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दोषियों की ढाल बनी कांग्रेसद आलोक गोस्वामीरायसीना की पहाड़ियों पर इन दिनों एक दिलचस्प जुमला सुनाई दे रहा है और वह यह है कि 2 जी के दोषियों को बचाने के लिए 2 जी ढाल बनकर 2 सदनों को बाधित किए हुए हैं। यानी 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के दोषियों को संयुक्त संसदीय समिति के सामने उजागर होने से बचाने के लिए 2 जी (यानी सोनिया गांधी, राहुल गांधी) अड़ गए हैं कि भले संसद ठप रहे, विपक्ष की जे.पी.सी. की मांग नहीं माननी है। इन पंक्तियों के लिखे जाते समय संसद के दोनों सदनों को ठप्प हुए 16 दिन हो चले हैं और इस दौरान तमाम विधायी कार्य और कई महत्वपूर्ण विधेयक बाधित हैं। पर सोनिया पार्टी के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के प्रवक्ता संसद के अहाते में विपक्ष पर टीका-टिप्पणी करते हुए शब्दों की मर्यादाएं लांघे जा रहे हैं। इस हद तक कि मनीष तिवारी द्वारा विपक्ष को “माओवादियों के एजेंट” कहे जाने पर कई कांग्रेसी नेता ही उनका विरोध करते दिखाई दिए।आखिर क्या वजह है कि मनमोहन सरकार लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था संसद को पंगु बनाए रखने में ज्यादा दिलचस्पी ले रही है, बजाय एकजुट विपक्ष की लोकतांत्रिक मांग को मानकर दोनों सदनों की गरिमा बनाए रखने में? ऐसा नहीं है कि विपक्ष ने जे.पी.सी. की मांग पहली बार की है और ऐसा भी नहीं है कि सत्तापक्ष ने अब तक जे.पी.सी. का गठन न किया हो। “80 के दशक के आखिर में बोफर्स घोटाले पर पहली बार गठित हुई जे.पी.सी. अर्थात् संयुक्त संसदीय समिति की बैठकों के बाद कांग्रेस की जो छीछालेदर हुई थी शायद उसे ध्यान करके सोनिया पार्टी संयुक्त संसदीय समिति की बजाय लोक लेखा समिति (पी.ए.सी.) के अंतर्गत 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच पर अड़ी है। लेकिन एकजुट विपक्ष जानता है कि पी.ए.सी. की अपनी हदें हैं जिनके पार जाकर वह राजनीतिक क्षेत्र से जुड़े घोटाले के दोषियों को तलब नहीं कर सकती यानी किसी मंत्री या प्रधानमंत्री से सवाल-जवाब नहीं कर सकती। लेकिन संयुक्त संसदीय समिति के लिए “टम्र्स ऑफ रेफरेंस” यानी जांच की हद तय करने वाले बिन्दु व्यापक होते हैं और वह आवश्यक समझे तो किसी भी नौकरशाह, सरकारी अधिकारी या राजनीतिक व्यक्ति से पूछताछ कर सकती है।यह सही है कि विभागीय मुद्दों की देखरेख के लिए अलग-अलग स्थायी संसदीय समितियां हैं जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति के तहत 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला चर्चा में आना तय है। पर इन संसदीय समितियों की कार्रवाई मीडिया की नजरों से दूर होती है यानी उनके दैनन्दिन ब्योरों को मीडिया छाप नहीं सकता, इस तरह मीडिया 2 जी स्पेक्ट्रम जैसे 1.76 लाख करोड़ रु. के जबरदस्त घोटाले की परत दर परत प्रस्तुति नहीं कर सकता। विपक्ष यह जानता है इसलिए जे.पी.सी. की मांग है, और सोनिया पार्टी भी यह जानती है इसलिए उस खेमे से जे.पी.सी. के लिए इनकार है। संसदीय लोकतंत्र में यह बड़ी विचित्र स्थिति बनी है जिसकी वजह से पिछले 16 दिन से संसद के बाधित रहने के चलते देश के करदाताओं के लगभग 31 करोड़ रुपए व्यर्थ हो चुके हैं।