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हिमाचल प्रदेश

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Dec 11, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Dec 2006 00:00:00

राष्ट्रीय तिब्बत सम्मेलन मेंसरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने कहा-तिब्बत की संस्कृति से हमारा अटूट रिश्ताराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री कुप्. सी. सुदर्शन ने कहा है कि तिब्बत समस्या के समाधान में भारत का प्रमुख दायित्व अन्तर्निहित है। तिब्बत प्रश्न के साथ भारत की सुरक्षा भी जुड़ी है। भारत सरकार की गलतियों के कारण ही तिब्बत चीनी पंजे में फंस गया है। तिब्बती जनता की आकांक्षाओं का साथ देना भारत का दायित्व है। श्री सुदर्शन धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में गत 25-26 अक्तूबर को आयोजित भारत-तिब्बत सहयोग मंच की राष्ट्रीय प्रतिनिधि सभा के पांचवें सम्मेलन में भाग लेने के लिए यहां आए थे।श्री सुदर्शन ने भारत-तिब्बत सहयोग मंच की राष्ट्रीय प्रतिनिधि सभा को संबोधित किया और उनसे देश भर में चल रही मंच की गतिविधियों की जानकारी हासिल की। मंच की गतिविधियांे का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हुए राष्ट्रीय संयोजक डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने बताया कि देश के 12 प्रांतों में मंच की शाखाएं स्थापित हो चुकी हैं और अगले वर्ष तक देश के सभी प्रांतों में इसकी शाखाएं स्थापित कर दी जाएंगी। मंच के संरक्षक श्री इंद्रेश कुमार ने भी प्रतिनिधियों को संबोधित किया और बाद में पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि अगले साल 2 अक्तूबर को तिब्बत की आजादी के समर्थकों द्वारा दिल्ली के रामलीला मैदान से चीनी दूतावास तक एक विशाल रैली का आयोजन किया जाएगा। इस रैली में चीन सरकार से मांग की जाएगी कि वह तिब्बत में अमानवीय अत्याचार बंद करे, तिब्बतियों की इच्छा के अनुरूप तिब्बत समस्या का समाधान करे और भारत की जिस जमीन पर उसने 1962 में बलपूर्वक कब्जा कर लिया था, उसे वापस लौटाए।श्री गुरुजी जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में 26 अक्तूबर को भारत-तिब्बत सहयोग मंच द्वारा आयोजित “राष्ट्रीय तिब्बत सम्मेलन” को संबोधित करते हुए श्री सुदर्शन ने एक बार फिर दोहराया कि तिब्बत तिब्बतियों को ही लौटाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि साम्यवाद, चर्चवाद और जिहादी इस्लाम- ये तीनों ही आसुरी शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इन तीनों से तिब्बत और भारत को एक समान खतरा है। अमरीका इन्हीं आसुरी शक्तियों का नेता है, लेकिन विजय अंत में धर्म की ही होती है। भारत का कर्तव्य है कि वह न्याय पथ पर चलने वाले देशों को साथ लेकर चीन सरकार पर दवाब डाले ताकि वह तिब्बत को छोड़ने के लिए बाध्य हो जाए। उन्होंने कहा अंतत: भारत और तिब्बत मिलकर दुनिया भर में शांति का संदेश देंगे। लेकिन शांति के लिए जरूरी है कि शक्ति का अर्जन किया जाए। यदि भारत शक्ति अर्जित करेगा तो उससे भारत और तिब्बत दोनांे का ही हित होगा। तिब्बत की संस्कृति से हमारा अटूट रिश्तासम्मेलन की अध्यक्षता निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री प्रो. सामदोंग रिम्पोछे ने की। अपने संबोधन में उन्होंने इस बात पर संतोष प्रकट किया कि भारतवासियों ने एक स्वर से सदा ही तिब्बत के लोगों का समर्थन किया है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसमें सबसे ज्यादा मुखर रहा है। इस अवसर पर तिब्बती संसद के सभापति श्री करमा छोफेल, उपसभापति श्रीमति डोलमा ग्यारी, अनेक निर्वासित तिब्बती सांसद एवं मंत्री तथा हिमाचल प्रदेश के अनेक विधायक उपस्थित थे।भारत-तिब्बत सहयोग मंच की राष्ट्रीय प्रतिनधि सभा ने इस अवसर पर निम्न तीन प्रस्ताव भी पारित किए-प्रस्ताव -1 तिब्बत समस्या के समाधान हेतु भारत सरकार आगे आएभारत-तिब्बत सहयोग मंच की राष्ट्रीय प्रतिनधि सभा का यह पांचवा सम्मेलन इस बात पर प्रसन्नता प्रकट करता है कि निर्वासित तिब्बती सरकार और चीन सरकार में संवाद रचना की शुरुआत हुई है। पूज्य दलाई लामा अहिंसा के मार्ग पर चलकर तिब्बत समस्या के समाधान के लिए जो प्रयास कर रहे हैं वह निश्चिय ही प्रशंसनीय है। परंतु मंच को इस बात का दु:ख है कि भारत सरकार तिब्बत समस्या के समाधान के लिए उचित भूमिका नहीं निभा रही है। भारत सरकार का यह नैतिक व देश की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण दायित्व है कि वह चीन सरकार पर दवाब डाले कि वह पूज्य दलाई लामा के प्रस्तावों के अनुरूप तिब्बत समस्या के समाधान के लिए आगे आए। मंच का मानना है कि तिब्बत समस्या का संतोषजनक समाधान भारत का कर्तव्य है और भारत सरकार को अपनी विदेश नीति की रचना इसी के अनुरूप करनी चाहिए।प्रस्ताव -2 तिब्बत में रेलवे का निर्माणतिब्बत को पूरी तरह से चीन में मिला लेने के प्रयास पिछले पचास सालों से निरंतर हो रहे हैं। इसी के अंतर्गत चीन ने गोमो से ल्हासा तक रेलवे लाइन का निर्माण कर लिया है। यह रेलवे लाइन तिब्बत के अस्तित्व के लिए घातक तो है ही भारत की सुरक्षा के लिए भी खतरा है। चीन इस रेल के माध्यम से तिब्बत में बड़ी संख्या में हान लोगांे को बसाने का षड्यंत्र कर रहा है। यदि यह षड्यंत्र कामयाब हो गया तो तिब्बत में ही तिब्बती अल्पसंख्या में रह जाएंगे। इस से पूरी तिब्बती संस्कृति और भाषा समाप्त होने के कगार पर पहुंच जाएगी।चीन अब इस रेल को नेपाल की सीमा तक और भारत की सीमा तक बढ़ा रहा है। ऐसी घोषणा चीन की सरकार ने आधिकारिक तौर पर की है। यह मंच भारत सरकार से आग्रह करता है कि इस नई रेल लाइन के परिप्रेक्ष्य में भारत और तिब्बत की सुरक्षा नीति का आकलन करे।प्रस्ताव -3 तिब्बतियों की हत्या की निंदाभारत-तिब्बत सहयोग मंच की राष्ट्रीय प्रतिनिधि सभा का यह पांचवा सम्मेलन पिछले दिनों नेपाल-तिब्बत सीमा पर चीन सेना द्वारा तिब्बतियों पर गोली चलाने की घटना की कड़े शब्दों में निंदा करती है। ये तिब्बती शांतिपूर्ण ढंग से भारत में परम पावन दलाई लामा के दर्शनों के लिए आ रहे थे। लेकिन चीन सेना द्वारा उन पर गोली चलाने से एक भिक्षुणी की मौत हो गई। अनेक तिब्बती महिला-पुरुष घायल हो गए और अनेक अभी तक लापता हैं। मंच भारत-सरकार से आग्रह करता है कि इस घटना को आधिकारिक तौर पर चीन सरकार से बातचीत में उठाए और विरोध दर्ज करवाए। प्रतिनिधि22

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