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भारत को धोखा

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Feb 11, 2012, 12:00 am IST
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भारत को धोखा

दिंनाक: 11 Feb 2012 22:20:22

कदम-कदम पर पाकिस्तान सरकार दे रही है

नरेन्द्र सहगल

सेना, आईएसआई और मजहबी इस्लामिक कट्टरपंथियों की आंख की किरकिरी बने हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी इन दिनों भारत की बहुत मित्रवत् बयान देने की नीति पर चल रहे हैं। यह नीति उनके राजनीतिक भविष्य के लिए कितनी उपयोगी अथवा खतरनाक साबित होगी यह तो भविष्य ही बताएगा। पिछले अनुभवों और पाकिस्तान की आज तक की सभी सैनिक या गैर सैनिक सरकारों के भारत के संबंध में नीतिगत व्यवहार से तो यही समझना चाहिए कि गिलानी भी पाकिस्तान की षड्यंत्रकारी, दोगली और शत्रु देश जैसी नीति का ही अनुसरण कर रहे हैं। भारत के प्रति उस देश की यही नीति और नीयत है।

गिलानी की व्यंग्यात्मक भाषा

हाल ही में दावोस में संपन्न विश्व आर्थिक मंच के दो दिवसीय सम्मेलन में गिलानी ने भारत के प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह की जमकर तारीफ करते हुए उन्हें सज्जन पुरुष के विशेषण से नवाजा है। कहीं भारत के खास दुश्मन देश के प्रधानमंत्री ने यह तारीफ करके डा.मनमोहन सिंह का मजाक उड़ाते हुए उनके राजनीतिक व्यक्तित्व पर फबती तो नहीं कसी? गिलानी के अनुसार सिंह एक सज्जन व्यक्ति हैं जो कि कश्मीर सहित सभी विवादास्पद मामलों को पाकिस्तान के साथ सुलझाना चाहते हैं। गिलानी ने द्विपक्षीय संबंधों के सुधरने की उम्मीद की है।

यह भी संभव है कि गिलानी ने शिष्टाचार की रस्म अदायगी करने के लिए ही डा.मनमोहन सिंह को सज्जन पुरुष कहकर उनकी सज्जनता की गहराई नापने की कोशिश की हो। सभी जानते हैं कि नवम्बर 2011 को मालदीव में सम्पन्न दक्षेस सम्मेलन के समय डा.मनमोहन सिंह ने भी “शांति पुरुष” कहकर गिलानी को गले लगा लिया था। असलियत यह है कि दक्षेस में डा.मनमोहन सिंह ने भारत सरकार की अव्यावहारिक सज्जनता दिखाई थी जबकि विश्व आर्थिक मंच पर गिलानी ने पाकिस्तान की दुष्टता का परिचय दिया है।

जन्मजात उद्देश्य की नीतियां

विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यू ई एफ) की बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे योजना/विज्ञान/प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री अश्विनी कुमार के अनुसार “गिलानी ने प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह को शुभकामना दी है और दोनों देशों के बीच सामान्य संबंधों को बहुत जरूरी बताया है।” अश्विनी कुमार ने भी राजनीतिक शिष्टाचार निभाते हुए कह दिया “दोनों देशों के लोग लम्बे समय से शांति के इच्छुक हैं।” लेकिन वास्तविकता तो यह है कि 64 वर्षों की तकरार के पीछे काम कर रही पाकिस्तानी सरकारों की दुष्ट मनोवृत्ति ही दोनों देशों की लम्बे समय की इच्छा को पूरी नहीं होने देती। वास्तव में पाकिस्तान संबंध सुधारना चाहता ही नहीं।

