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'गॉड पार्टीकल' और भारत की मेधा

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Jul 7, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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'गॉड पार्टीकल' और भारत की मेधा

दिंनाक: 07 Jul 2012 14:09:46

जेनेवा में परमाणु अनुसंधान के यूरोपीय संगठन 'सी.ई.आर.एन.' ने 4 जुलाई को ब्रह्मांड के अस्तित्व में आने संबंधी 'गॉड पार्टीकल' की जो खोज करके दुनिया को रोमांचित किया है वहीं इस पूरे अनुसंधान में भारतीय मेधा की भूमिका की भी सब ओर चर्चा है। दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु भौतिक प्रयोगशाला को नई-नई खोजों में जुटाए रखने में आज भारत का वैज्ञानिक और तकनीकी योगदान कम नहीं है। 'सी.ई.आर.एन.' की नई खोज के पीछे बहुत बड़ा योगदान कोलकाता में 1894 में जन्मे महानतम भौतिक शास्त्री सत्येन्द्रनाथ बोस का है। बोस के ही नाम पर नए खोजे गए 'सब–एटोमिक पार्टीकल' को 'बोसोन' नाम दिया गया है। उनके अध्ययन ने ही 'पार्टीकल फिजिक्स' की दिशा हमेशा के लिए बदल दी थी। मोटे तौर पर नए खोजे गए 'पार्टीकल' यानी 'हिग्स बोसोन' की ही वजह से ब्रह्मांड के तमाम तत्वों में भार है। बोस को 1954 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। 'सी.ई.आर.एन.' का यह अनुसंधान पिछले साल धरती की सतह के 70 मीटर नीचे 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में 'बिग बैंग' नामक 'लार्ज हेड्रोन कोलाइडर' प्रयोग के जरिए किया गया था। 'सी.ई.आर.एन.' की कई प्रायोगिक परियोजनाओं में 100 से ज्यादा भारतीय वैज्ञानिक दिन-रात काम कर रहे हैं।

म्यांमार ही क्यों, बर्मा क्यों नहीं?

म्यांमार की विपक्षी नेता, लोकतंत्र के लिए वर्षों संघर्षरत रहीं आंग सान सू ची ने म्यांमार की सरकार के सामने एक नया सवाल खड़ा कर दिया है। उनका कहना है कि वह अपने देश का नाम म्यांमार बोलें या बर्मा, किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का तकाजा है। अभी-अभी यूरोप और थाइलैण्ड के दौरे से अपने देश लौटीं सू ची ने वहां अपने देश का नाम म्यांमार की जगह बर्मा ही बोला, इससे म्यांमार में कुछ लोगों की भवैं तन गईं। म्यांमार के चुनाव आयोग ने शिकायत दाग दी कि भई, आप म्यांमार की जगह बर्मा क्यों बोल रही थीं? इस पर सू ची ने कहा कि 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, मन की बात खुलकर कहनी चाहिए…. जिससे किसी का अपमान न होता हो। मैं मानती हूं कि चूंकि मैं लोकतंत्र में विश्वास करती हूं इसलिए मैं जो नाम (बर्मा या म्यांमार) चाहूं इस्तेमाल कर सकती हूं।' उधर  म्यांमार की सरकार ने सू ची को कहा कि संविधान का सम्मान करते हुए देश का नाम बर्मा बोलना बंद करें। इस पर सू ची का कहना था कि 1989 में देश का नाम बिना जनता की राय जाने बदला गया था। माना जाता है कि विपक्षी दलों के लोग (अब सत्ता से बाहर) उस फौजी हुकूमत के विरोधस्वरूप बर्मा नाम लिया करते थे जिसने करीब बीस साल पहले देश का नाम बदला था।

लिट्टे का जखीरा

श्रीलंका की पुलिस ने हाल ही में तमिल चीतों (लिट्टे) के गढ़ रहे किलिनोच्ची से हथियारों और गोला-बारूद का एक बड़ा जखीरा बरामद किया है। आतंकी गुट लिट्टे के खात्मे के बाद उसके गढ़ किलिनोच्ची की खोजबीन में यह जखीरा हाथ लगा। पुलिस ने बताया, एक पुराने कुंए से बरामद इस जखीरे में टी-56 गोलियों के 250,000 चक्र, एमपीएमपी गोलियों के 190,000 से ज्यादा चक्र, विमान भेदी तोप के गोले, 81 एमएम के मोर्टार और क्लेमोर बम शामिल हैं। किलिनोच्ची वही जगह है जहां से तमिल चीते समानांतर सरकार चलाते थे और तीस सालों तक श्रीलंका की फौज से लोहा लेते रहे थे। जनवरी, 2009 में लिट्टे के खिलाफ कार्रवाई करते हुए फौज ने इस शहर को अपने कब्जे में कर लिया था और चार महीने बाद ही आतंकी गुट का सफाया कर दिया था।

कराची में भगवद्गीता!

…विनाशाय च दुष्कृताम्

कराची (पाकिस्तान) में अभी 3 जुलाई को गिजरी इलाके के सांता मारिया स्कूल में एक दिलचस्प कार्यक्रम हुआ। आयोजन था भगवद्गीता के बारे में हिन्दू छात्र-छात्राओं के ज्ञान को परखने का। छात्र-छात्राओं के लिए गीता पर प्रश्नोत्तरी की इस प्रतियोगिता में बच्चों ने गीता के श्लोकों का सस्वर गान किया। वैसे सिंध क्षेत्र में हिन्दुओं से दुर्व्यवहार, उनकी बेटियों के जबरन मतान्तरण, जबरन निकाह, अपहरण आदि की घटनाएं आएदिन सुनाई देती रहती हैं। ऐसे में गीता पर यह प्रतियोगिता सबको सुखद आश्चर्य दे गई। प्रतियोगिता के जरिए यह देखा जाना था कि स्कूल के हिन्दू छात्र-छात्राओं को अपने सनातन धर्म के बारे में कितनी जानकारी है। दूसरे स्कूलों के बच्चे भी इस प्रतियोगिता में भाग लेने आए थे। प्रतियोगिता के आयोजक 'पाकिस्तान हिन्दू सेवा' नामक संगठन के अध्यक्ष संजेश धनजा इसे एक बहुत सफल आयोजन बताते हैं जो एक मुस्लिम बहुल इलाके में सम्पन्न हुआ। प्रतियोगिता के दौरान गीता के श्लोक गूंज रहे थे। धनजा इसे बच्चों में आत्मविश्वास भरने और अपने महान धर्मग्रंथों के बारे में और जागरूकता लाने का एक प्रयास बताते हैं। हिन्दू छात्र-छात्राएं इसके जरिए अपने धर्म की समझ बढ़ा पाएंगे। पी.टी.आई. के हवाले से तमाम अखबारों में छपी यह खबर बहुतों को हैरान कर गई, क्योंकि ज्यादा दिन नहीं बीते जब सिंध के हिन्दुओं को मजहबी कट्टरवादियों द्वारा सताए जाने के कई समाचार मिले थे। आलोक गोस्वामी

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