कांग्रेस के पहले के तमाम घोटालों का गहन अध्ययन करने वाले वरिष्ठ स्तम्भकार श्री ए. सूर्यप्रकाश कहते हैं, “कांग्रेस संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराए जाने के विरुद्ध इसलिए है क्योंकि इस समिति की जांच का व्याप बड़ा और कई आयामों को समेटे होता है। स्थायी संसदीय समितियां अपने कामकाज में संसद द्वारा दिए दिशानिर्देश पर जिस तरह अमल करती हैं, उससे संयुक्त संसदीय समिति की कार्यविधि अलग होती है। संयुक्त संसदीय समिति पूछताछ के लिए किसी भी मंत्री को तलब कर सकती है, यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी। अगर 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच संयुक्त संसदीय समिति करे तो उसमें प्रधानमंत्री को पूछताछ के लिए बुलाने की मांग जरूर उठेगी। समिति उनसे कुछ सवाल जरूर पूछना चाहेगी। निश्चित रूप से संयुक्त संसदीय समिति अगर बनती है तो उसका अध्यक्ष कांग्रेस का ही सांसद होगा और वह, जाहिर है, प्रधानमंत्री को बुलाने की मांग पर टालमटोल करेगा, ऐसा हुआ तो वह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनेगा। कांग्रेस यह सब जानती है। एक बड़ा विवाद उठ खड़ा होगा कि प्रधानमंत्री संयुक्त संसदीय समिति के सामने आने से भयभीत हैं। कांग्रेस को यही डर है जिसके चलते वह संयुक्त संसदीय समिति गठित करने से कतरा रही है।” हालांकि लोकसभा के पूर्व महासचिव डा. सुभाष कश्यप का कहना है कि संसद का यूं बाधित रहना पीड़ादायक है। यह सही है कि विभागीय मुद्दों पर गौर करने के लिए विभिन्न स्थायी संसदीय समितियां हैं और 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रपट आने के बाद लोक लेखा समिति उस पर पूछताछ कर सकती है। लेकिन पता नहीं क्यों, सत्तापक्ष एकजुट विपक्ष की जे.पी.सी. की मांग से कतरा रहा है। यह समझ से परे है।” श्री सूर्यप्रकाश बोफर्स के दिनों की याद करते हुए बताते हैं कि जब 1989 में बोफर्स पर शंकरानंद की अध्यक्षता में संयुक्त संसदीय समिति गठित हुई थी तब हम पत्रकारों ने उस समिति की कार्यवाही पर व्यापक रूप से खबरें दी थीं। हम समिति के सदस्यों से कार्यवाही का ब्योरा जानकर खबर लिखा करते थे। मैंने खुद तब इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार के नाते उसकी रिपोर्टिंग की थी। यह चीज पत्रकार अन्य संसदीय समितियों के संबंध में नहीं कर सकते, क्योंकि तब विशेषाधिकार हनन का मामला बन जाता है। लेकिन संयुक्त संसदीय समिति के बारे में तो रोजाना खबर बन सकती है। इसलिए कांग्रेसी डरते हैं कि अगर 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर संयुक्त संसदीय समिति की जांच हुई तो अखबारों में रोजाना उसकी खबरें छपेंगी। टेलीविजन चैनल उसे दिखाएंगे। उस जांच के दौरान 4-5-6 महीनों तक रोज रोज कांग्रेस के विरुद्ध छपता रहेगा, इसकी संभावना से ही कांग्रेस डरी हुई है।” 16 दिन से संसद ठप रहने पर कांग्रेस के विरुद्ध जो नकारात्मक प्रचार हो रहा है वह कांग्रेस के संपूर्ण आकलन में उस छीछालेदार से शायद कम है जो संयुक्त संसदीय समिति की जांच से हो सकती है। यही कारण है कि कांग्रेस संसद ठप रखने को राजी है, जेपीसी के लिए नहीं। प्रधानमंत्री अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते। उन्हें संसद में या ऐसी समिति में जवाब देना ही होगा। देश के नागरिकों को उनसे सवाल पूछने चाहिए। संसद में इस मुद्दे पर बहस होने देने और उसमें