यदि गिलानी वास्तव में दोनों देशों के आपसी भाईचारे को समय की जरूरत मानते हैं तो वह उन परिस्थितियों को क्यों नहीं बदलते जो संबंधों को सुधारने की बजाए बिगाड़ने की भूमिका अदा कर रही हैं? अपने लगभग तीन वर्ष के कार्यकाल में गिलानी ने एक भी ऐसा सख्त कदम नहीं उठाया जिससे पाकिस्तान में जमे बैठे भारत विरोधी तत्वों खासतौर पर वहां की सेना, आईएसआई, मजहबी कट्टरपंथी या आतंकवादी संगठनों पर कोई लगाम लगी हो। भारत विरोध तो पाकिस्तान के जन्मजात उद्देश्य की एक ठोस रणनीति है जिसकी हिस्सेदारी में गिलानी भी शामिल हैं। गिलानी ने एक और पैंतरा बदला है, गत 6 फरवरी को इस्लामाबाद में आयोजित कश्मीर दिवस पर उन्होंने कहा, “हम भारत के साथ युद्ध नहीं कर सकते। परंतु कश्मीर मुद्दा हमारी विदेश नीति का आधार है। यह आपसी सहमति से हल होना चाहिए।”

गिलानी सरकार का दोगलापन

पाकिस्तान के इसी प्रधानमंत्री के कार्यकाल में भारत में 26/11 का आज तक का सबसे बड़ा जिहादी नरसंहार हुआ था। पाकिस्तान की धरती पर रचे गए इस खूनी तांडव के आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं। इस आतंकी हादसे के मुख्य सूत्रधार मुहम्मद हाफिज सईद को पाकिस्तान सरकार और कानून ने बेकसूर कहकर बरी कर दिया है। यहां तक कि हाफिज द्वारा स्थापित नए आतंकी संगठन जमात उद दावा का नाम भी पाकिस्तान सरकार ने आतंकी संगठनों की सूची में से काट दिया है। सवाल पैदा होता है कि पाकिस्तान सरकार का संचालन वहां के प्रधानमंत्री गिलानी करते हैं या हाफिज मुहम्मद सईद?

26/11 के आतंकी हमले के ठोस सबूतों के पूरे सात डोजियर भारत ने पाकिस्तान को सौंपे हैं। इस तथ्यपरक ठोस जानकारी में इस हमले की पृष्ठभूमि, रचना, स्थान, आतंकी कमांडरों के संदेश, हथियारों की आपूर्ति, आवागमन के साधन और मुख्य अपराधियों के नाम, पते सब कुछ दिया है। इतने पर भी पाकिस्तान सरकार ने कोई ठोस कार्रवाई आज तक नहीं की। इस नरसंहार की पूरी योजना तैयार करने वाले मुख्य सूत्रधार हाफिज के बारे में सारी जानकारी अमरीका की गुप्तचर संस्थाओं और पाकिस्तानी मूल के अमरीकी नागरिक हेडली ने सारे संसार को दी थी। फिर भी गिलानी के नेतृत्व वाली सरकार हाफिज और उसके संगठन जमात उद दावा को आतंकवादी ही नहीं मानती। यही तो है गिलानी की दोगली नीति।

पाकिस्तानी दुष्टता चरम पर

एक ओर पाकिस्तान दोस्ती के आडम्बर में भारत समेत सारी दुनिया की आंखों में धूल झोंक रहा है और दूसरी ओर अपनी धरती पर चल रहे आतंकवादी संगठनों के अड्डों और प्रशिक्षण शिविरों को संरक्षण दे रहा है। पाकिस्तान की सेना और आईएसआई के निवर्तमान और मौजूदा अधिकारी इन आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों में नियमित रूप से जाकर देखभाल करते हैं। हाल ही में कश्मीर घाटी के सोपुर में जिंदा पकड़ लिए गए पाक प्रशिक्षित दो आतंकियों ने भारतीय सुरक्षा बलों को बताया है कि पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चल रहे प्रशिक्षण शिविरों की सारी व्यवस्था वहां के सैन्याधिकारी देखते हैं। भारत से संबंध सुधारने के लिए तथाकथित रूप से इच्छा जाहिर करने वाले युसूफ रजा गिलानी का क्या इन सब तरह की भारत विरोधी गतिविधियों से कोई संबंध नहीं?

