|
इतिहास से सबक लोकुछ वर्ष पहले रेडियो पाकिस्तान सुनते समय एक कार्यक्रम में पाकिस्तानी संवाददाता के मुख से सुना था कि रावलपिंडी कभी रावलों का शहर था, जिसमें हिन्दू अक्सरियत (बहुसंख्या) में रहते थे। मंदिरों में घण्टे और घड़ियालों की आवाज से शहर में रौनक बसर करती थी। और भी बहुत सी बातें रावलपिंडी शहर के इतिहास के बारे में बतायी गयी थीं। लेकिन ये सब इतिहास की बातें हैं और इतिहास हमें गलतियां सुधारने का अवसर प्रदान करता है। लेकिन भारत और भारत के कर्णधारों ने इतिहास से कोई सबक नहीं सीखा है। आज भारत के ऐसे अनेक शहर हैं, जो रावलपिंडी की राह पर चल पड़े हैं। श्रीनगर का तो यह हाल हो ही चुका है। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और केरल के कई शहर इसी स्थिति की ओर अग्रसर हैं। इन प्रदेशों के कितने ही जिले मुस्लिम बहुसंख्यक की श्रेणी में आ चुके हैं और जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाता है वहां सेकुलर सरकार की ओर से मुस्लिम तुष्टीकरण और छद्म पंथनिरपेक्षता के कारण हिन्दुओं पर अत्याचार होने लगते हैं, उनका मानमर्दन शुरू हो जाता है। कश्मीर घाटी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। वहां पर हिन्दुओं पर इतने भयंकर अत्याचार हुए कि उन्हें मजबूर होकर वहां से पलायन करना पड़ा। यह सोची-समझी साजिश के तहत किया गया, ताकि घाटी में सिर्फ मुस्लिम रहें। जिहादी आतंकवाद, लव जिहाद, बंगलादेशियों की घुसपैठ, सांप्रदायिक दंगे, तदुपरांत लूटपाट और आगजनी आदि ऐसे अनेक कारण हैं, जो हिन्दुओं को बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी से पलायन करने को मजबूर करते हैं, क्योंकि अन्तत: सरकारी मशीनरी भी नेताओं की दबिश के कारण मुसलमानों के पक्ष में खड़ी नजर आती है। नहीं तो क्या कारण था कि हिन्दुओं को कश्मीर घाटी छोड़नी पड़ी? सीधी सी बात है सरकार हिन्दुओं की सुरक्षा नहीं कर पायी। कर सकती तो आज श्रीनगर के मंदिरों में भी घण्टे-घड़ियाल बज रहे होते। पुराने हैदराबाद का भी यही हाल हो चुका है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का तो बुरा हाल है ही, जहां छोटी-छोटी बातों पर सांप्रदायिक दंगे भड़क उठते हैं और कहीं न कहीं पूरे वर्ष यह स्थिति बनी ही रहती है। कभी बरेली जल उठता है, तो कभी आगरा। मुस्लिम तुष्टीकरण और छद्म पंथनिरपेक्षता का यह धीमा जहर केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं, बल्कि मुसलमानों के लिए भी भयंकर अभिशाप है। इसका सटीक उदाहरण है तालिबानी आतंकवाद की आग में जलता और बर्बाद होता पाकिस्तान, जो आज पूरी दुनिया में घृणा का पात्र बन चुका है।-कुमुद कुमारए-5, आदर्श नगर, नजीबाबाद, जनपद-बिजनौर, (उ.प्र.)अवसरवादियों की राजनीतिआवरण कथा “अवसरवादी राजनीति को धिक्कार” में लगातार गिरते राजनीतिक स्तर का सटीक विश्लेषण है। यह कैसी विडम्बना है कि एक ओर तो कुछ विपक्षी दल सड़कों पर महंगाई के विरोध में जुलूस निकालते हैं, बाजार बंद कराते हैं, तोड़-फोड़ करते हैं और दूसरी ओर संसद में इनके नेता सरकार के समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं। जाहिर है, ऐसा करने के पीछे मायावती, मुलायम सिंह यादव और लालू यादव के अपने निजी स्वार्थ हैं। जैसा कि विदित है, इन तीनों के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति के मामले दर्ज हैं। इसी का सहारा लेकर कांग्रेस के राजनीतिक प्रबंधक इन नेताओं को यह चुग्गा डालने में सफल रहे कि यदि वह सरकार का साथ देंगे तो उनके खिलाफ चल रहे मामलों में केन्द्रीय जांच ब्यूरो नरम रवैया अपनाएगी।