स्थापना की। वर्गीज कुरियन के प्रयासों का परिणाम देश को मिला। कभी दूध और दुग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध डेनमार्क सहित दुनिया के देशों को पीछे छोड़ता भारत 2010-11 में विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बना।

इस विकास यात्रा में कुरियन प्रमुख रहे। कभी मुम्बई तक भी दुग्ध उत्पाद भेजने को चिंतित अमूल डेयरी को वर्तमान में मारीशस, संयुक्त अरब अमीरात, संयुक्त राज्य अमरीका, ओमान, आस्ट्रेलिया, चीन, हांगकांग, बंगलादेश और दक्षिण अफ्रीकी देशों में दुग्ध उत्पादों की बिक्री से लगभग 15 अरब डालर की आय हो रही है। इसके पीछे मुख्य भूमिका वर्गीस कूरियन की ही रही है।

कर्मयोग से लाभ मिला देश और किसान को

भारत को भूख से मुक्त करने में जो भूमिका 'हरित क्रांति' की रही वही भूमिका भारत को दुग्ध पूरित करने में 'श्वेत क्रांति' की रही। कुरियन ने सिर्फ दूध उत्पादन को ही नया जीवन नहीं दिया, बल्कि दूध से नये-नये उत्पाद भी बनाये। कहा जाता था कि भैंस का दूध पाउडर बनाने के लिए ठीक नहीं। लेकिन कुरियन ने भैंस के दूध से 'मिल्क पाउडर' बनाकर एक नया मानक स्थापित किया। इससे भैंस पालकों को दूध की अच्छी कीमत के साथ ही आर्थिक लाभ हुआ। 'मिल्क पाउडर' की सहायता से बच्चों के स्वास्थ्य तथा नागरिकों के स्वास्थ्य की भी रक्षा हो सकी। इतना ही नहीं, इस प्रक्रिया से दूध का संरक्षण भी प्रारंभ हुआ।

वर्गीज कुरियन के प्रयासों से किसानों को दूध का सही दाम मिला। साथ ही पशुपालन, गोबर की खाद से कृषि विकास को बल मिला। दुग्ध उत्पादन के कारण किसानों का नगरों की ओर पलायन रुका। आर्थिक दृष्टि से भी सम्पन्नता बढ़ी। दुग्ध और दुग्ध उत्पादों के कारण भारत को विदेशी मुद्रा भी मिली। 'श्वेत क्रांति' का लाभ भारत के ग्रामीणों को हुआ। भारत में दुग्ध उत्पादन की शून्य से प्रारंभ होकर शिखर तक की यात्रा के महान यात्री तथा भारत में क्षीरसागर तथा दूध की भागीरथी अर्थात गंगा को प्रवाहित करने वाले भगीरथ वर्गीज कुरियन आज हमारे बीच भले ही नहीं रहे, लेकिन उनके प्रयासों से भारत 'मिल्क सुपरपावर' या 'दुग्ध महाशक्ति' बना। इसी प्रकार के प्रयास हर क्षेत्र में हों, तभी भारत वास्तव में 'विश्व महाशक्ति' बनेगा। 1949 में आणंद आए कुरियन ने अंतिम सांस भी 9 सितम्बर, 2012 को आणंद में ही ली। कर्मयोगी 'आणंद' में ही महाआनन्द में विलीन हो गया। (लेखक महामना मालवीय संस्थान, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी में प्रोफेसर हैं)

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