गिलानी के खास दोस्त और उनके द्वारा ही बनाए गए पाकिस्तान के गृहमंत्री अब्दुल रहमान मलिक ने तो यहां तक कह दिया है कि 26/11 के मुम्बई हादसे में हाफिज सईद की शमूलियत (भागीदारी) के सभी सबूत केवल मात्र सूचनाएं ही हैं। गिलानी सरकार की धृष्टता/दुष्टता का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि पाकिस्तान का एक न्यायिक आयोग तो 26/11 हमले की जानकारी लेने भारत आ सकता है परंतु भारत की एक न्यायिक टीम को पाकिस्तान जाकर मुम्बई हमले के लिए जिम्मेदार लोगों की पूछताछ करने की अनुमति के लिए गिलानी सरकार आनाकानी कर रही है।

लश्कर चलाएगा साइबर जिहाद

क्या गिलानी यह भी नहीं जानते कि मुम्बई हमले का एक सरगना जकीउर्रहमान लखवी पाक जेल में बंद होने के बावजूद हिंसक जिहाद की गतिविधियां संचालित कर रहा है। यह लखवी विश्व कुख्यात आतंकवादी संगठन लश्करे तोएबा का सुप्रीम कमांडर है। कितनी शर्म की बात है कि एक ओर गिलानी सरकार भारत में हिंसा फैलाने वालों को संरक्षण दे रही है और  दूसरी ओर भारत के साथ मधुर रिश्ते बनाने का नाटक किया जा रहा है। पाकिस्तान में कहने को तो लश्करे तोएबा पर प्रतिबंध लगा हुआ है परंतु इस संगठन की गतिविधियां पूरी तरह अपने यौवन पर हैं।

पाकिस्तानी सरकार और सेना की नाक के नीचे लश्करे तोएबा का संगठन निरंतर मजबूत होता जा रहा है। लश्कर नए कैडर को पासपोर्ट के जरिए पाकिस्तान बुला रहा है। और वहां कश्मीरी युवकों को विशेष कैप्सूल कोर्स में आई टी और साइबर जिहाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है (दैनिक जागरण 5 जनवरी)। इस काम के लिए बकायदा पन्द्रह दिवसीय विशेष कैप्सूल कोर्स करवाया जाता है। इस कोर्स में कश्मीरी युवकों को रखा जाता है। जम्मू-कश्मीर समेत पूरे भारत में आतंकी आग लगाने के लिए जिहाद की तैयारियों से क्या गिलानी वाकिफ नही हैं? वहां लश्करे तोएबा के ट्रेनिंग कैम्प भी चलते हैं और गिलानी की सरकार ने दुनिया को दिखाने के लिए इसे प्रतिबंधित भी किया हुआ है।

सूचना प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण

पाकिस्तान सरकार एवं सेना द्वारा पाले पोसे जा रहे आतंकी संगठनों विशेषतया लश्करे तोएबा की बढ़ती जा रही ताकत की जानकारी जम्मू-कश्मीर के उत्तरी कश्मीर रेंज के डीआईजी मुनीर खान ने दी है। पिछले पखवाड़े मुनीर खान ने श्रीनगर में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में पाकिस्तान सरकार की पोलपट्टी खोलते हुए बताया कि आतंकवादी अब सूचना प्रौद्योगिकी के जरिए अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने की तैयारियां कर रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर पुलिस के उत्तरी कश्मीर क्षेत्र के प्रमुख ने कहा है कि उन्होंने कई ऐसे युवकों का पता लगाया है जो लश्करे तोएबा के प्रशिक्षण शिविरों में शिक्षा लेने पाकिस्तान गए थे। पुलिस प्रमुख मुनीर खान के अनुसार कश्मीर घाटी के बांडीपुरा और सोपुर जिलों में लश्करे तोएबा के ज्यादातर कमांडर भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों समाप्त कर दिए गए हैं। इसी वजह से चिंतित पाकिस्तान की सेना और आईएसआई लश्करे तोएबा के आतंकियों की तादाद बढ़ाना चाहती है ताकि कश्मीर घाटी में सशस्त्र घुसपैठ को जारी रखा जा सके।

दुनिया की आंखों में धूल

पाकिस्तान में चल रही इन भारत विरोधी गतिविधियों के होते हुए गिलानी किस मुंह से कह रहे हैं कि वह भारत के साथ संबंध सुधारने के इच्छुक हैं। आज अमरीका सहित सभ्य संसार के सारे देशों ने समझ लिया है कि पाकिस्तान की धरती पर दुनिया की बर्बादी की तैयारियां चल रही हैं। इस्लाम के नाम पर जिस खूनी जिहाद का रास्ता आतंकवादी संगठनों ने अख्तियार किया है पाकिस्तान सरकार उस रास्ते को प्रशस्त          करती है।

