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मौलाना मौदूदी की पुस्तकों पर सरकारी प्रतिबंधआतंकवाद के विरुद्ध बंगलादेश की साहसिक पहलमुजफ्फर हुसैनआज दुनिया भले ही हर स्थान पर मुस्लिम कट्टरवाद को देख रही हो लेकिन यह रोग बहुत पहले से मुस्लिम राष्ट्रों में रहा है। इसलिए सर्वप्रथम कमाल पाशा ने इस पर कड़े आघात किये और तुकर्#ी को सेकुलर देश घोषित करके इस्लामी आतंकवाद को उठने नहीं दिया। लेकिन आज वही तुर्किस्तान वर्तमान प्रधानमंत्री तैय्यब अरदगान के नेतृत्व में कट्टरवाद की राजनीति कर रहा है। इरुााइल उसके इस कदम को किस हद तक सफल होने देगा यह तो समय ही बतलाएगा लेकिन तुकर्#ी के संविधान में सेना बहुत अधिक शक्तिशाली है, इसलिए समय रहते कार्रवाई करके वह तुकर्#ी के सेकुलर चरित्र को बचा सकती है। मुस्लिम कट्टरवादियों का निशाना बहुत पहले इजिप्ट रहा है। इजिप्ट में राजशाही की समाप्ति के बाद जब कर्नल नासिर की समाजवादी सरकार अस्तित्व में आई, उस समय सैयद कुतुब की जिहादी संस्था अलबुरहान ने नासिर के विरुद्ध झंडा बुलंद किया।जमाते इस्लामी की बुनियादनासिर ने इस जिहादी संगठन पर न केवल प्रतिबंध लगा दिया बल्कि उसके अनेक नेता और कार्यकर्ताओं को फांसी पर लटका दिया। केम्पडेविड समझौते के कारण अनवर सादात की हत्या इसी संगठन ने करवाई। सैयद कुतुब और अलबुरहान को वर्तमान आतंकवाद की मां कहा जाता है। क्योंकि इन्हीं रेखाओं पर भारत में जमाते इस्लामी की बुनियाद पड़ी जो इस उपखंड में मुस्लिम कट्टरवाद की वाहक है। जमाते इस्लामी के संस्थापक थे मौलाना मौदूदी जो औरंगाबाद में जन्मे थे, विभाजन से पूर्व ही वे लाहौर चले गए जहां 1972 में उन्होंने जमाते इस्लामी की बुनियाद डाली।अपनी मृत्यु तक वे अपनी इस संस्था के अमीर बनकर रहे। जिन्हें हम साधारण भाषा में अध्यक्ष कह सकते हैं। विभाजन से पूर्व ही मौदूदी का प्रभाव बढ़ने लगा था। उन्होंने असंख्य पुस्तकें लिखीं और भारतीय उपखंड के मुसलमानों को एक ही संदेश दिया कि उनकी मुक्ति निजामे मुस्तफा में है। यानी आज तालिबान और अन्य जिहादी जिस इस्लामी सरकार की स्थापना करना चाहते हैं उसे किसी ने स्वर दिया था तो वे मौलाना मौदूदी ही थे। भारतीय उपखंड में उनकी जमात के सदस्य बढ़ते चले गए और अंतत: पाकिस्तान में जमाते इस्लामी एक राजनीतिक पार्टी बन गई। पाकिस्तान में आज उसका नेतृत्व हुसैन अहमद काजी कर रहे हैं। सैय्यद कुतुब के पदचिन्हों पर चलकर वे भारतीय उपखंड में इस्लाम के नाम पर क्रांति करके यहां इस्लामी राज कायम करना चाहते हैं।बंगलादेश में लोकतंत्र1971 में जब बंगलादेश बन गया तब पाकिस्तान के जमात समर्थकों ने इसकी शाखा ढाका में भी स्थापित कर दी। यह सब कुछ तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुटटो की हिदायत पर हुआ। कट्टरवादी पाकिस्तान के तत्व ढाका पहुंचने लगे और जमाते इस्लामी के मार्गदर्शन में सैनिक क्रांति की भूमिका तैयार करने लगे। एक रात बंगलादेश के जनक और प्रथम प्रधानमंत्री मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी। मुजीब के परिवार का कोई व्यक्ति नहीं बचा। उनकी बेटी और वर्तमान प्रधानमंत्री हसीना वाजेद इसलिए बच गर्इं