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जनाधारविहीन निर्मल खत्री को कांग्रेस ने बनाया प्रदेश अध्यक्ष
उ.प्र.में कांग्रेसी घाघों से निपट पाना होगा मुश्किल
शशि सिंह
उत्तर प्रदेश में 1990 से लगातार हर चुनाव हार रही कांग्रेस ने एक ऐसे नेता को राज्य की कमान सौंपी है जिसका फैजाबाद से आगे कोई राजनीतिक वजूद ही नहीं है। कांग्रेस के हाल ही में मनोनीत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल खत्री ऐसे कांग्रेसी हैं जो 1991 से लगातार फैजाबाद संसदीय सीट हारते रहे। 2009 के लोकसभा चुनाव में स्थानीय समीकरणों के चलते किसी तरह जीत गए। अपने ऐसे थके हुए सांसद को कांग्रेस ने अगले लोकसभा चुनाव को जिताने का जिम्मा सौंपा है। इसीलिए जाति, बिरादरी और संप्रदाय की राजनीतिक करने के अभ्यस्त कांग्रेसी स्वयं कहने लगे हैं कि जब राज्य में सपा और बसपा जैसे धुर जातिवादी दल सक्रिय हैं तब निर्मल खत्री को किसे जोड़ने के लिए लाया गया है।
निर्मल खत्री की ताजपोशी दरअसल प्रदेश कांग्रेस में निचले स्तर तक पहुंच चुकी गुटबाजी का नतीजा माना जा रहा है। प्रदेश की राजनीति से नारायण दत्त तिवारी के जाने के बाद पिछले 22 साल से कांग्रेस पर प्रतापगढ़ के निवासी और वहां की रामपुर खास सीट से विधायक होते आ रहे प्रमोद तिवारी का प्रत्यक्ष-परोक्ष वर्चस्व रहा है। विधानसभा चुनाव में पार्टी को कितनी ही कम सीटें मिलीं हों, रसातल तक पहुंच चुकी कांग्रेस में भी उनका प्रभाव बना रहा। वह हमेशा कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे और प्रदेश अध्यक्ष से उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा। उन्होंने कभी नहीं चाहा कि कांग्रेस का कोई मजबूत अध्यक्ष बने। अलबत्ता वे खुद ही अध्यक्ष बनना चाह रहे थे। लेकिन कांग्रेस को 'अंदर से खोखला करने' का आरोप झेल रहे प्रमोद को कांग्रेस आलाकमान ने अध्यक्ष लायक नहीं समझा। इसका कारण है उनका समझौतावादी राजनीतिक नजरिया। प्रदेश में किसी भी दल की सरकार रही हो, उससे उनके रिश्ते कभी खराब नहीं रहे और न ही कांग्रेस कोई बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकी। निवर्तमान अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने कुछ कोशिश की तो उन्हें भी विफल कर दिया गया। एक तरफ वह बसपा से लड़ने का दम भरती रहीं तो दूसरी ओर प्रमोद तिवारी पर यह आरोप लगा कि वह सरकार से दोस्ताना रिश्ता रखे हुए हैं। इससे लोगों में सरकार और कांग्रेस के बीच नूरा-कुश्ती का संदेश गया। नतीजा पार्टी की भारी पराजय हुई। इसीलिए लाख कोशिशों के बाद भी कांग्रेस ने इस बार प्रमोद तिवारी को विधायक दल का नेता नहीं बनाया। एक बिल्कुल गुमनाम चेहरे प्रदीप माथुर को नेता विधायक दल बनाया गया।
ऐसी कांग्रेस में जान फूंकने में नए प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री कैसे सफल होंगे, यह तो उन्हें भी मालूम नहीं। वह प्रमोद तिवारी जैसे घाघ कहे जाने वाले राजनेता से कैसे निपटेंगे, यह उन्हें नियुक्त करने वाला आलाकमान भी नहीं जानता। बहरहाल फैजाबाद तक सीमित रहने वाले निर्मल खत्री पर मृतप्राय: पड़ी कांग्रेस में जान फूंकने का जिम्मा सौंपा गया है। केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा, जितिन प्रसाद, श्री प्रकाश जायसवाल, आरपीएन सिंह व सांसद जगदंबिका पाल जैसे दिग्गजों के दांव-पेंच से वे कैसे निपट पाएंगे, कहना मुश्किल है। हालांकि उन्होंने कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का नाम लेकर आगे बढ़ने की घोषणा की है, शायद इसलिए कि बाकी दिग्गज कांग्रेसी सहमे रहें, लेकिन अमेठी और रायबरेली तक सिमट गई कांग्रेस में इसकी चिंता शायद ही कोई बड़ा नेता करे।
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