पशुधन की कमी एक विनाशकारी संकेत
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मेरठ/ अजय मित्तल
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ और सहारनपुर मंडलों में पशुधन तेजी से कम हो रहा है। यूं तो पूरे देश में ही पशुओं की हालत ठीक नहीं है, पर इन दो मंडलों में तो स्थिति बेहद भयावह है। सन् 2007 की 18वीं पशुगणना, जिसके आंकड़े पांच साल बाद अब जारी किये गये हैं, के अनुसार चार साल (2003 से 2007 के बीच) में इन मंडलों में घरेलू पशुओं की संख्या घटकर आधी से भी कम रह गयी है। सन् 2003 की पशुगणना में उनकी संख्या 39 लाख थी, 2007 में केवल 19 लाख दर्ज की गयी है। लोगों को संदेह है कि यह 19 लाख का आंकड़ा भी भ्रामक है, क्योंकि इस बार पशु पालकों के नाम गणना-रपट में नहीं बताए गये हैं, जैसा कि जनगणना आयुक्त के आदेश के अनुपालन में किया जाना चाहिए था।
भारत में पशुधन का विनाश इतनी तेजी से हो रहा है कि कुछ दशक बाद हमारी हालत सऊदी अरब जैसी हो जायेगी, जहां पशुधन समाप्त प्राय: हैं, उन्हें भारी मात्रा में मांस आयात करना पड़ता है, वे जीवित ऊंट भी मंगा रहे हैं। अगर गोवंश की ही बात करें तो भारत में 15वीं पशुगणना (1993) के 8,85,08,000 से घटकर वह 17वीं गणना (2003) में 8,29,61,000 हो गई थी और 18वीं (2007) में 7,29,15,000 रह गयी है। यह तो तब है जब वाजपेयी सरकार के समय (1999) से भारत से गोमांस-निर्यात प्रतिबंधित है। स्पष्ट है कि चोरी-छिपे निर्यात अभी भी जारी है।
सिर्फ पश्चिम उत्तर प्रदेश की बात करें तो मेरठ और सहारनपुर मंडल के 22 जिलों में घोषित तौर पर 42 पशु वधशालाएं और 26 मीट पैकेजिंग इकाइयां हैं। यहां रोजाना 70 हजार पशुओं का कटान हो रहा है। घरेलू खपत को छोड़कर प्रतिदिन 680 टन मांस का निर्यात किया जा रहा है। पूरे देश से हर महीने 40 लाख टन मांस बाहर जा रहा है। अक्तूबर, 2011 से पहले तो यह आंकड़ा 1.20 करोड़ टन का था। उस समय अनेक देशों में भारतीय मांस जांच के बाद खराब पाया गया था, और तब एपीडा (कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) ने कुछ कड़ाई के साथ मांस-निर्यात इकाइयों पर शिकंजा कसा था ताकि यहां के मांस की गुणवत्ता पर अंगुली न उठे। एपीडा द्वारा पूरे देश में अनुमोदित 30 बूचड़खानों और 74 पैकेजिंग प्लांट में से उ.प्र. में क्रमश: 17 तथा 38 इकाइयां हैं। इन 17 व 38 इकाइयों में से तीन-चौथाई अकेले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही हैं।
एक कृषि-प्रधान देश में यह दुरावस्था है कि खेती के लिए गोबर की खाद का अकाल पड़ रहा है। छोटी जोत वाले किसानों को जताई के लिए पशु नहीं हैं। आम नागरिक दूध की कमी झेल रहा है। प्रति व्यक्ति प्रति दिन न्यूनतम 400 ग्राम दूध उपलब्ध होना चाहिए, पर वह उपलब्धता मात्र 100 ग्राम रह गयी है। मिलावटी दूध, घी और खोए के समाचारों ने आम आदमी का जीना मुहाल कर रखा है, पर सरकार का जोर मांस निर्यात पर ही है।
कोकराझार में मुस्लिम वोट बैंक के लिए
कांग्रेसी कारगुजारी से दोबारा भड़की हिंसा
असम/ मनोज पाण्डेय
