कोई दिया जलाया जाए
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बड़ा अंधेरा है मित्र! कोई दिया जलाया जाए।
रोशनी का पर्व है, रोशनी को घर बुलाया जाए।
अंधेरे को कब–किसने यहां मुंह लगाया है।
घुसपैठिए–सा यह घर में घुस आया है।
साजिश जो भी रच रहे हैं अंधेरे के साथ
सूरज को उन्हीं ने आज घर में छुपाया है।
सबक सूरज को अब ये सिखाया जाए–
दिया सूरज को नहीं; सूरज दिये को दिखाया जाए।
पांव पसार चुका है अंधेरा अब घर–घर में।
महत्व दिए का रहा नहीं अब हमारी नजर में।
झालरें बिजली की लटक रहीं जिनके द्वार पर–
नहाए हैं उनके महल, अब रोशनी के सरोवर में।
धर्म मानव का अब यूं निभाया जाए
रोशनी से हर झोपड़ी को नहलाया जाए।
तम घरों से मिटाने का दावा जो कर रहे हैं।
घर रोशनी से वे अपना रोज भर रहे हैं।
देखे जब भी घर उनके आंखें चुंधिया गईं
जो रोशनी के चर्चित सौदागर रहे हैं।
उजाले की संसद में प्रश्न अंधेरे का उठाया जाए
अहसास अंधेरे का भी अब सूरज को कराया जाए।
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