-आर.सी. गुप्ताद्वितीय ए-201, नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)राजनीति तो पूरी तरह अवसरवादियों के हाथ में चली गई है। अवसर मिलते ही नेता एक दल से दूसरे दल में पहुंच जाते हैं। भारत में तो अवसरवादी नेताओं की एक लम्बी सूची बन सकती है। अवसरवादी राजनीति के कारण ही कभी कांग्रेस के धुर विरोधी रहे लालू, पासवान, मुलायम आदि कांग्रेस की गोद में जा बैठे हैं।-राजेश कुमारसुभाष पार्क, शाहदरा (दिल्ली)देश को इस समय अवसरवादी और तुष्टीकरण की राजनीति से बड़ा नुकसान हो रहा है। सेकुलर नेता केवल व्यक्तिगत स्वार्थ देख रहे हैं। उन्हें न तो इस देश की चिन्ता है और न उन लोगों की, जिन्होंने उन्हें चुनकर संसद या विधानसभा में भेजा है।-गणेश कुमारपुनाईचक, पटना (बिहार)पाञ्चजन्य से ही आशापाञ्चजन्य की यह यात्रा यूं ही नहीं चल रही है। राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं ने पाञ्चजन्य के उद्घोष की मशाल थाम रखी है। जबकि कांग्रेस समर्पित “नेशनल हेराल्ड” और कम्युनिस्टों द्वारा समर्थित “ब्लिट्ज” आज कहां हैं? इस अंक में श्री देवेन्द्र स्वरूप का लेख “इस देशद्रोह की जड़ें कहा हैं?” और सम्पादकीय “अवसरवादी राजनीति को धिक्कार” एक-दूसरे के पूरक लेख हैं। वस्तुत: देश की स्थिति चिन्ताजनक है। वंशवादी कांग्रेस और भ्रष्टाचार में लिप्त सपा, बसपा, राजद का कांग्रेस के साथ गठजोड़ देश के लिए घातक है।-डा. उमेश मित्तलगंगोह रोड, सहारनपुर (उ.प्र.)षड्यंत्र ही षड्यंत्रश्री अरुण कुमार सिंह की रपट “चारदीवारी के अन्दर हो नमाज” से एक षड्यंत्र का पता चला। आज सड़क किनारे और सरकारी परिसरों के आसपास बड़ी संख्या में मस्जिद और मजारें बन रही हैं। यहां तक कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अन्तर्गत आने वाले स्मारक भी धीरे-धीरे मजहबी स्थल में परिणत हो रहे हैं। दिल्ली में कुतुबमीनार परिसर में मस्जिद है, जहां मुस्लिम जबर्दस्ती नमाज पढ़ रहे हैं। जबकि उसी परिसर में श्री गणेश, भगवान विष्णु आदि देवों की खण्डित मूर्तियां हैं। हिन्दू उन्हें ठीक करना चाहते हैं, पर अनुमति नहीं दी जा रही है।-बी.एल. सचदेवा263, आई.एन.ए. मार्केट (नई दिल्ली)हैदराबाद में जब भी मुसलमानों का त्योहर आता है, ग्यारह बजे दिन से 2 बजे दिन तक चारमीनार के पास का पूरा परिसर नमाजी घेर लेते हैं। सारी बसें और वाहन बंद हो जाते हैं। सड़कों पर नमाजी पसर जाते हैं। आने-जाने वालों को अत्यंत असुविधा का सामना करना पड़ता है। यह साल में तीन या चार बार होता है। मुसलमान लोग सार्वजनिक जगह घेर कर घंटों नमाज पढ़ते हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने ठीक ही कहा “चारदीवारी के अंदर हो नमाज”। यह बात सारे भारतवर्ष में लागू होनी चाहिए।-डा. के.एल.व्यासएफ-1, रतना रेसीडेन्सी, माहेश्वरी नगर हैदराबाद (आं.प्र.)