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देश के विकास में मातृभाषा की भूमिका अहम्शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का आयोजनकिसी देश के उत्थान में अपनी भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जब तक भारत में भारतीय भाषाओं का प्रयोग नहीं होगा। तब तक यह देश उन्नति नहीं कर सकता। भारत की उन्नति एवं उत्थान के लिए शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषा होना चाहिए। यह उद्गार गत 28 नवंबर को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा मातृभाषा विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने व्यक्त किए। कार्यक्रम का आयोजन नई दिल्ली के पण्डित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित मालवीय भवन के सभागार में किया गया।संगोष्ठी को संबोधित करते हुए शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव श्री अतुल कोठारी ने मातृभाषा उत्थान को सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए कहा कि इस विषय पर जितनी भी चर्चा हो, उसका कोई अंत नहीं है। लेकिन यह संगोष्ठी मातृभाषा को उसका अपेक्षित स्थान दिलाने की दिशा में दो कदम आगे बढ़ने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि विज्ञान एवं 40 वर्षों में हुए लगभग 100 अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकला है कि शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए। श्री कोठारी ने कहा कि हमें मातृभाषा नहीं तो कुछ नहीं, ऐसी मानसिकता बनानी होगी और इस मानसिकता को बदलना होगा कि अंग्रेजी के बिना हमारी उन्नति नहीं हो सकती।शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के अध्यक्ष श्री दीनानाथ बत्रा ने भी इस बात पर जोर देते हुए कहा कि जब तक देश में मातृभाषा का प्रयोग नहीं होगा, तब तक यह देश उन्नति तथा विकास नहीं कर सकता।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. अनिरुद्ध देशपांडे ने मातृभाषा को परिभाषित करते हुए इस बात को आवश्यक बताया कि घर में जो भाषा बोली जाती है, उसी भाषा में चिंतन की प्रक्रिया विकसित होती है। जिस भाषा में हम चिन्तन करते हैं, वही भाषा हमारी प्रधान भाषा होनी चाहिए। स्वदेशी, स्वभाषा, स्वभूषा और विदेशी के बहिष्कार को आवश्यक बताते हुए उन्होंने कहा कि इस दिशा में अनुसंधान की आवश्यकता है। हमें मातृभाषा के शब्द विकसित करने होंगे तथा अंग्रेजी की मानसिकता बदलनी होगी। कार्यक्रम को दिल्ली के पूर्व उप-महापौर श्री महेश चंद्र शर्मा ने भी संबोधित किया।संगोष्ठी में देश के 11 राज्यों एवं 25 संस्थाओं के कार्यकर्ताओं सहित बड़ी संख्या में राजधानी के अधिवक्ता, चिकित्सक, प्राध्यापक, पत्रकार, साहित्यकार एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। द प्रतिनिधि21
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