वनस्पति-गुण जानने को उत्सुक युवा पीढ़ी
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वनस्पति–गुण जानने को उत्सुक युवा पीढ़ी
देशभर में अनेक वैज्ञानिक विभिन्न वनस्पतियों में पाए जाने वाले औषधीय तत्वों को पहचानने के लिए प्रयासरत हैं।
संगीता सचदेव
भारत में प्राचीन काल से ही पर्व-त्योहारों पर तुलसी, बरगद, पीपल, नीम, आम आदि पेड़ों एवं वनस्पतियों को महत्व दिया जाता रहा है। कई पेड़-पौधे और वनस्पतियों का उपयोग तो विभिन्न रोगों के उपचार के लिए भी किया जाता है। कुछ पेड़-पौधे एवं वनस्पतियां स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी लाभदायक हैं, ऐसा सिद्ध हो चुका है। पेड़-पौधे और वनस्पतियों के इतने गुणकारी होने की वजह से लोगों में इनके बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ी है। यह उत्सुकता युवा पीढ़ी में भी कम नहीं है। युवाओं की इसी उत्सुकता को ध्यान में रखते हुए देश में जगह-जगह हर्बल उद्यान तैयार किए जा रहे हैं। इन उद्यानों में न केवल किस्म-किस्म की प्रजातियों के पेड़-पौधों का रोपण किया जाता है, बल्कि लुप्त होती प्रजातियों का संरक्षण एवं संवर्धन भी किया जाता है।
हरियाणा के रोहतक स्थित महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के परिसर में ऐसा ही एक हर्बल उद्यान तैयार किया गया है। विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डा. एस.एन. भारद्वाज की देखरेख में तैयार इस उद्यान में छुई-मुई, ब्राह्मी, रुद्राक्ष सहित 112 दुर्लभ प्रजातियों के पौधे लगे हुए हैं। उद्यान के बारे में बताते हुए डा. भारद्वाज ने कहा कि यहां वनस्पति विज्ञान के विद्यार्थी ही नहीं, अपितु अन्य विषयों के विद्यार्थी भी अपनी जिज्ञासा दूर करने के लिए आते हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के इस हर्बल उद्यान की प्रसिद्धि इतनी है कि यहां विश्वविद्यालय के बाहर के छात्र तथा आम लोग भी समय-समय पर आते रहते हैं।
विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष श्रीमती पुष्पा दहिया ने कहा कि हम अपनी वास्तविक एवं प्राकृतिक धरोहर को छोड़कर कृत्रिम पदार्थों की होड़ में लगे हुए हैं, लेकिन आज के युवाओं के लिए वनस्पति विज्ञान अब विशेष रुचि का विषय बन गया है। उन्होंने कहा कि हरियाणा में उगने वाली अनेक वनस्पतियों का विभिन्न कारणों से लुप्त होने का खतरा है, जिनमें गूगल, जंगली गुलाब, ढाक, महुआ एवं जाल (मिस्वाक) इत्यादि प्रमुख हैं। उन्होंने कहा कि बहुउपयोगी मिस्वाक में तो अकारण ही बीज भी उत्पन्न नहीं हो रहे। ऐसी विलुप्त होती प्रजातियों का संरक्षण एवं संवर्धन हर्बल उद्यानों में भली प्रकार से किया जा सकता है। श्रीमती दहिया ने बताया कि आज देशभर में अनेक वैज्ञानिक विभिन्न वनस्पतियों में पाए जाने वाले औषधीय तत्वों को पहचानने के लिए प्रयासरत हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने रामयण काल में प्रयोग की गई संजीवनी बूटी को मेघालय एवं नेपाल के आसपास के क्षेत्रों से खोज निकाला है।
वनस्पति विज्ञान विभाग के वरिष्ठ प्रवक्ता श्री एस.एन. मिश्रा ने कहा कि राजस्थान में स्वत: उगने वाली 'टीट' नामक वनस्पति पाई जाती है, जिसे लोग खरपतवार समझकर उखाड़ फेंकते हैं। लेकिन इस पौधे पर किए गए अनुसंधान में इसमें औषधीय गुण वाला रसायन पाया गया है। इस रसायन को मधुमेह रोग के उपचार में उपयोगी माना गया है।
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के परिसर में बने 'हर्बल उद्यान' में लगे पौधों में से कुछ पौधों की उपयोगिता को यहां बताया जा रहा है।
सर्पगंधा– नाम के अनुरूप सर्पगंधा को सांप अथवा बिच्छू के काटने पर दवा के रूप में उपयोग किया जाता है। अनिद्रा, मानसिक तनाव को दूर करने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है।
पुतरनजीवा– इसकी पत्तियों व बीज को महिलाओं के बांझपन के उपचार के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
पीयाबासा– इसकी पत्तियों का उपयोग खांसी दूर करने के लिए किया जाता है।
अश्वगंधा– इसकी पत्तियों व जड़ को मोटापा तथा सूखनरोग दूर करने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसका उपयोग गठिया, क्षयरोग व बुढ़ापे की दुर्बलता दूर करने में किया जाता है।
सेमल– इसके तने को चेहरे पर आए काले धब्बे दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
लसूड़ा– इसको मुंह के छाले दूर करने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
पत्थरचट्ट– इसे पीड़ानाशक भी कहा जाता है। इसके पत्तों का उपयोग जोड़ों के दर्द की पीड़ा दूर करने में किया जाता है।
गिलोय– आयुर्वेद साहित्य में इसे ज्वर औषधि माना गया है।
सदाबहार– इस पौधे पर अनेक वैज्ञानिक अनुसंधान हुए हैं तथा इस दिशा में अनेक शोधकर्ता अभी और प्रयासरत हैं। यह पौधा मधुमेह, कैंसर, रक्त कैंसर जैसे रोगों के उपचार में उपयोगी है।
अरण्डी- यह अस्थाई कब्ज, पेट का दर्द तथा पाचनक्रिया में उपयोगी है। अरंडी के तेल को बाह्य रूप से दाद, खुजली आदि विभिन्न रोगों के लिए भी विशेष उपयोगी माना जाता है।
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