|
आर्थिक घोटालों में वाढरा को फंसते देख कांग्रेस किस तरह बेचैन है और उनके बचाव को कितनी बेताव, हरियाणा के पंजीकरण महानिरीक्षक अशोक खेमका के तबादले से यह सामने आ गया है, जिन्होंने वाढरा और डीएलएफ के बीच हुए जमीनों के सौदों की जांच के आदेश दिए थे। इससे साफ है कि कांग्रेस वाढरा को बचाने में पूरी तरह जुटी है और कांग्रेस की हरियाणा सरकार उसका माध्यम बन रही है। कांग्रेस के कई पदाधिकारियों और संप्रग सरकार के मंत्रियों की फौज तो पहले से ही वाढरा के बचाव में लगातार बयानवाजी करती रही है। हो भी क्यों न, आखिर वाढरा पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद जो हैं। पर भ्रष्टाचार की आंच सोनिया गांधी के घर तक पहुंच ही गई है। इस आंच में दस जनपथ के खास वह सलमान खुर्शीद भी हाथ जला बैठे हैं जो सोनिया परिवार के लिए जान तक देने की पेशकश करते हैं।
आम चलन की भाषा या व्यंग्य में 'सरकारी दामाद' उसे समझा या बताया जाता जो किसी न किसी अपराध अथवा किन्हीं न किन्हीं कारणों से हवालात की हवा खा रहा हो। लेकिन जब बात असली 'सरकारी दामाद' यानी राबर्ट वाढरा की हो तो उनके द्वारा किया गया 'अपराध' भी 'व्यापार' बन जाता है और पूरी की पूरी सरकार जांच के बिना ही उन्हें पाक-साफ घोषित कर देती है और सरकार के सरदार (प्रमुख) हमेशा की तरह 'मौन' मोहन सिंह बने हुए हैं।
सामान्यत: '10 नम्बरी' शब्द चलाबाज लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है। लेकिन दिल्ली के 10, जनपथ रोड पर रहने वाला और देश की सत्ता पर 'स्वाभाविक अधिकार' समझने वाला परिवार प्रधानमंत्री पद पर रबड़ की मुहर बैठाकर 'त्याग' का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत कर रहा था। पर उस 'त्याग' के पीछे छिपी चालबाजी अब जनता के सामने आती जा रही है। अब तक दबी जुवान से यही कहा जाता और समझा जाता था कि चाहे 'कामनवेल्थ' (सामूहिक सम्पदा) लूटने वाले सुरेश कलमाडी हों या 2 जी के कर्ताधर्ता बताए जाने वाले ए. राजा, इन सबके तार '10 नम्बर' से ही जुड़े हैं। सबको पता है कि कोई भी 'बीट कांस्टेबल' (नाके पर खड़ा सिपाही) थानेदार तक हिस्सा पहुंचाए बगैर 'हफ्ता' नहीं वसूल सकता। इसीलिए 'कामनवेल्थ' में कलमाड़ी को बलि का बकरा बनाकर सोनिया गांधी ने अपनी चहेती दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को बचा लिया, जबकि शुंगुलू कमेटी ने उन्हें भी 'लूट में बराबर को हिस्सेदार' बताया था। 2जी घोटाले में भी राजा और कनीमोझी जेल गए और सोनिया के चहेते चिदम्बरम का बाल भी बांका नहीं हुआ। अब जेल से छूटे राजा और कलमाड़ी संसद की स्थायी समितियों के 'माननीय सदस्य' बन गए हैं। नैतिकता व त्याग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण यह है कि माया और मुलायम, जिन दोनों के कंधों पर सवार होकर सोनिया और उनका परिवार सत्ता सुख का स्वाद चख रहा है, वे दोनों ही आय से अधिक सम्पत्ति रखने के गुनाहगार हैं, सीबीआई ('कांग्रेस ब्यूरो आफ इंवेस्टीगेशन') की 'जांच' जारी है।
