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पाञ्चजन्य से बातचीत में अशोक कैंथ ने कहा-

by
Jun 8, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Jun 2006 00:00:00

मंदिर निर्माण का पहले विरोध हुआ,पर अब कोई बाधा नहींमैंएक धार्मिक परिवार से हूं इसलिए धर्म-संस्कृति के मूल्य बचपन से ही मेरे भीतर गहरे समाए हैं। यही कारण था कि जब मैं श्रीलंका गया तो मन में विचार आया कि क्यों न उस स्थान का दर्शन किया जाए जहां रावण ने सीता माता को बंधक बनाकर रखा था। मैंने उस स्थान की जानकारी ली और देखा कि एक जीर्ण-शीर्ण मंदिर भी वहां मौजूद है।श्रीलंका के सेंट्रल प्रोविंस में एक जगह है, जिसे अशोक वाटिका के नाम से जाना जाता है। यही वह पौराणिक स्थान था जिसे मैं खोज रहा था। यहां पर जर्जर मंदिर में माता सीता, भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, हनुमान और जटायु की प्रतिमाएं तो हैं पर रख-रखाव का अभाव दिखा। समिति के प्रमुख श्री राधाकृष्ण, जो सेंट्रल प्रोविंस के मुख्यमंत्री भी हैं, बड़े सज्जन पुरुष हैं। उनके सहयोग से हमने मंदिर का जीर्णोद्धार कर नई देव मूर्तियां स्थापित करने का कार्य शुरु किया है। इस कार्य में मुझे सुधांशु जी महाराज, संत मुरारी बापू जैसी विभूतियों का संबल मिला। मंदिर जीर्णोद्धार का कार्य इस वर्ष दीपावली के आस-पास पूरा होने की उम्मीद है।फिलहाल मंदिर के आसपास के क्षेत्र में अधिकांश आबादी हिन्दुओं की है, हालांकि 30 प्रतिशत के करीब ईसाई, मुस्लिम व अन्य समुदाय के लोग भी बसे हैं। इसे एक विडंबना ही कहा जाएगा कि 1998 तक सीता माता मंदिर का क्षेत्र एक मुस्लिम के नियंत्रण में था। फिर श्री मुत्थु शिवलिंगम, जो वहां सरकार में मंत्री हैं, एवं श्री राधा कृष्ण ने बड़े प्रयत्नों के बाद मंदिर को उसके नियंत्रण से मुक्त कराया। मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य बिना इनके सहयोग के नहीं हो पाता। हालांकि इस कार्य का वहां विरोध भी कम नहीं हुआ। श्रीलंका के कुछ संगठनों ने मंदिर के जीर्णोद्धार का विरोध किया था। उनका मानना था कि इससे यहां हिन्दुओं का प्रभाव बढ़ेगा और पहले से ही समस्याग्रस्त देश में एक और समस्या खड़ी हो जाएगी।हम लोगों ने श्रीलंका के पर्यटन मंत्री अरुणा भंडारनायके और वहां के सबसे बड़े बौद्ध भिक्षु श्री करुण जी से भेंट की। बातचीत के बाद तय हुआ कि 38 मरला, जो मंदिर की भूमि थी, पर निर्माण कार्य किया जा सकता है और तब से कोई विरोध नहीं हुआ। श्रीलंका में बौद्धों का काफी प्रभाव है। उन्हें सरकार का समर्थन भी हासिल है। इसका एक उदाहरण देता हूं। श्रीलंका में विश्व हिन्दू परिषद् के सहयोग से भगवान श्रीगणेश और श्री कार्तिकेय का मंदिर संचालित हो रहा है। स्वामी पूर्णानंद और स्वामी विजयानंद जी ने भी वहां सर्वधर्म सद्भाव मंदिर बनाए हैं। वर्ष 2004 में जब सुनामी आई तो वहां के कुछ लोगों ने भगवान श्री गणेश का मंदिर बलपूर्वक छीन लिया। अब भी वह मंदिर उन्हीं के कब्जे में है और श्रीलंका का हिन्दू समुदाय कुछ नहीं कर सका है।41

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