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संजीव कुमार
ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश घरों में मिट्टी के चूल्हे में खाना पकाया जाता है। इनमें लकड़ी, उपले या उसी तरह की अन्य वस्तुएं ईंधन के रूप में प्रयोग की जाती हैं। उनके जलने से धुआं काफी होता है और इस कारण खाना पकाने वाली महिलाएं अनेक बीमारियों की चपेट में आ जाती हैं। ऐसी महिलाएं फेफड़े संबंधी बीमारी, रतौंधी आदि बीमारियों से परेशान रहती हैं। साथ ही धुएं के कारण पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। यह प्रदूषण कितना होता है इसका अंदाजा ग्रामीण क्षेत्रों में उस शाम को लगाया जा सकता है, जब उमस भरी गर्मी हो।
महिलाओं के स्वास्थ्य और दूषित पर्यावरण को देखते हुए अशोक ठाकुर नामक एक व्यक्ति ने एक ऐसे धुआं-रहित चूल्हे का आविष्कार किया है, जो केवल धान की भूसी से जलता है। यह चूल्हा एक किलो भूसी से एक घंटे तक जलता है। चूंकि गांवों में हर घर में धान की भूसी रहती ही है इसलिए यह चूल्हा ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रहा है। अशोक ठाकुर मोतिहारी (बिहार) जिले के मिसकॉट रमणा गांव के रहने वाले हैं और अपने गांव में ही लोहारगिरी का काम करते हैं। धुंआ-रहित चूल्हे के आविष्कार के लिए आशोक ठाकुर की प्रशंसा राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल और बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार ने की है। पिछले दिनों वे अमदाबाद की एक संस्था के सहयोग से दक्षिण अफ्रीका गए और वहां अपने चूल्हे का प्रदर्शन एक प्रदर्शनी में किया। अशोक ठाकुर को विश्वास है कि एक दिन उनका प्रयास रंग अवश्य लाएगा और पर्यावरण बचाने का उनका सपना पूरा होगा।
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