असम के बोडोलैण्ड टेरीटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट्स (बीटीएडी) अंचल में अगस्त में हुई साम्प्रदायिक हिंसा में मरने वालों के परिजनों के आंसू अभी सूखे भी नहीं थे कि राज्य की कांग्रेस सरकार के रवैये के कारण एक बार फिर यह क्षेत्र हिंसा की चपेट में आ गया है। दोबारा भड़की हिंसा में अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है। लोगों का मानना है कि कांग्रेस पार्टी और प्रदेश के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने यदि समझदारी का परिचय दिया होता तो कोकराझार में हिंसा की पुनरावृत्ति न हुई होती। दरअसल मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने केन्द्र सरकार के कानों में ऐसा मंत्र फूंका कि केन्द्र सरकार ने अचानक बीटीएडी क्षेत्र में सेना की तैनाती व अवैध हथियार जब्त करने का कड़ा निर्देश दे दिया। इस निर्देश के जारी होने के बाद 17 नवम्बर की सुबह पुलिस अधिकारियों के एक दल ने बोडो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के कार्यकारी सदस्य व वरिष्ठ बोडो नेता मोनो कुमार ब्रह्म उर्फ जायला के घर छापा मारा और उनके शयन कक्ष से दो एके-47 रायफल, उसकी एक मैगजीन और 60 कारतूस बरामद होने की बात कहकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। अचानक हुई छापेमारी की कार्रवाई से राजनीतिक गलियारों में हड़कम्प मच गया। इस घटना की तीव्र निन्दा करते हुए चंदन ब्रह्म, विश्वजीत दैयारी सहित कई शीर्ष नेताओं ने जायला के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा गंभीर षड्यंत्र रचे जाने की आशंका जतायी। उधर मोनो कुमार ब्रह्म की पत्नी रेनु प्रभा ब्रह्म ने उक्त घटना को कांग्रेसी-पुलिसिया साजिश बताते हुए अपने पति की अलोकतांत्रिक ढंग से की गई गिरफ्तारी के विरुद्ध स्थानीय मुख्य दण्डाधिकारी (सीजेएम) के समक्ष याचिका दर्ज कर न्याय की गुहार लगायी है।
इस बीच बीटीएडी अंचल में दोबारा हुई हिंसा के बाद पुलिस महानिदेशक श्री चौधरी ने भी ग्रामीण अंचलों का दौरा करने के साथ ही वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों व बीटीएडी प्रशासन के साथ बैठक कर स्थिति का जायजा लिया। उधर हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दिया गया है और स्थिति पर नियंत्रण के लिए सेना की पांच कंपनियां तैनात कर दी गयीं हैं। स्थानीय राजनेताओं का मानना है कि राज्य के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई अब सरकार में शामिल बोडो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) से किनारा करने की जुगत में लगे हुए हैं। क्योंकि बीटीएडी अंचल में भड़के दंगों के दौरान विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री तरुण गोगोई पर जमकर निशाना साधा था। इसके साथ ही पूरे असम में कांग्रेस विरोधी हवा बहने लगी है, जिसके कारण मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के नीचे से कुर्सी लगभग खिसक ही चुकी थी, पर कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया से सहारा मिलने के बाद उनकी स्थिति कुछ संभली है। लेकिन बीटीएडी अंचल में पुन: हिंसा भड़कने के बाद अपनी कुर्सी को खतरे में पड़ता देख मुख्यमंत्री तरुण गोगोई व 'कांग्रेसी गले की हड्डी' बन चुके बोडो पीपुल्स फ्रंट को निकाल फेंकने पर आमादा है। इसके साथ ही उन्होंने बिखरे मुस्लिम वोट बैंक को पुन: एकत्रित करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। यानी एक तीर से दो निशाने- बोडो पीपुल्स फ्रंट से किनारा व अपने मुस्लिम बोट बैंक को बचाना। कांग्रेस के रचे इस चक्रव्यूह में सबसे पहले बोडो नेता मोनो कुमार ब्रह्म फंस गये हैं। इस घटना के बाद व कांग्रेस की स्वार्थपूर्ण राजनीति को देखते हुए बीटीएडी के समस्त बोडो नेताओं में आशंका व आतंक का माहौल है।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से ही लोकतंत्र मजबूत हुआ
–लालकृष्ण आडवाणी