महत्वहीन दक्षेसडा. कुलदीप अग्निहोत्री का लेख “दक्षेस की सफलता?” पढ़ा। अब दक्षेस का कोई महत्व नहीं रह गया है। चीन धीरे-धीरे दक्षेस में सम्मिलित देशों को अपने पक्ष में करता जा रहा है। अपनी शक्ति को बढ़ाने के साथ-साथ वह भारत के पड़ोसी देशों से भी बढ़ा रहा है। पाकिस्तान के साथ तो उसका पूरा सहयोग पहले से ही चल रहा है। इसलिए भारत को हर हाल में अपनी शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ इन देशों को भी साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। पाकिस्तान से किसी भी प्रकार की अपेक्षा करना बेमानी होगा। अत: उस पर कड़ी नजर रखनी चाहिए।-वीरेन्द्र सिंह जरयाल28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर (दिल्ली)दोषी तो अपने ही हैंश्री आलोक गोस्वामी के आलेख “पाकिस्तान का धोखा” से स्पष्ट है पाकिस्तान भारत को अपने वाक्जाल में सदैव की भांति डालने में सफल रहा है। पाकिस्तान एक इस्लामी राष्ट्र है। अपना काम बनाने के लिए वह झूठ का सहारा लेता रहता है। धोखेबाजी और विश्वासघात करना उसकी आदत है। हमें दोष अपने नेताओं, अधिकारियों को देना चाहिए जो इस वास्तविकता से अनभिज्ञ हैं। श्री देवेन्द्र स्वरूप ने बताया है माधुरी गुप्ता जब 6 साल पहले मलेशिया में नियुक्त थी तभी इस्लाम मत अपना कर राणा नामक छद्म नाम के पाकिस्तानी जासूस को सूचना देने लगी थी। भारत सरकार को इस तथ्य की जानकारी लेनी चाहिए कि गुप्ता ने इस्लाम सही में अपनाया था? अगर वह इस्लाम अपना चुकी है तो निश्चय ही अपने कुकर्मों पर उसे कोई अफसोस नहीं होगा। वैसा करके तो उसने अपने मजहबी दायित्व का पालन ही किया है।-क्षत्रिय देवलाल अड्डी बंगला, झुमरी तिलैया, कोडरमा (झारखण्ड)इतिहास दुहराएंगे?पिछले दिनों रेडियो पर समाचार सुना कि भारत-पाकिस्तान सीमा पर पाकिस्तानी गोलीबारी से सीमा सुरक्षा बल का एक जवान घायल हो गया। मुझे तो लगता है कि पाकिस्तान मो. गौरी के पद-चिह्नों पर चल रहा है और भारत पृथ्वीराज चौहान के रास्ते पर। उल्लेखनीय है कि मो. गौरी ने 16 बार भारत पर हमला किया और हर बार वह हारा। हर बार पृथ्वीराज चौहान उसे माफ करते रहे। सत्रहवें हमले में उसे सफलता मिली। पृथ्वीराज चौहान हार गए और दुश्मनों द्वारा अपने साथ ले जाए गए और वहीं मारे गए। क्या भारतीय शासक वही इतिहास फिर से दुहराना चाहते हैं?-हरेन्द्र प्रसाद साहानया टोला, कटिहार (बिहार)अहितकारी कांग्रेसी नीतिकांग्रेस एवं कांग्रेसी सरकारों की हर नीति भारतीय सभ्यता-संस्कृति के विरुद्ध है। ऐसा लगता है कि कांग्रेसी नेताओं को देशहित से कोई सरोकार ही नहीं है। इसलिए देशहित में तो वे सोचते भी नहीं, करना तो दूर की बात है। हां, आंकड़े बहुत हैं लेकिन सभी नकारात्मक। फिर भी इन्हें शर्म नहीं आती और बेचारी जनता पिस रही है। पहले से ही महंगाई आम जनता की कमर तोड़ रही है। अब केन्द्र सरकार हर वस्तु का दाम बढ़ाने में लगी है। इस कारण आम आदमी की परेशानी बढ़ती जा रही है।-सरिता राठौर445, गली सं.1, अम्बेडकर कालोनी, हैदरपुर (दिल्ली)हाथ कुछ भी न आयारुक-रुक कर बोले बहुत, निकला जरा न अर्थ घंटा डेढ़ लगा दिया, गया मगर सब व्यर्थ। गया मगर सब व्यर्थ, हाथ कुछ भी न आया हर उत्तर था घिसा-पिटा, ज्यों रटा-रटाया। कह “प्रशांत” वे सिद्ध हुए मैडम के चाकर देश दुखी है तुम जैसे नेता को पाकर।।-प्रशांतपञ्चांगवि.सं.2067 तिथि वार ई. सन् 2010 ज्येष्ठ कृष्ण 9 रवि 6 जून, 2010 ” 10 सोम 7 ” ” 11 मंगल 8 ” ” 12 बुध 9 ” ” 13 गुरु 10 ” ” 14 शुक्र 11 ” ज्येष्ठ अमावस्या(वट सावित्री व्रत) – शनि 12 ” 17
टिप्पणियाँ