लेकिन अब जबकि 10, जनपथ के 'सरकारी दामाद' की काली करतूतों से पर्दा उठ चुका है वहीं 'बाटला हाउस कांड' में 'सोनिया के आंसू' देख चुके उनके अत्यंत करीबी कानून मंत्री सलमान खुर्शीद भी 'विकलांगों के नाम पर सरकारी लूट' के लिए प्रथम दृष्ट्या दोषी पाये जा रहे हैं। इससे साफ होता जा रहा है कि संप्रग-2 में भ्रष्टाचार-दर-भ्रष्टाचार के खुलते मामलों का स्रोत कहां है? पर उस स्रोत के कारण ही 'कोयले की कालिख' में रंग चुके 'मजबूर प्रधानमंत्री' के रहते किसी भी जांच की आस करना बेमानी ही होगा। पिछले 5 वर्षों में 50 लाख रुपए से 300 करोड़ रुपए के मालिक बन चुके 'कुशल व्यापारी' राबर्ट वाढरा की तरक्की का रास्ता साफ बता रहा है कि सरकार के दबाव में रियल एस्टेट से जुड़ी नामी गिरामी कम्पनी डीएलएफ उन पर किस कदर मेहरबान थी। (देखें बाक्स) डीएलएफ के पैसे से ही जमीन खरीद कर डीएलएफ को ही बेचकर वाढरा ने कमा लिया मोटा मुनाफा। पता नहीं डीएलएफ वाढरा के साथ कौन-सा 'कारोबार' कर रहा था। यह तो नहीं माना जा सकता कि डीएलएफ को करोबार करना ही नहीं आता। पर वाढरा ने इसे छिपाने के लिए अपनी कम्पनी की 'बैलेंस सीट' में कारपोरेशन बैंक से 7 करोड़ 56 लाख रुपए 'ओबर ड्राफ्ट' के रूप में मिलने का जो झूठ दर्ज किया था, उस पर से कारपोरेशन बैंक की उसी शाखा ने पर्दा उठा दिया। पर डीएलएफ-वाढरा के इस गोरखधंधे की जांच का आदेश देने वाले वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अशोक खेमका का ही हुड्डा सरकार ने तबादला कर साफ कर दिया कि कार-मोटरसाइकिल- फिटनेश और फैशन के शौकीन 'दामाद बाबू को तंग मत करो- वे व्यापार कर रहे हैं।'
उधर वाढरा ने स्वयं को निर्दोष बताते हुए लिखा 'ए मैंगोमैन इन बनाना रिपब्लिक'। 'बनाना रिपब्लिक' लातिनी अमरीकी शब्द है जिसका अर्थ होता है भ्रष्टाचार, माफिया राज और राजनीतिक अराजकता। पर अपने को आम जैसा सरस फल बताकर, जिसे हर कोई खा जाना चाहता हो, वाढरा ने धोखे से ही सही अपनी सासू मां द्वारा संचालित राज की सचाई को 'बनाना रिपब्लिक' कहकर व्यक्त कर दिया।
उधर अपने नाना और पूर्व राष्ट्रपति डा. जाकिर हुसैन के नाम पर 'ट्रस्ट' (न्यास) बनाकर विकलांगों के ट्रस्ट (विश्वास) को चोट पहुंचा रहे केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद का भी काला चिठ्ठा बताता है कि सन् 2010 में उनके 'न्यास' ने भारत के सामाजिक कल्याण और अधिकारिता मंत्रालय से 71 लाख रु. की अनुदान राशि प्राप्त की। इस धन से उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र फर्रुखावाद व आस पास के 17 जिलों में सेवा कार्य करने का दावा किया। पर पैर से विकलांग लोगों को तिपहिया साइकिल और मूक-बधिर (गूंगे-बहरे) लोगों को सुनने के लिए 'हीयरिंग ऐड' दिए। शिविर लगाकर इसका वितरण करने की झूठी रपट तैयार कर, उस पर जिला कल्याण अधिकारी, मुख्य चिकित्सा अधिकारी आदि के फर्जी दस्तखत कर, झूठी मुहर लगाकर केन्द्रीय सामाजिक कल्याण एवं अधिकारिता मंत्रालय को भेजी गई और 2011 के लिए फिर 68 लाख रुपए झटक लिए। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी को शक हुआ, उसने उ.प्र. सरकार से उस रपट को सत्यापित करने को कहा, राज्य सरकार ने जिलाधिकारी के माध्यम से रपट तलब की तो मामला शीशे की तरह साफ हो गया कि 'अशक्तों का पैसा खाकर सशक्त बन रहे हैं देश के कानून मंत्री।' और जब देश के कानून मंत्री ही घपलों-घोटालों के 'मास्टर माइंड' हों और उसके सामने आने पर 'गुण्डों जैसी भाषा' बोलने लग जाएं तो आप स्वयं समझ सकते हैं कि सरकारी दामाद पर अंगुली उठाने का परिणाम क्या हो सकता है?
