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हिमाचल प्रदेश के धर्म स्वातंत्र्य कानून को लेकर प्रदेश के ईसाई संगठनों ने तो कोई विरोध दर्ज नहीं कराया है, जबकि सात समंदर पार अमरीका में बसे भारतीय ईसाई इस पर बवाल खड़ा करना चाहते हैं। इवैन्जेलिकल चर्च आफ इंडिया (ई.सी.आई.), शिमला के मत प्रसारक डी. रोजर्स ने कहा कि वे इस कानून के विरोध में नहीं हैं क्योंकि इसके लागू हो जाने से ईसाई संगठनों के काम पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने पाञ्चजन्य से बातचीत में कहा, “इस कानून में बलपूर्वक, लोभ-लालच से, गुमराह करके या ऐसे ही अनैतिक आचरण से किसी को मतांतरित करने पर रोक लगाई गई है। हम पहले से ही इस तरह की बातों से दूर हैं। हमारे काम पर इस कानून का कोई असर नहीं पड़ेगा। यदि कोई स्वेच्छा से प्रभु यीशू की शरण में आना चाहे तो हम उसका स्वागत करते हैं। जो लोग गलत तरीके से किसी को ईसाई बनाने का काम करते हैं तो उन्हें उसके नतीजे भी भुगतने चाहिए।”उधर वाई.एम.सी.ए., शिमला के महासचिव नरेश का कहना है, “अभी तक हमने इस कानून के बारे में जो अध्ययन किया है, उसमें विरोध करने का कोई कारण नजर नहीं आता। वैसे मार्च में हम इस बारे में विस्तार से चर्चा करने के बाद ही कुछ कह पाएंगे।”मजेदार बात यह है कि वाशिंग्टन (अमरीका) में भारतीय-अमरीकी ईसाई संगठनों के महासंघ के अध्यक्ष जोसेफ निदरी ने राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम, सोनिया गांधी और हिमाचल के राज्यपाल व मुख्यमंत्री को फैक्स भेजकर धर्म स्वातंत्र्य विधेयक का विरोध किया है। उनका कहना है कि इस कानून का आधार उनकी समझ से परे है। उन्होंने इसके दुरुपयोग की आशंका जताई। जोसेफ चाहते हैं कि इस कानून पर राज्यपाल हस्ताक्षर न करें। अभी यह विधेयक राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा गया है।8
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