बात बेलाग
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सोहबत का असर बहुत बुरा होता है…अभिषेक मनु सिंघवी इसका एक और उदाहरण हैं। जाने-माने संविधानविद् और साहित्य प्रेमी डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, जो ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त भी रहे, के पुत्र अभिषेक कांग्रेसियों की सोहबत में सत्ता राजनीति की सीढ़ियां तो तेजी से चढ़े, पर नैतिकता की पगडंडियों पर फिसलते देखे गये। सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिभाशाली वकीलों में शुमार अभिषेक कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता के साथ साथ कुछ ही सालों में राज्यसभा सदस्य तथा संसद की न्याय एवं विधि मंत्रालय संबंधी स्थायी समिति के अध्यक्ष भी बन गये, लेकिन एक अश्लील सीडी ने उन्हें बदनामी की ऐसी अंधी सुरंग में धकेल दिया लगता है, जहां से वापसी आसान हरगिज नहीं होगी। जज बनने को लालायित एक महिला वकील के साथ अपनी इस सीडी को अभिषेक ने बनावटी करार दिया और उसके प्रसारण पर रोक के लिए अदालत की शरण में भी गये, पर ऐसे मामले जितने छिपाये जायें उतने ही ज्यादा उछल जाते हैं। यही अभिषेक के साथ हुआ। अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर तो उन्होंने अदालत से रोक लगवा ली, लेकिन 'सोशल मीडिया' को कैसे रोकते? वहां 'तू डाल डाल मैं पात पात' का खेल चलता रहा। यू ट्यूब और फेसबुक पर अभिषेक सीडी हटवाते कि फिर कोई उसे डाल देता। एक हफ्ते तक वह किसी आम कांग्रेसी की तरह बेशर्मीपूर्ण साहस दिखाते रहे, पर अंतत: कांग्रेस प्रवक्ता पद और संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना ही पड़ा। अब वकील भी हैं और कांग्रेसी राजनेता भी, सो इस बेआबरू विदाई में भी शहीदाना अंदाज दिखाने से बाज नहीं आये। खुद को पाक दामन बताते हुए सीडी को साजिश करार दिया और कहा कि पार्टी को असहज स्थिति और संसद को व्यवधान से बचाने के लिए उन्होंने इस्तीफा दिया है।
कानून मंत्री की निजी राय
अभिषेक मनु सिंघवी की जिस अश्लील सीडी पर पूरा राजनीतिक जगत खुद को शर्मिंदा महसूस कर रहा था, उसके बचाव में तर्क देने के लिए कांग्रेस के अंदर से भी कोई और नहीं, बल्कि खुद केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद आगे आये। उन्होंने सीडी के असली या बनावटी होने की बाबत तो कुछ नहीं कहा, पर मीडिया को ज्ञान देना चाहा कि उनकी राय में निजी और सार्वजनिक जीवन को अलग-अलग कर देखना चाहिए। अक्सर अतार्किक सलाह देने के लिए मशहूर हो चले खुर्शीद के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि निजी और सार्वजनिक जीवन की तरह क्या किसी व्यक्ति का चरित्र भी निजी मामलों में खराब और सार्वजनिक मामलों में अच्छा हो सकता है? फिर आदर्श और संदेश तो हमेशा से उच्च पदस्थ व्यक्तियों से ही नीचे की ओर जाते हैं। वैसे सलमान के इन 'अनमोल वचन' के मायने ढूंढने में खुद कांग्रेसियों को मशक्कत करनी पड़ रही है, क्योंकि अभिषेक ने जब साजिश की ओर इशारा किया, तो चर्चाएं चल पड़ी थीं कि अगले मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें मंत्री बनाया जा सकता था। सिंघवी जाने-माने वकील हैं तो जाहिर है, उन्हें कानून मंत्री ही बनाये जाने की संभावनाएं प्रबल रही होंगी। ऐसे में साजिश का शक भी उसी पर जाना चाहिए, जिसकी कुर्सी को अभिषेक की तरक्की से खतरा हो। पर यह राजनीति है, और वह भी कांग्रेसी, जहां कहा कुछ जाता है और किया कुछ जाता है।
बोलना गुनाह है
तीन सप्ताह के अवकाश के बाद संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण शुरू हुआ तो पहले ही दिन आंध्र प्रदेश के आठ कांग्रेसी सांसदों को चार दिन के लिए सदन से निलंबित कर दिया गया। तेलंगाना क्षेत्र से निर्वाचित इन लोकसभा सदस्यों का अपराध सिर्फ इतना था कि वे आंध्र प्रदेश का विभाजन कर पृथक तेलंगाना राज्य बनाये जाने की मांग कर रहे थे। यह मांग तो दशकों पुरानी है, पर वर्ष 2009 के आखिर में मध्य रात्रि को केन्द्रीय गृह मंत्री पी.चिदम्बरम द्वारा इसे स्वीकार कर लिये जाने की घोषणा के बाद मनमोहन सिंह सरकार जिस तरह मुकर गयी, उससे तेलंगाना के लोग खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं। सरकार अपनी फितरत के मुताबिक मंत्री समूह और समितियां बनाकर मामले को ठंडे बस्ते में डाले हुए है, उधर तेलंगाना उबल रहा है। हाल में तेलंगाना क्षेत्र में हुए विधानसभा उप चुनावों में कांग्रेस साफ ही हो गयी। इसलिए वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर सांसदों पर भी दबाव बढ़ रहा है, लेकिन जगन मोहन रेड्डी की बगावत और तेलंगाना आंदोलन के तेवरों से पस्त कांग्रेस और उसकी सरकार फैसले का साहस ही नहीं जुटा पा रही। इसलिए ज्वलंत मुद्दों पर भी मूकदर्शक बनी रहने वाली पार्टी और सरकार की गाज बोलने वालों पर ही गिर गयी। समदर्शी
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