पाकिस्तानी चंगुल से गिलगित बाल्टिस्तान को आजाद कराए भारत
|
“पी.ओ.के.”, गिलगित-बाल्टिस्तान की वर्तमान परिस्थितियों पर महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
विशेषज्ञों ने चेताया
गत 22 व 23 फरवरी 2012 को नई दिल्ली में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) और जम्मू-कश्मीर उत्तरी सीमांत की वर्तमान स्थिति और भावी दिशा पर “सेंटर फॉर सिक्योरिटी एन्ड स्ट्रैटेजी”” की ओर से अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया।
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि “जम्मू-कश्मीर की समस्या भारत की सिलसिलेवार गलतियों का नतीजा है। जनवरी 1948 को भारत द्वारा इस विषय को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाना सबसे बड़ी गलती थी। पाकिस्तान भारत के प्रति हमेशा से आक्रामक रहा है। भारत-पाक वार्ता के दौरान पाकिस्तान का मुख्य मुद्दा जम्मू-कश्मीर ही रहता है। आज पाकिस्तान भारत के खिलाफ खुलकर बोल रहा है और हम चुप बैठे हैं। पाकिस्तान आज अवैध रूप से जम्मू-कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर अपना अधिकार जमाए हुए है। वहीं उत्तरी क्षेत्र में भी पाकिस्तान वहां की काउंसिल के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से शासन कर रहा है।”
श्री सिन्हा ने आगे कहा, “पीओके में मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है और युवाओं में भी बेरोजगारी को लेकर रोष व्याप्त है। जम्मू-कश्मीर को पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिए आज एक देशव्यापी आंदोलन के जरिए लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है। भारत इस मुद्दे पर लम्बे समय से सभ्य तरीके से व्यवहार कर रहा है, लेकिन अब समय आ गया है कि पीओके सहित गिलगित-बाल्टिस्तान को वापस पाने के लिए भारत हर संभव प्रयास करे।”
कार्यक्रम में उपस्थित पंजाब पुलिस के पूर्व महानिदेशक श्री पी.सी. डोगरा ने कहा कि “जम्मू-कश्मीर के उत्तरी क्षेत्रों में चीन की उपस्थिति भारत के लिए खतरे की घंटी है। गिलगित- बाल्टिस्तान भारत के लिए रणनीतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण हैं। आज वहां चीन ने कराकोरम राजमार्ग का निर्माण कर लिया है और वहां वह अपने हथियार जमा रहा है। चीन जम्मू-कश्मीर के उत्तरी क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व स्थापित कर रहा है। न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक, वहां 7000 से 10000 तक चीनी सैनिक मौजूद हैं। चीन वहां सड़क निर्माण तो कर ही रहा है, इसके साथ ही उसने वहां 22 सुरंगें भी बनाई हैं, जहां से ईरान से चीन तक गैस पाइपलाइन बिछाई गई है। पाकिस्तानी सेना न केवल गिलगित-बाल्टिस्तान में मौजूद है, बल्कि वह पीओके में भी उपस्थित है।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने बताया कि “गिलगित बाल्टिस्तान में 15 हजार मेगावॉट जल विद्युत की क्षमता है और इसे बेचकर वहां की आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों की काफी संभावनाएं हैं, लेकिन पाकिस्तान ने उन सभी को चीन को सौंप दिया है। चीन आज इन संसाधनों का प्रयोग अपने लिए कर रहा है। आज जम्मू-कश्मीर के उत्तरी क्षेत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा व रोजगार के लिए संभावनाएं नहीं हैं। भारत को भारत-चीन सीमा विवाद के मुद्दों में इस क्षेत्र को भी शामिल करना चाहिए।”
कनाडा की संस्था इंटरनेशनल सेंटर फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी के कार्यकारी निदेशक मुमताज खान ने “आजाद कश्मीर” की स्थिति के सम्बन्ध में बताया कि “आजाद कश्मीर को पाकिस्तान की सेना द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। 1974 के कानून के तहत कश्मीर विधानसभा बनी और उसमें सभी नेता पाकिस्तान द्वारा भेजे गए। पाकिस्तान की सेना “आजाद कश्मीर” का प्रयोग भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियां चलाने के लिए कर रही है। सेना स्थानीय निवासियों पर कड़ी नजर रखती है। इस क्षेत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा व अन्य सभी क्षेत्रों पर पाकिस्तानी सेना का आधिपत्य है और इन सभी बुनियादी सुविधाओं की हालत जर्जर है। आज वहां के लोग अपनी स्वतंत्र पहचान चाहते हैं।
वाशिंगटन के “इंस्टीट्यूट ऑफ गिलगित-बाल्टिस्तान स्टडीज” के निदेशक श्री सेंज सेरिंग ने बताया कि “उत्तरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग पाकिस्तानी शासन से त्रस्त हैं। वहां के लोगों पर पाकिस्तान द्वारा घोर अत्याचार किया जा रहा है। अभी हाल ही में वहां कई लोग बेरोजगारी, भोजन व रहने की समस्या को लेकर सड़कों पर उतर आए तो पाकिस्तान ने उन पर लाठियां बरसाईं और कइयों को जेल में डाल दिया। वहां लोगों के लिए कोई स्वतंत्र प्राधिकरण नहीं है। लोगों पर प्रशासन कुछ खर्च भी नहीं कर रहा। मुर्गीपालन फार्म में स्कूल चल रहे हैं। कालेज को पुलिस चौकी में तब्दील कर दिया गया है। 14 से 18 घंटे तक बिजली की कटौती होती है। सरकारी कर्मचारियों को 6-7 महीनों से वेतन नहीं मिला है। इस क्षेत्र में यूरेनियम समेत अन्य खनिजों के भंडार हैं, लेकिन सरकार उसका उपयोग वहां के लोगों के आर्थिक हितों के लिए नहीं कर रही। वहां के निवासियों के खनन करने पर प्रतिबंध है। सरकार ने खनन का हक चीन को दे रखा है और इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि चीन द्वारा यूरेनियम का प्रयोग कितना विनाशकारी होगा। भारत को इस क्षेत्र में अपना दखल बढ़ाना चाहिए और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को भी चीन पर पीछे हटने के लिए दबाव बनाना चाहिए।”
कार्यक्रम में अन्य वक्ताओं में राज्यसभा सांसद श्री चंदन मित्रा, श्री जी. पार्थसारथी, प्रो. के. एन. पंडित, कैप्टेन आलोक बंसल, श्री अजित डोवाल, श्री राणा बनर्जी, श्री विजय क्रांति और डा. नरेन्द्र सिंह प्रमुख थे। द प्रतिनिधि
टिप्पणियाँ