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बलूचिस्तान में लम्बे अर्से से चल रहे बलूच विद्रोह और बलूच कबीले के असंदिग्ध रूप से सर्वमान्य नेता नवाब बुगती को सैन्य कार्रवाई में मार डालना जनरल मुशर्रफ की एक ऐतिहासिक भूल ही है। शायद मुशर्रफ को इस बात का अंदाजा नहीं था कि बुगती की “शहादत” उस बलूच आंदोलन को और तीखा कर देगी जिसके साथ वे कुछ समय पहले ही जुड़े थे।क्वेटा, कराची तथा पाकिस्तान के दूसरे इलाकों में न केवल बलूच बुगती की हत्या पर मुशर्रफ विरोधी आंदोलन छेड़े हुए हैं बल्कि पाकिस्तान के विपक्षी दलों को भी सरकार को घेरने का एक मुद्दा हाथ लगा है। लोकतंत्र बहाली गठबंधन और मुत्तहिदा मजलिसे अमल मुशर्रफ को हटाने की मुहिम छेड़ सकते हैं।बुगती कबीले के वरिष्ठतम नेता और पूर्व मुख्यमंत्री नवाब बुगती ने जम्हूरी वतन पार्टी की स्थापना की थी और वे अपने इलाके के सबसे कद्दावर नेता माने जाते थे। उस समय बुगती बलूचिस्तान में सुलग रहे आंदोलन से सीधे तौर पर जुड़े नहीं थे पर अपने प्रांत में उनका एकछत्र शासन चलता था। डेरा बुगती में सुई गैस प्लांट के महसूल और दूसरे लाभों को लेकर इस्लामाबाद स्थित तेल और गैस विकास संस्थान से उनके मतभेद हो गए थे। इसी से उनके और बलूचिस्तान आंदोलनकारी गुटों के बीच नजदीकियां बढ़ीं। वे उनमें बुगती हित रक्षक की छवि देखने लगे गए थे। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के गैस और सैन्य ठिकानों पर हमलों के बाद नवाब बुगती कानूनी दांवपेचों में उलझ गए।1990 की शुरुआत में अपने बेटों को खो चुकने के बाद नवाब बुगती ने डेरा बुगती में नया ठिकाना बनाया। इसके दो उद्देश्य थे- एक तो अपने कबीले के विरोधी तत्वों के आपसी टकराव को रोकना और दूसरा, मुशर्रफ की बुगती इलाके में सैन्य छावनी बनाने की कोशिशों को असफल करना। बुगती नहीं चाहते थे कि उनके इलाके की सैनिक छावनी उनके एकछत्र राज को चुनौती दे।पाकिस्तान सरकार की ओर से बुगती आंदोलन के राजनीतिक हल की एक गंभीर कोशिश तब हुई थी जब मुस्लिम लीग पार्टी के चौधरी शुजात हुसैन दो माह के लिए प्रधानमंत्री बने थे। उन्होंने दो संसदीय समितियां गठित करके इस मामले का राजनीतिक हल तलाशना चाहा था। पर सैन्य प्रशासन ने बुगती को ज्यादा छूट देना स्वीकार नहीं किया तथा सैन्य कार्रवाई का रास्ता चुना। सैन्य नेतृत्व गैस और तेल पाइपलाइनों पर अपना कब्जा चाहता है। मकरान तट पर चीनी सहायता से ग्वादर बंदरगाह बनाया जा रहा है। पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व और बुगती की सीधी टकराहट का नतीजा बुगती की “शहादत” के रूप में सामने आया। सैन्य प्रवक्ता लाख सफाई दें कि बुगती उनके बमों से नहीं मारे गए पर उस पर किसी को यकीन नहीं है।बुगती को दफनाने पर भी एक लंबा विवाद छिड़ा। परिवार के लोग उनके शव को अपने अधिकार में लेकर दफन करना चाहते थे जबकि सैन्य प्रशासन उनको इस्लामाबाद बुलाकर गुपचुप तरीके से बुगती को सुपुर्देखाक करना चाहता था, क्योंकि वह जानता था कि बुगती के शव को डेरा बुगती में दफन किए जाने पर विद्रोह भड़क उठेगा जिसे काबू में करना मुश्किल होगा। क्वेटा के अयूब स्टेडियम में 29 अगस्त को बुगती के नमाज-ए-जनाजा में हजारों लोग शामिल हुए। बुगती युवकों ने मुशर्रफ विरोधी नारे लगाए और जिन्ना की तस्वीर को क्षति पहुंचाई। शहर के जिला नाजिम मीर मकबूल और चिल्तन नाजिम (सचिव) मीर इस्रायल, जो मुस्लिम लीग के नेता हैं, को भारी विरोध के बाद नमाज-ए-जनाजा से बाहर निकलना पड़ा। पाकिस्तान में बुगती विद्रोह में आए इस उबाल के बाद विशेषज्ञ यहां तक सोच रहे हैं कि क्या “71 की तरह पाकिस्तान फिर बंटेगा? -आलोक गोस्वामी13
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