गिलानी की सरकार के तीन वर्षों के कालखंड में भारत विरोधी हिंसक जिहाद, आतंकी संगठनों की तादाद, हथियारों के जखीरे, भारत की सीमा में सशस्त्र घुसपैठ, आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों, सीमा पर लागू संघर्ष विराम का उल्लंघन इत्यादि सब कुछ बढ़ा है। गिलानी सहित पाकिस्तान के प्राय: सभी नेता अक्सर कहते रहते हैं कि जब तक कश्मीर का मसला हल नहीं हो जाता तब तक जिहादी शक्तियां सक्रिय रहेंगी।

अमरीका का भी मोहभंग

गिलानी ने हमारे प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह को ठीक ही “सज्जन पुरुष” की संज्ञा दी है। भारत की इसी “सज्जनता” का फायदा पाकिस्तान पिछले 64 वर्षों से उठा रहा है। हम समझौते, वार्ताएं, युद्ध विराम, मौखिक विरोध प्रदर्शन और सबूतों की शांतमयी नीति पर चलते हैं और पाकिस्तान इन सब बातों को हमारी कमजोरी समझकर हमें धोखा देता रहता है। जिहादी आतंकवाद पर आधारित पाकिस्तान की भारत के संबंध में विदेश नीति का स्वरूप हमारी सज्जनता पर सदैव हावी रहता है। देशहित में हमें अपनी इस सज्जनता की परिभाषा और स्वरूप को बदलना पड़ेगा।

इन दिनों कुछ अरब देशों को छोड़कर शेष दुनिया का कोई भी देश पाकिस्तान को भरोसे के काबिल नहीं समझता। अमरीका का भी पाकिस्तान से मोह भंग होता जा रहा है। अमरीका के राष्ट्रीय गुप्तचर विभाग के निदेशक जैम्स क्लैपर ने कहा है कि “पाकिस्तान भारत को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है। पाकिस्तान के साथ अमरीकी रिश्ता चुनौतीपूर्ण है।” इसी तरह अमरीकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के प्रवक्ता जान किर्बी ने कहा है “आईएसआई और कुछ चरमपंथी संगठनों के बीच संबंधों को लेकर हम चिंतित हैं।”

भारत की सज्जनता पर प्रहार

उत्तर अटलांटिक संधि संगठन “नाटो” की एक गुप्त रपट के अनुसार पाकिस्तानी सेना और आईएसआई अफगानिस्तान में तालिबान को प्रत्यक्ष रूप से मदद कर रही है। यही नहीं, पाकिस्तान सरकार को तालिबानी ठिकानों की जानकारी भी है। सन 2014 तक अमरीका के नेतृत्व वाली पश्चिमी देशों की सैनिक टुकड़ियों के वापस जाने के बाद अफगानिस्तान पर कब्जा करने की फिराक में है पाकिस्तान।

स्पष्ट है कि पाकिस्तान की मदद और संरक्षण में बनने वाली अफगानिस्तान की संभावित सरकार भारत के लिए भी खतरे की घंटी साबित होगी। पाकिस्तान की गिलानी सरकार, आईएसआई, सेना और अफगान तालिबान सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। इन परिस्थितियों में पाकिस्तान का भारत की दोस्ती चाहने का नाटकीय इरादा कभी भी पूरा नहीं होगा।

पाकिस्तान सज्जनता की भाषा नहीं समझता। गिलानी और उनकी सरकार कभी भी भारत के हित में नही हो सकती। भारत पर चार बड़े युद्ध थोपने, पहले पंजाब, फिर कश्मीर और अब पूरे भारत में जिहादी हिंसा फैलाने के षड्यंत्रों में व्यस्त पाकिस्तान की किसी भी सरकार पर विश्वास करना अपने आप को धोखा देना होगा। गिलानी के सज्जननुमा शब्दजाल में न फंसकर भारत के प्रधानमंत्री को अपने देश के हित में एक सुदृढ़ रक्षा नीति का आधार तैयार करना होगा। अपने दम पर पाकिस्तान को सीधे रास्ते पर लाने की रणनीति से ही दोनों देशों के आपसी रिश्ते सुधरेंगे।द

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