नया धारावाहिक "उपनिषद् गंगा" रोचक व रोमांचक कथा यात्रा
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नया धारावाहिक “उपनिषद् गंगा”
श्रीश देवपुजारी
एक समय पर दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक चाणक्य ने बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की। परन्तु बहुत लंबे समय तक इस स्तर का कोई और धारावाहिक देखने को नहीं मिला। लेकिन अब यह प्रतीक्षा पूरी हो गई है। “उपनिषद् गंगा” नामक नए धारावाहिक की झलकियां जिन्होंने देखी हैं, वे चाणक्य धारावाहिक में चाणक्य की भूमिका निभाने वाले डा. चंद्रप्रकाश द्विवेदी, जोकि इस धारावाहिक के लेखक भी हैं, को साधुवाद दिए बिना नहीं रहेंगे। निर्देशन, मंच, वेशभूषा, सज्जा और प्रकाश की कलाबाजी अप्रतिम है। कला निर्देशक श्री नितिन देसाई ने अपनी प्रसिद्धि के अनुरूप इसमें कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसलिए इस धारावाहिक को रामायण, महाभारत और चाणक्य की श्रेणी में रख सकते हैं। धारावाहिक 11 मार्च से दूरदर्शन के डी.डी. 1 चैनल पर प्रसारित होना शुरू हो गया है। जो कि प्रत्येक रविवार सुबह 10 से 10.30 बजे तक प्रसारित होगा।
इन कहानियों को लिया है
उपनिषद् गंगा केवल उपनिषदों पर आधारित धारावाहिक नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता और दर्शन के विकास की गाथा है। इसलिए इसमें उपनिषद् की कहानियों के साथ-साथ पुराण और इतिहास की कहानियों को भी सम्मिलित किया गया है। साधारणत: एक कड़ी में एक कथा, यह इसका स्वरूप है। उपनिषद् कथाओं में याज्ञवल्क्य-मैत्रेयी, नचिकेता, सत्यकाम-जाबाल, जनक, गार्गी, उद्दालक, श्वेतकेतु, अष्टावक्र इत्यादि से सम्बंधित कहानियों को सम्मिलित किया गया है। बाद के काल के प्रतिनिधि के रूप में हरिश्चंद्र, भर्तृहरि, माघ, जड़भरत, प्रल्हाद, वाल्मीकि, भास्कराचार्य, वराहमिहिर, शंकराचार्य आदि की कहानियों को समाहित किया गया है। तत्पश्चात चाणक्य, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, पुंडलिक, तानसेन, बीरबल, दाराशिकोह तक की कहानियां उसी उपनिषद् कालीन विचारों को प्रवाहित कर रही हैं।
इसलिए दिया “उपनिषद् गंगा” नाम
उपनिषद् का ज्ञान शााश्वत ज्ञान है, जो सर्वकालिक है, हर समय प्रासंगिक है और सबके लिए आवश्यक। यह जीवन के हर मोड़ पर मार्गदर्शक है। हम इसमें वर्तमान की समस्याओं के उत्तर ढूंढ सकते हैं। धारावाहिक की एक कड़ी में गोस्वामी तुलसीदास रामचरित मानस की रचना करने का कारण बताते हैं। रामायण का आदर्श जितना तुलसीदास के काल में सटीक था, उतना ही आज के काल में उपयुक्त है।
गंगा सदियों से पवित्रता और सत्य की निरंतर बहती हुई धारा रही है और इसने भारतीय सभ्यता को प्रभावित किया है। बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् ज्ञान धारा को प्रवाहित करने हेतु गौतम बुद्ध ने सारनाथ को चुना। जो गंगा तट स्थित काशी के समीपस्थ है। गंगा को मोक्ष दायिनी माना जाता है। इसलिए केरल से निकले हुए शंकराचार्य ने काशी में आकर गंगा तट पर निवास किया। उपनिषदों का ज्ञान भी मोक्ष की ओर ले जाने वाला होने के कारण इस धारावाहिक का नाम उपनिषद् गंगा सार्थक ही है। उपनिषद् भी ज्ञान की अविरल धारा है। ज्ञान प्राचीन, फिर भी नवीन। इसलिए नवीन पीढ़ी को अपने जीवन के प्रश्नों के उत्तर इसमें मिल जाएंगे।
समीक्षा
उपनिषद् गंगा में काम करने वाले कलाकार उत्तम हैं। बालकृष्ण, सूरदास, मदालसा इत्यादियों का अभिनय मन को मोह लेता है। सूरदास के प्रसंग के कारण भक्तिरस और ज्ञानधारा का मनोहारी मिश्रण हुआ है। किन्तु इसके विपरीत अंतिम कड़ी में शंकराचार्य और शिष्य मंडली के रूप में दिखाए गए कलाकारों का चुनाव अधिक सटीक हो सकता था। कम से कम आद्य शंकराचार्य के पात्र के लिए तो और तेजस्वी तथा सात्विक चेहरा चुनना चाहिए था।
जहां-जहां संस्कृत श्लोकों का उच्चारण किया गया है, वहां-वहां दक्षिण भारतीयों से उच्चारण कराया जाता तो अधिक स्पष्ट एवं सस्वर होता। चिन्मय मिशन की प्रस्तुति होने के कारण यह सरलता से किया जा सकता था। कुल मिलाकर चिन्मय मिशन का यह प्रयास बहुत अच्छा और प्रेरक है। स्वामी नारायण सम्प्रदाय भी ऐसा प्रयास कर सकता है। इससे भारत की युवा पीढ़ी को भारतीय होने का अर्थ समझाया जा सकता है।द
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