नेहरू वंश के इस 'त्यागी परिवार' में सिर्फ वाढरा ही नहीं हैं जो 'जमीन का व्यापार' कर रहे हैं, स्वयं प्रियंका पर हिमाचल प्रदेश के वीरभद्र सिंह कृपा कर चुके हैं और एक अति सुरक्षित समझे जाने वाले क्षेत्र में वर्षों से प्रियंका-वाढरा का 'सपनों का महल' तैयार हो रहा है। इधर सब मोर्चों पर बुरी तरह नाकाम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा इसलिए ही हरियाणा के मुख्यमंत्री बने हुए हैं क्योंकि वे दिल्ली से सटे इस प्रदेश में करोड़ों की जमीन कौड़ियों के दाम राहुल गांधी को, वाढरा को और उल्लावास में राजीव गांधी फाउंडेशन को दिलाने का काम कर रहे हैं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने राहुल की जमीन के दस्तावेज दिखाए तो राशिद अल्वी ने कहा- 'जरूरत से ज्यादा स्टाम्प ड्यूटी देकर राहुल जी ने खरीदी जमीन।' पर एक प्रश्न का उत्तर आम आदमी खोज रहा है कि जब दिल्ली में कुछ सरकारी बंगले 'स्मृति' के नाम पर कथित 'गांधी परिवार' की व्यक्तिगत सम्पदा बन चुके हों, नेहरू-इंदिरा- राजीव के नाम पर बने न्यासों की अकूत सम्पदा और उनके भवनों के मालिक भी सोनिया-राहुल हों, तो गुडगांव (हरियाणा) के गांवों में किसानों की जमीन खरीदने की जरूरत ही क्या थी? और यह जमीन बाद में किसी 'रियल एस्टेट' के बड़े कारोबारी को बेच दी जाए तो उसे आप क्या समझेंगे परिवार का त्याग-व्यापार या लूट का बाजार।
खुर्शीद की भी खुल गई पोल–पट्टी
जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट का दावा
1. बुलंदशहर के बुरहाना गांव में रहने वाली गूंगी-बहरी और पैरों से अशक्त 17 वर्षीय प्रीति को बैसाखी दी गई।
2. चितसोना (बुलंदशहर) के प्रदीप कुमार को तिपहिया दिया गया।
3. लड्डूपुर गांव की 83 वर्षीय विमला देवी को सुनने की मशीन दी गई।
4. नगला उग्रसेन के शीशपाल को बैसाखी दी।
5. फर्रुखावाद में कई शिविर लगाकर सामान वितरित किया।
6. इटावा में भी लगाए गए शिविर।
7. मैनपुरी में शिविर लगाने का दावा, फोटो भी हैं।
8. दिल्ली की 'प्रेस कांफ्रेंस' में लाभार्थियों को प्रस्तुत कर दिखाई सचाई
जांच से सामने आया सच
1. प्रशासन ने भी माना दी गई, पर प्रीति और उसका परिवार इससे इनकार कर रहा है।
2. चितसोना में ऐसा कोई प्रदीप कुमार नहीं मिला।
3. लड्डूपुर के ग्राम प्रधान तक नहीं जानते ऐसी किसी विमला देवी को।
4. पिछले साल ही शीशपाल का देहांत हुआ, बेटे के मुताबिक ट्रस्ट का दावा झूठा।
5. फर्रुखावाद के जिला कल्याण अधिकारी राम अनुराग वर्मा जाकिर हुसैन ट्रस्ट नाम से ही अपरिचित। खर्च का हिसाब-किताब जानना दूर की बात
6. इटावा के जिला चिकित्सा अधिकारी ने कहा- रपट पर मेरे हस्ताक्षर नहीं।
7. मैनपुरी के विकलांग कल्याण अधिकारी तपस्वी लाल ने कहा-झूठ,मेरे हस्ताक्षर फर्जी
8. सच सामने आ ही गया जब साइकिल पर चढ़ी 'पन्नी' तक नहीं उतरी पाई गई, पता चला कि सुबह ही दी गई है।
टिप्पणियाँ