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चिदम्बरम के लिएनैतिकता नहीं, कुर्सी बड़ी

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Jun 9, 2012, 12:00 am IST
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दिंनाक: 09 Jun 2012 14:20:52

यह कैसी विडम्बना है कि केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम पहले तो वित्तमंत्री व गृहमंत्री की महत् जिम्मेदारी ठीक से निभाने में फिसले और अब अपने चुनाव में ही गड़बड़ी किए जाने के आरोपों के चलते लोकतांत्रिक नैतिकता से भी फिसल गए, फिर भी वह 'मैं इस्तीफा क्यों दूं' की तर्ज पर कुर्सी से चिपके हैं। चारों ओर से भ्रष्टाचार के मोर्चे पर घिरी संप्रग सरकार के लिए उसके गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के विरुद्ध चुनावी अनियमितता का मामला चलाए जाने को मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा हरी झंडी दिया जाना एक बड़ा झटका है। चिदम्बरम अब तक एक सर्वाधिक विफल मंत्री के रूप में देश का विरोध झेल रहे थे, लेकिन अब तो 2 जी स्पेक्ट्रम के भ्रष्टाचार से उछले छींटे उनकी चुनावी नैतिकता पर प्रश्न खड़े होने तक पहुंच गए हैं। इसलिए यदि चिदम्बरम से उनके पद से इस्तीफा मांगे जाने के स्वर तेज हो रहे हैं तो यह चिदम्बरम की राजनीतिक नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह है। वास्तव में ऐसी स्थिति में उन्हें एक क्षण के लिए भी पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं है। लेकिन 10, जनपथ के साथ उनकी नजदीकियों के चलते सोनिया पार्टी व सरकार दोनों ही उनके पीछे खड़ी हो गई हैं। कानून मंत्री ने तो यहां तक कह दिया है कि चिदम्बरम के इस्तीफे का प्रश्न ही नहीं उठता, यदि विपक्ष की मानते तो गृहमंत्री को न जाने कितनी बार इस्तीफा देना पड़ता। यानी लोकतांत्रिक व्यवस्था में कांग्रेस के लिए नैतिक मूल्यों का कोई अर्थ नहीं है और चिदम्बरम का बड़बोलापन देखिए कि वह कह रहे हैं कि यह आदेश तो याचिकाकर्त्ता के लिए झटका है, क्योंकि उसकी दो शिकायतें तो अदालत ने खारिज कर दीं। लेकिन वे भूल रहे हैं कि 29 शिकायतों में से सिर्फ दो ही खारिज हुई हैं और उच्च न्यायालय ने अपने खिलाफ चुनावी गड़बड़ी का मामला खारिज किए जाने की चिदम्बरम की याचिका ही खारिज कर दी और कहा है कि चिदम्बरम को बाकी के आरोपों में मुकदमे का सामना करना पड़ेगा। न्यायालय ने चिदम्बरम को आवश्यकतानुसार पेशी पर हाजिर होने व पूर्ण सहयोग करने का भी निर्देश दिया है।

तमिलनाडु के शिवगंगा लोकसभा क्षेत्र से 2009 में चुनाव जीते चिदम्बरम से पराजित अन्नाद्रमुक के प्रत्याशी राजा कण्णप्पन ने धांधली से चुनाव जीतने के आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसमें राजा ने सरकारी अफसरों से मिलीभगत, मतों की गिनती में गड़बड़ी व अन्य धांधलियों सहित कुल 29 आरोप लगाए थे। चिदम्बरम ने मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ में याचिका दायर कर कण्णप्पन की याचिका को खारिज करने और व्यक्तिगत पेशी से छूट दिए जाने की अपील की थी। लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी इस याचिका को खारिज कर दिया है। ऐसे में उनको पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं रह जाता है। वैसे भी यह पहला मौका नहीं है जब चिदम्बरम के केन्द्रीय मंत्री बने रहने पर सवाल उठे हों। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में उनके विरुद्ध वित्त मंत्रालय के नोट ने भी यह सवाल खड़ा किया था कि तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए.राजा द्वारा स्पेक्ट्रम की मनमाफिक कीमतें तय किए जाने में चिदम्बरम, जो तब वित्तमंत्री थे, की सहमति थी। यदि नहीं तो वित्त मंत्री रहते इस पर उन्होंने आपत्ति क्यों नहीं की, जिसने पौने दो लाख करोड़ का महाघोटाला होने दिया? इसी घोटाले में एअरसेल-मैक्सिस प्रकरण में चिदम्बरम के बेटे को लाभ पहुंचाए जाने की बात ने भी हंगामा बरपाया था, तब भी चिदम्बरम और उनका पृष्ठपोषण करने वालों की ताकत उन आरोपों को नकारने में ही लगी रही। लेकिन क्या वास्तव में चिदम्बरम दूध के धुले हैं? तो वह नैतिकता का सामना करने से क्यों डरते हैं? उनका इस्तीफा अपनी सब प्रकार की साख गंवा चुकी संप्रग सरकार के लिए संजीवनी का काम कर सकता है, लेकिन सारे लोकतांत्रिक मूल्यों को तिलांजलि देकर देश को लूटने की खुली छूट देने वाली सरकार के लिए शायद साख बचाना कोई मायने नहीं रखता।

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