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यूरोप में हिन्दी भाषा प्रतियोगिता के विजेता छात्र-छात्राओं का भारत भ्रमणहिन्दी पढ़ने वाली अहिन्दी भाषी छात्राओं ने कहा-अफनास्येवा मारिया(मास्को)जब मैं मास्को में अन्तरराष्ट्रीय सम्बंध विभाग की छात्रा बनी तब मुझे बहुत अजीब लगा कि अब मेरी पहली भाषा हिन्दी होगी। उस समय मेरी भारत के बारे में जानकारी बहुत कम थी। मेरा सोचना था कि भारत एक ऐसा देश है जहां के लोग हमेशा गीत गाते रहते हैं। पर अब तीन साल बीत जाने के बाद सबसे पहले मैं अपनी मां को धन्यवाद देना चाहती हूं क्योंकि उन्होंने ही मुझे हिन्दी सीखने की सलाह दी। फिर अपने अध्यापकों को श्रद्धा निवेदित करना चाहती हूं क्योंकि उनकी सहायता से मैंने हिन्दी पढ़ी और मेरी समझ में आया कि भारत एक महान देश है। विभिन्न संस्कृतियों, सभ्यताओं, बोली और विचारधाराओं को समेटे आगे बढ़ने वाला देश है भारत। भारत की जानकारी पाने से मेरे सामने नया क्षितिज जरूर खुलेगा।ज्देंका बालोग(क्रोएशिया)मैं जाग्रेब विश्वविद्यालय में इंडोलाजी विभाग में संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाएं पढ़ रही हूं। साथ ही भारत की संस्कृति के बारे में भी पढ़ रही हूं। मैंने इंडोलोजी को इसलिए चुना क्योंकि बहुत छुटपन से ही भारत की संस्कृति के प्रति मेरी अभिरूचि रही। इंडोलोजी के विषयों में भी मैंने हिन्दी को सबसे ज्यादा प्रेम किया, क्योंकि हिन्दी पढ़ने से मैं अपने प्रिय देश भारत के बारे में अधिक से अधिक जान सकती थी। हिन्दी उपन्यास का अनुवाद करते समय मैंने जाना कि भारत के लोग कैसे जीते हैं, क्या सोचते हैं, उनके रीति-रिवाज क्या हैं।अन्ना लेविचवा(मास्को)जब मैं छोटी थी तब रूस के दूरदर्शन पर बहुत सी हिन्दी फिल्में दिखाई जाती थीं। मैंने बहुत सी हिन्दी फिल्में देखीं जो मुझे पसंद आर्इं। इसी कारण मेरी भारतीय संगीत और नृत्य में रुचि बढ़ी। फिर मैं भारत सम्बंधी पुस्तकें पढ़ने लगी। इसके लिए मैंने हिन्दी पढ़ने का निश्चय किया और हिन्दी पढ़ाने वाले विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया। शुरू में कठिनाई आई पर भारत को समझने की मेरी जिद ने मुझे हिन्दी सीखा ही दी। विश्वविद्यालय की पढ़ाई खत्म करके मैं भारत के लिए कार्य करना चाहूंगी।क्सेनिया जार्कोवा(मास्को)इंस्टीटूट में पढ़ने से पहले ही मुझे भारतीय संस्कृति बहुत अच्छी लगती थी। सबसे पहले मुझे भारतीय दर्शन के बारे में जानकारी मिली। उसने मुझे बहुत प्रभावित किया। तब मुझे लगा कि मुझे भारत के बारे में और भी बहुत कुछ जानना है। इसके लिए मैंने हिन्दी जानना जरूरी समझा और जबसे मैंने हिन्दी पढ़नी शुरू की तब से मेरा भारत के प्रति प्यार बढ़ता गया।”सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए आवश्यक है कि हम एक-दूसरे की भाषा सीखें। इस दिशा में यूरोप में आयोजित हिन्दी ज्ञान प्रतियोगिता एक महत्वपूर्ण प्रयास है।” ये उद्गार भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद् के अध्यक्ष डा. कर्ण सिंह ने व्यक्त किए। वे यूरोप के 5 देशों से आए 10 विद्यार्थियों के अभिनन्दन समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन अक्षरम् द्वारा गत 26 अगस्त को नई दिल्ली में साहित्य अकादमी के रवीन्द्र भवन सभागार में किया गया था। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे मारीशस के उच्चायुक्त श्री मुकेश्वर चुन्नी। मुख्य वक्ता थे मध्य प्रदेश के संस्कृति सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव और विशिष्ट अतिथि डा. अशोक चक्रधर।इस अवसर पर श्री मुकेश्वर चुन्नी ने कहा कि हिन्दी प्रवासी भारतीयों के माध्यम से 120 से अधिक देशों में बोली जाती है। उन्होंने हिन्दी की अंतरराष्ट्रीयता में मारीशस की विशेष भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि मारीशस में दो विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं और विश्व हिन्दी सचिवालय मारीशस में है।श्री मनोज श्रीवास्तव ने हिन्दी की वैश्विकता को लेकर हिन्दी की सामथ्र्य और सीमा का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि आज रूस और रोमानिया जैसे अनेक देश अंग्रेजी के आधिपत्य के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी के वैश्विक विस्तार के लिए हिन्दी भाषी समाज का आर्थिक शक्ति के रूप में उभरना भी आवश्यक है।डा. अशोक चक्रधर ने कहा कि हिन्दी बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से इसे दूसरे-तीसरे दर्जे की भाषा बताना आंकड़ों का खेल है। हिन्दी-उर्दू को जोड़ लें तो हिन्दी दुनिया की पहले नम्बर की भाषा हो जाती है। डा. चक्रधर ने अपने खास अंदाज में विदेश से आए छात्रों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि हिन्दी की तूती अवश्य बोलेगी क्योंकि ये विद्यार्थी “तूती-फूती हिन्दी” बोलते हैं।कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा विदेश से आए विद्यार्थियों का परिचय सत्र। इसमें यूरोप से आए विद्यार्थियों ने अपनी पसंदीदा कविताएं और भारत-भ्रमण के अनुभव सुनाए। इस सत्र का संचालन रूस से आई केसिनिया ने किया। इस अवसर पर डा. कर्ण सिंह और श्री मुकेश्वर चुन्नी द्वारा विद्यार्थियों का अभिनन्दन भी किया गया। कार्यक्रम का एक अन्य आकर्षण विदेश मंत्रालय की उपसचिव श्रीमती मधु गोस्वामी व उनकी सहयोगी दल का 8वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए डा. कर्ण सिंह द्वारा अभिनन्दन था। कार्यक्रम का संचालन श्री अनिल जोशी ने किया।समारोह में साहित्य अकादमी के उपसचिव श्री ब्राजेन्द्र त्रिपाठी, श्री उमेश अग्निहोत्री, श्रीमती मृदुला सिन्हा, श्री गोपाल अग्रवाल, डा. प्रेम जनमेजय, श्री नारायण कुमार, श्री विमलेश कान्ति वर्मा, श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, श्री नरेश शांडिल्य, श्रीमती अलका सिन्हा एवं श्री विमल कुमार सिंह प्रमुख रूप से उपस्थित थे। यूरोप में आयोजित हिन्दी ज्ञान प्रतियोगिता-2007 के अंतर्गत भारत-भ्रमण के लिए चयनित विद्यार्थी हैं ज्देंका बालोग (कोएशिया), क्सेनिया जर्कोवा (रूस), महक वेदी (ब्रिटेन), ममता शर्मा (ब्रिटेन), अर्पद कीमीन्स (रोमानिया), अन्ना लेविचवा (रूस), मारिया अफनास्येवा (रूस), रुजुता जयन्त खानोलकर (ब्रिटेन), आइओना यूसुरेलु (रोमानिया) एवं स्जुक्स गाबोर (हंगरी)। प्रतिनिधि36
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