क्योंकि वे विदेश में थीं। जनरल जियाउर्रहमान और जनरल इरशाद ने बंगलादेश को कट्टरवादी शिकंजे में कस दिया। लेकिन बंगाली स्वभाव एक दिन रंग लाया और वहां फिर से लोकतंत्र की स्थापना हो गई। इस समय हसीना वाजेद जो भारत समर्थक मानी जाती है, उनकी सरकार को अस्थिर करने के लिए जमाते इस्लामी के नेतृत्व में बंगलादेश में जितने भी कट्टरवादी तत्व हैं, वे सभी संगठित हो गए हैं। उनका यह प्रयास है कि बंगलादेश में पाकिस्तान समर्थक हवाएं बहनी चाहिए और बंगलादेश में इस्लामी ढंग की सरकार का गठन होना चाहिए। बंगलादेश की सरकार जानती है कि यह सब कुछ मौदूदी के विचारों के आधार पर हो रहा है। इसलिए यदि बंगलादेश को कट्टरवादी बनने से रोकना है तो जमाते इस्लामी के साहित्य पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। सरकार ने देश हित में यह निर्णय लेते हुए मौलाना मौदूदी के साहित्य को प्रतिबंधित कर दिया है। हसीना के इस कदम से जिहादी तत्व बौखला गए हैं लेकिन सरकार अपने निर्णय पर अटल है।उक्त कार्यक्रम के प्रथम चरण में सरकार ने आदेश दिया है कि जिन सरकारी कार्यालयों और पुस्तकालयों में मौलाना मौदूदी द्वारा लिखित साहित्य है, उसे वहां से तत्काल हटा दिया जाए। बंगलादेश की शायद ही कोई मस्जिद होगी जिसमें जमाते इस्लामी के संस्थापक की पुस्तकें न हो। सवाल यह उठता है कि मस्जिदों में कुरान रखने की परंपरा तो अवश्य है लेकिन वहां धर्म संबंधी पुस्तकों का क्या काम? इस्लाम में अनेक सम्प्रदाय हैं इसलिए इस्लामी आदेशों की व्याख्याएं भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। उसमें टकराव का अंदेशा रहता है। मस्जिदें तो केवल नमाज पढ़ने के पवित्र स्थल होते हैं इसलिए उसमें विभिन्न मान्यताओं का साहित्य विवादास्पद होकर झगड़े का कारण बन सकता है। इसलिए मौलाना मौदूदी के साहित्य को मस्जिदों में नहीं रखा जा सकता है।आतंकी पुस्तकों पर प्रतिबंधबंगलादेश सरकार के नेतृत्व में चलने वाली संस्था इस्लामिक फाउंडेशन के अध्यक्ष शमीम मोहम्मद अफजल ने आदेश प्रसारित किया है कि सैयद अब्दुल्ला मौदूदी की पुस्तकें गैर इस्लामी मानी जा रही हैं और उनसे आतंक फैलने का भय बना रहता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मौदूदी की पुस्तकें इस्लाम में सर्वमान्य नहीं हैं। अनेक पंथ और सम्प्रदाय उनसे अलग राय रखते हैं। इन पुस्तकों में इस्लाम के अनेक आदेश और उनके कार्यान्वित करने के जो तरीके बतलाए गए हैं उनसे सभी मुसलमान सहमत हों, यह आवश्यक नहीं है। हजरत पैगम्बर की हदीसें और मौदूदी द्वारा कुरान का किया गया अनुवाद भी सभी लोगों को मान्य नहीं है। कई आदेश केवल सांकेतिक हैं। कोई भी विद्वान अपनी मान्यता और अपने स्वभाव के अनुसार उसका अर्थ निकाल सकता है। इसलिए सरकार बंगलादेश की लगभग 24 हजार मस्जिदों में से इन किताबों को हटा लेने का आदेश दे चुकी है। बंगलादेश में मस्जिदों की संख्या 24 हजार हो, यह आवश्यक नहीं है। उससे भी अधिक मस्जिदें हैं। लेकिन जिनमें मौदूदी का साहित्य है, उन्हीं को मस्जिदों से हटा लेने के आदेश दिये गए हैं। ऐसा माना जाता है कि बंगलादेश में लगभग तीन लाख मस्जिदें हैं। ऐसा अनुमान है