सेकुलर सांप
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डा. महेन्द्रनाथ तिवारी
छोड़ धर्मामृत सेकुलरी विष पिएगा आदमी।
फट गई यदि जिन्दगी कैसे सियेगा आदमी।
कत्ल कुर्सी के लिए यदि कल्पना होती रही,
मर गए यदि मूल्य तो कैसे जियेगा आदमी?
जिस डाल पर बैठे उसी को काट रहे हैं।
तलवे जघन्य जिहादियों के चाट रहे हैं।
अपने ही हाथों खोद स्वयं कब्र वो अपनी,
सोकर स्वयं, अपने ही हाथों पाट रहे हैं।।
नई नहीं, सूरत जानी पहचानी है!
मरा हुआ उनकी आंखों का पानी है।
राष्ट्रधर्म की इनको कुछ परवाह नहीं,
राजनीति की यही कुटिल कहानी है।।
पार्थ यदि दुर्योधनों के दम्भ से डर जाएगा।
जो किया जयचन्द ने, फिर वही तो जाएगा।
फन कुचल डालो पतित सन्तप्त सेकुलर सांप का,
मर गया हिन्दुत्व तो हिन्दुस्थान भी मर जाएगा।।
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