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दुनिया के मंगल के लिए हिन्दू समाज को संगठित करना होगा

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Nov 19, 2011, 12:00 am IST
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सुंदरवन में स्वयंसेवकों एवं नागरिकों का विशाल समागम

दिंनाक: 19 Nov 2011 13:48:04

सुंदरवन में स्वयंसेवकों एवं नागरिकों का विशाल समागम

–मोहनराव भागवत,  सरसंघचालक, रा.स्व.संघ

'हमें देश एवं दुनिया के मंगल के लिए हिन्दू समाज को संगठित करने की आवश्यकता है। पिछले डेढ़-दो हजार वर्षों में विश्व में अनेक प्रकार की राष्ट्रव्यवस्था को परखा गया। राजा-महाराजा, सुल्तान-बादशाह, पूंजीवादी एवं उसकी प्रतिक्रिया में साम्यवादी व्यवस्था एवं आज की नई पूंजीवादी व्यवस्था भी। लेकिन व्यक्ति का भला नहीं हुआ, पारस्परिक द्वंद्व-विवाद, लड़ाई-झगड़ा एवं पर्यावरण का प्रदूषण भी समाप्त नहीं हुआ। सारे भेदों और स्वार्थों से ऊपर उठकर दुनिया को अपनाने के लिए जिस विचार-चिंतन की आवश्यकता है, वह भारत के अलावा और किसी के पास नहीं है।' उक्त उद्गार रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने गत दिनों पश्चिम बंगाल के सुंदरवन में स्वयंसेवकों एवं नागरिकों के विशाल समागम को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। कार्यक्रम में सुंदरवन जिले की 124 शाखाओं के 1800 स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में भाग लिया। करीब 10 हजार आम नागरिक भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे।

श्री भागवत ने आगे कहा कि भारत में हिन्दू समाज बहुसंख्यक है। प्रजातंत्र में बहुसंख्यक जो कहेगा, वही होगा। हिन्दू समाज को देश का भला करने के लिए अपने आप को गुणसम्पन्न बनाना होगा। सभी भेदों से ऊपर उठकर एकत्रित होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व सबको संगठित कर सकता है। 'हिन्दुत्व' किसी पूजा पद्धति या उपासना का नाम नहीं है, अपितु जीवन पद्धति है। इसमें शमिल होने के लिए किसी को अपनी पूजा पद्धति या मत-पंथ नहीं छोड़ना पड़ता। विभिन्न देवी-देवता, भाषा, खान-पान, रीति-रिवाज मानने वाले इसमें रह सकते हैं। हमें सभी विविधताओं को समानता से देखकर आदर पूर्वक, भेदभाव, स्वार्थ और दलीय राजनीति से ऊपर उठकर एक होना पड़ेगा। श्री भागवत ने कहा कि विविधता में एकता की दृष्टि ही हिन्दुत्व है। भारत के बाहर सभी देश कट्टरपंथी हैं। वे कहते हैं 'उन्हीं का कहना ठीक, दूसरों का गलत। हमारी परम्परा कहती है 'हमारी दृष्टि से हम सही, तुम्हारी से तुम सही'। अपनी-अपनी राह पर चलकर सबको मिल-जुलकर रहना पड़ेगा। तभी जीवन की धारणा बन सकती है। उन्होंने कहा कि 'धर्म' वही है, जो जीवन को धारण करके रखता है। उपासना किसी की भी करो, पर परोपकार करो। दूसरों को कष्ट मत दो, भोग नहीं संयम का पालन करो।

श्री भागवत ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने देश के लिए अनेक कष्टों को सहन किया। इन पूर्वजों का स्मरण करके उन्हें अपना आदर्श मानने वाला ही हिन्दू है। उन विचारों का अनुसरण करते हुए पूरे हिन्दू समाज को अपना मानकर भारत को परमवैभव तक पहुंचाने का प्रयास करना, उन्हें अच्छा गुणसम्पन्न बनाना, यही संगठन है। इसी आधार पर पूरे हिन्दू समाज को संगठित करना। उन्होंने कहा कि रा.स्व.संघ हिन्दू समाज को एकत्रित करना चाहता है, जो संघ के विरोधी या आलोचक हैं उन्हें भी। भारत में निवास करने वाले भारतमाता के पुत्र हैं। एक समान पूर्वज और परम्परा के अनुयायी हैं। सबकी राष्ट्रीयता 'हिन्दू' है। यह मानकर चलें कि देश और संस्कृति सबके ऊपर है। उन्होंने कहा कि नित्य-नियमित छोटे-छोटे अभ्यास करना, परस्पर सौहार्द, सम्पर्क, परोपकार की मनोभावना। इस आधार पर समाज को संगठित करना, संघ का काम है। यह काम भारत और विश्व की सुख शांति के लिए आवश्यक है। दुनिया अगर सुखी नहीं होगी तो भारत भी सुखी नहीं होगा। कार्यक्रम में उपस्थित गण्यमान्य नागरिकों से श्री भागवत ने संघ की शाखा में जाने का आह्वान किया।

मंच पर श्री भागवत के साथ रा.स्व.संघ के क्षेत्र संघचालक श्री रणेन्द्रलाल बंद्योपाध्याय, प्रांत संघचालक श्री अतुल कुमार विश्वास, विभाग संघचालक डा. जयंत राय चौधरी एवं जिला संघचालक श्री कर्णधर माली भी आसीन थे। कार्यक्रम के पश्चात श्री भागवत ने शहर के  गण्यमान्य नागरिकों से अलग से भेंट भी की।  बासुदेब पाल

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