कि सरकारी कोष से जिन मस्जिदों का संचालन होता है वे अधिकतर जमाते इस्लामी से संबंधित हैं। सरकारी सहायता से चलने वाली मस्जिदों की संख्या 24 हजार बतलाई जाती है। इस्लामिक फाउंडेशन का कहना है कि मौलाना मौदूदी की पुस्तकें आतंकवाद को प्रेरित करती है और वे कुरान के दर्शन तथा हदीस के विरुद्ध हैं। मौदूदी ने जिस जमाते इस्लामी को जन्म दिया है उसके अनुयायियों की संख्या दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में बहुत अधिक है। अपने इस संख्या बल के आधार पर ही वे बंगलादेश और पाकिस्तान के हुक्मरानों को प्रभावित करते हैं। पाकिस्तान में जनरल जिया के समय में उनके मामा मौलाना अब्दुल गफूर जमाते इस्लामी के अध्यक्ष थे इसलिए उन्होंने समस्त पाकिस्तान को सत्ता के माध्यम से अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया। जमाते इस्लामी ने ही भुट्टो को फांसी दिलवाई और अहमदियों को गैर मुस्लिम घोषित करवाया। धर्म की आड़ में राजनीति करने वाली यह दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे बड़ी जमात है। पाकिस्तान में तो जमाते इस्लामी विरोधी दल की हैसियत रखती है। बंगलादेश की राजनीति में भी इनका बड़ा दखल है। इस समय उनके दो सांसद बंगलादेश की राष्ट्रीय असेम्बली में हैं।बंगला राष्ट्र बनाम आतंकवादबंगलादेश की जमाते इस्लामी का उपयोग पाकिस्तान के सत्ताधीशों ने हमेशा से किया है इसलिए जब पूर्वी पाकिस्तान टूट गया और पाकिस्तान की एक लाख से भी अधिक सेना अपने इस भूभाग को नहीं बचा सकी तो फिर उन्होंने ईसाई मिशनरी की तरह अपने पांव पसारने शुरू किये। ईसाई मिशनरी किसी भी देश में अपना काम पंथ के माध्यम से प्रारंभ करती है जिनका अंतिम लक्ष्य राजनीति के शिखर पर चढ़कर बैठना है। जमाते इस्लामी ने इस्लाम के नाम पर बंगलादेश में घुसपैठ की और फिर सत्ता पर कब्जा करने की रणनीति बनाई। सेना के माध्यम से मुजीब परिवार को समाप्त किया और ढाका की गद्दी उन्हीं लोगों के सुपुर्द कर दी जो बंगलादेश का विलय पुन: पाकिस्तान में करने के इच्छुक थे। लेकिन जनता के सामने उनकी नहीं चली। बंगलादेश में जब फिर से लोकतंत्र पटरी पर चढ़ा तो उन्होंने बंगला राष्ट्रवाद को जीवित किया और भारत से अपने संबंध सुधारने की दिशा में प्रगति की। बंगला राष्ट्रवाद भारत की तरह आतंकवाद और सैनिक तानाशाही के पक्ष में नहीं है। इसलिए उन्हें पहली आवश्यकता यह महसूस हुई कि विश्व में चल रहे आतंकवाद से वे सुरक्षित रहें। मजहबी कट्टरता लोगों को जिहादी बनाती है। वे मजहब की राजनीति करके देश में अराजकता पैदा करना चाहते हैं। इसलिए बंगलादेश की सरकार सभी मुद्दों पर एकजुट होकर अपने यहां से उन तत्वों को समाप्त कर देना चाहती है जो भविष्य में कभी इस्लामी आतंकवाद को आश्रय दे सकें। हसीना वाजेद के इस कदम की सर्वत्र प्रशंसा की जा रही है। वे लोकतंत्र में विश्वास रखती हैं और धर्म को राजनीति से अलग रखकर अपने देश का कारोबार चलाना चाहती है। बंगलादेश की तरह यदि भारत में भी कट्टरवादियों के साहित्य पर प्रतिबंध लगा दिया जाए तो भारत से आतंकवाद को समाप्त किया जा सकता है। द11
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