केरल के प्रसिद्ध भारतीय विचार केन्द्रम् की 30वीं वर्षगांठ पर पिछले दिनों राजधानी तिरुअनंतपुरम् में एक भव्य आयोजन हुआ। इस आयोजन के मुख्य वक्ता थे पूर्व प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी। इस धीर-गंभीर चिंतन कार्यक्रम में श्री आडवाणी ने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा का बेबाक चित्रण करते हुए अपनी पार्टी भाजपा के आदर्श का पुन: स्मरण कराया- स्वच्छ राजनीति और सुशासन। उन्होंने कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में जनता इन्हीं दो आयामों पर अपने राजनीतिक नेतृत्व को परखती है। श्री आडवाणी ने कहा- 'अगर आप सत्ता में हैं तो अच्छा शासन दीजिए, यदि आप सत्ता में नहीं हैं तो आप राजनीति को स्वच्छ रखने का प्रयास करते रहिए।' किसी पार्टी और घोटाले का नामोल्लेख किए बिना श्री आडवाणी ने कहा कि सुशासन और स्वच्छ राजनीति के लिए न तो सहयोगी दलों के दबाव में आने की बाध्यता होती है और न ही अपने सिद्धान्तों से समझौता करने की मजबूरी होती है। यह कहने के पीछे श्री आडवाणी का इशारा केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस की ओर था, जिसके प्रधानमंत्री ने स्वयं को 'मजबूर' बताते हुए घटक दलों के दबाव का हवाला दिया था।
उन्होंने वंशतंत्र और परिवारवाद को बढ़ावा देने को लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताते हुए कहा कि अब परिवर्तन आने लगा है। परिवर्तन के लिए दृढ़ संकल्प-शक्ति के उदाहरण के तौर पर सुश्री ममता बनर्जी का नाम लिए बिना उन्होंने कहा- 'केवल एक व्यक्ति की दृढ़ता और संकल्प शक्ति के कारण प. बंगाल में माकपा अंतत: परास्त हो गई।' इसी के साथ उन्होंने अनेक उदाहरणों से स्थापित किया कि मार्क्सवादी विचारधारा और मार्क्सवादी पार्टियां इस देश में अप्रासंगिक हो चुकी हैं। उन्होंने याद किया कि जब वे पहली बार सांसद बनकर संसद पहुंचे थे तब कुछ कम्युनिस्ट मित्र उपहास उड़ाते हुए पूछते थे कि 'आपकी पार्टी का क्या कोई भविष्य है।' अब देखिए पूरे देश में कम्युनिस्ट कहीं नहीं हैं? उनकी कोई शक्ति नहीं है? इसी के साथ श्री आडवाणी ने जोड़ा कि हम कम्युनिस्टों के समान 'राजनीति में छुआछूत' नहीं मानते। हमारा वैचारिक मतभेद किसी से भी हो सकता है, पर राजनीतिक शत्रुता किसी से भी नहीं है।
भारत में लोकतंत्र के पुष्पित, पल्लवित व सुवासित होने के पीछे के सत्य को व्याख्यायित करते हुए श्री आडवाणी ने कहा कि यह भारत का अनूठा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ही है जो अनेक विभिन्नताओं के बावजूद विभिन्न समाजों-समुदायों को सहनशील बनाता है। इस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मूल हिन्दुत्व की विचारधारा में ही है। जबकि वैश्विक जगत में अनेक संस्कृतियां-विचारधाराएं निरन्तर संघर्षरत हैं तब हिन्दुत्व की विचारधारा अधिक प्रासंगिक होती दिख रही है। हिन्दुत्व की इस विचारधारा के प्रचार-प्रसार में संलग्न भारतीय विचार केन्द्रम की प्रशंसा करते हुए और इस क्षेत्र में कार्यरत सभी सामाजिक संगठनों का आह्वान करते हुए श्री आडवाणी ने कहा कि कार्य की गति बढ़ाएं, परिवर्तन शीघ्र आएगा। समारोह में सुप्रसिद्ध चिंतक व भारतीय विचार केन्द्रम के निदेशक श्री पी. परमेश्वरन, सुप्रसिद्ध इतिहासविद् श्री एम.जी.एस. नारायणन मंचस्थ थे तो सभागार में सैकड़ों चिंतक, विचारक, लेखक, साहित्यकार, इतिहासकार, सामाजिक कार्यकर्ता व भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।
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