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संविधान विशेषज्ञों, कानूनविदों एवं राजनेताओं ने कहा –
बूटा सिंह
लोकतांत्रिक जवाबदेही की मांग है कि राज्यपाल के बाद अब प्रधानमंत्री को भी अपना पद छोड़ देना चाहिए।
– लालकृष्ण आडवाणी
लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता
बूटा सिंह के इस्तीफे के अलावा मुझे कोई और रास्ता नहीं दिखता था।
– प्रकाश कारत,
माकपा के महासचिव
बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह को तो जाना ही चाहिए था, इस निर्णय के बाद प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का भी अपने पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है।
– अरुण जेटली,
महामंत्री, भाजपा
गोवा और झारखंड के राज्यपालों द्वारा अधिकारों के दुरुपयोग से लेकर वोल्कर, क्वात्रोकी और फोन टैपिंग प्रकरण तक प्रधानमंत्री के मुंह से यही शब्द निकलते रहे कि उन्हें कुछ नहीं पता। बूटा सिंह के मामले में भी यही कह रहे हैं। यदि उन्हें कुछ नहीं पता तो उन्हें सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है।
– अमर सिंह
महासचिव, समाजवादी पार्टी
यह बात गले नहीं उतरती कि जिस मंत्रिपरिषद् ने रपट पर कार्रवाई की, उसे बरी कर दिया जाए। सरकार यह कहने की जुर्रत कैसे कर सकती है कि उसे गुमराह किया गया।
– जार्ज फर्नांडीस,
राजग के संयोजक
राज्यपाल को अदालत के फैसले का सम्मान करना चाहिए था और नैतिकता के आधार पर उसी दिन इस्तीफा दे देना चाहिए था।
– दिग्विजय सिंह
पूर्व मंत्री एवं जद(यू) के वरिष्ठ नेता
उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद श्री बूटा सिंह को राज्यपाल के पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं था। उन्हें तुरंत राज्यपाल पद छोड़ देना चाहिए था।
– तारिक अनवर
महासचिव, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी
संविधान और उच्चतम न्यायालय के प्रति अपने दायित्व के तहत केन्द्र को उन्हें (राज्यपाल बूटा सिंह) हटा देना चाहिए था। मेरा मानना है कि उच्चतम न्यायालय के इस स्पष्ट फैसले के बाद एक मिनट भी अपने पद पर नहीं रहना चाहिए था।
– सोली सोराबजी,
पूर्व महान्यायवादी
हमने केन्द्र से मांग की थी कि बूटा सिंह को फौरन वापस बुलाया जाए। हमारी पार्टी तो हमेशा से राज्यपाल पद के खिलाफ रही है।
– ए.बी. बर्धन,
महासचिव, भाकपा
इस फैसले के आलोक में अब सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए जिसके तहत राज्यपाल की नियुक्ति में विपक्ष के नेता की भी राय ली जाए।
– राजेन्द्र सच्चर
पूर्व मुख्य न्यायाधीश,दिल्ली उच्च न्यायालय
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