प्रधानमंत्री के वक्तव्य दिए जाने की बात पर उनका कहना था कि “संसद में अगर मौका दिया जाता तो प्रधानमंत्री एक कामचलाऊ बयान देकर निकल गए होते। प्रधानमंत्री ने अपनी स्वच्छ छवि की दुहाई दे दी होती, बस कांग्रेस लोक लेखा समिति के अधीन इस मामले को लाने के लिए इसलिए कह रही है क्योंकि उसका व्याप बहुत सीमित है। वह समिति तो बस सीएजी के अधिकारियों या दूरसंचार अधिकारियों को ही बुलाकर पूछ सकती है कि फलां चीज कैसे हुई। उसकी नजर की सीमाएं तय होती हैं, उससे इतर वह नहीं देख सकती।”2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले से राजा और राजा से संप्रग, संप्रग मंत्रिमंडल का गठन और उस मंत्रिमंडल में किसको कौन सा विभाग दिया जाना चाहिए, उसका दबाव बनाने के लिए नीरा राडिया की बरखा दत्त और वीर संघवी जैसे अंग्रेजी पत्रकारों से फोन वार्ताओं के खुलासे ने चौथे स्तम्भ में घुसपैठ किए पत्रकारिता की आड़ में सत्ता से नजदीकियां बनाने वालों को बेनकाब किया है। मीडिया बहसों में इन दो और उनके जैसे उन अनेकों पत्रकारों पर तीखी टिप्पणियां सुनने में आई हैं जो राजनीति के लकदक गलियारों में अपने “नजदीकी सूत्रों” के हस्तक की तरह काम करते हैं। श्री सूर्यप्रकाश इस मुद्दे पर बिना लाग-लपेट कहते हैं, “कांग्रेस नहीं चाहती कि घोटाले के दोषी इस तरह सामने आएं, उसके नेता, प्रधानमंत्री कठघरे में खड़े हों। संयुक्त संसदीय समिति का चूंकि व्याप बहुत बड़ा होता है इसलिए संभावना है कि वह विषय से जुड़ीं कई तरह की चीजों पर गौर कर सकती है। वह किसी को भी बुलाकर सवाल पूछ सकती है। ऐसे में मीडिया में जो बिचौलिए किस्म के तत्व हैं जिन्होंने राजा या अन्य के हित में बिचौलियों का काम किया है उनकी भी जांच होनी चाहिए, उनसे पूछताछ होनी चाहिए। एक नागरिक के नाते मैं मांग करता हूं कि मीडिया में बैठे घोटालेबाजों पर भी गौर होना चाहिए और देश को बताना चाहिए कि मीडिया के अंदर क्या चल रहा है। मई 2009 में जब संप्रग-2 का मंत्रिमंडल बन रहा था, तब सब पत्रकार जानते थे कि राजा ने दूरसंचार विभाग में घोटाला करके देश को हजारों करोड़ रु. का चूना लगाया है। इसके बावजूद मीडिया के कुछ लोग, जिनके नाम सामने आए हैं, एनडीटीवी की बरखा दत्त और हिन्दुस्तान टाइम्स के वीर संघवी वगैरह जैसे लोग, राजा को दूरसंचार मंत्री के नाते वापस लेने के अभियान में मदद कर रहे थे। समय आ गया है कि मीडिया में आत्ममंथन होना चाहिए और उक्त दोनों लोगों को तुरंत बाहर करना चाहिए। राजा के विरुद्ध आरोप है कि उन्होंने घोटाला किया, और वह बाहर कर दिए गए। अशोक चव्हाण पर अंगुली उठी, वह भी बाहर कर दिए गए, उसी तरह बरखा दत्त, वीर संघवी को भी बाहर कर देना चाहिए। इसमें दोहरा मापदंड नहीं चलेगा।”क्या संयुक्त संसदीय समिति 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच करेगी? क्या संसद और ज्यादा समय तक बाधित रहेगी (शीतकालीन सत्र 13 दिसम्बर को समाप्त होना है)? विपक्षी एकजुटता में “लंच डिप्लोमेसी” दरार तो नहीं डाल देगी? क्या मीडिया में एक बहस छिड़ेगी और उसमें से दत्त और संघवी जैसे लोगों को हाशिए पर रखने की सार्थक पहल होगी? क्या देश की जनता अपने 1.76 लाख करोड़ रुपए लूटने वालों को उपयुक्त सजा पाते देखेगी? ये सब सवाल अभी समय के गर्भ में हैं। द7
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