|
द घमंडीलाल अग्रवालजिसको देखो गुमसुम-गुमसुमदोनों अधर सिये बैठा है,सच्चाई दम लगी तोड़नेसाधक मौन पिये बैठा है।कभी इधर की, कभी उधर कीजीवन का नारद बतियाए,सांसों की मेनका पुकारेपीड़ा की सीता चिल्लाए,मर्यादा का राम अयोध्याअपना ह्मदय किए बैठा है।फूलों जैसी हंसी निगोड़ीकुरुक्षेत्र की भूमि बन गई,सपनों की चौपालें सूनींआहों में ही जंग ठन गई,सावन-भादों काले लोचनमन निज चैन दिए बैठा है।तुलसी की चौपाई बोलेसबद कबीरा का भी कहता,सूरदास के कृष्ण सरीखाआज नहीं क्यों धीरज रहता,एक जनम में कई जनम ज्योंहर मशविरा जिए बैठा है।डोले चावल लिए सुदामाआशाओं की मथुरा-काशी,खुशियों के वन दें हरकारेजाने कौन दिशा अविनाशी,दुनिया भर की निरी उलझनेंसुख घर फूंक लिए बैठा है।16
टिप्पणियाँ