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सिखों के ईसाईकरण के खिलाफ आवाज उठाने वाली नरिन्दर कौर का साक्षात्कार

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Jan 1, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Jan 2006 00:00:00

मिशनरियों के खिलाफ हिन्दू-सिख एकजुट हों

नरिन्दर कौर के ईसाई मिशनरियों के खिलाफ संघर्ष का समाचार सबसे पहले प्रस्तुत करने का श्रेय दैनिक जागरण के अमृतसर संवाददाता अशोक मीर और समाचार सम्पादक कमलेश रघुवंशी को जाता है। इस सन्दर्भ में इस समाचार से सूत्र पकड़कर पाञ्चजन्य के अमृतसर संवाददाता राजीव कुमार एवं दिल्ली ब्यूरो से अनुपमा श्रीवास्तव ने नरिन्दर कौर से जो बातचीत की उसके प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं। -सं.

आपके पति को ईसाई बनाने के लिए क्या दबाव एवं लालच दिया गया था?

इस बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कह सकती। गांव में ईसाई लोगों की गतिविधियां पहले से ही चली आ रही हैं। एक ईसाई स्त्री, जो यहां ईसाइयों का सारा काम-काज चलाती है, उसी का सब किया धरा है। पता चला है कि मतान्तरण के बाद कुंवर को यहां के चर्च का प्रमुख बना दिया गया है।

मत परिवर्तन के बाद बच्चों का क्या हुआ?

मत बदलने के बाद तीनों बच्चे उन्हीं के पास हैं। बड़ी बेटी गुरशरण कौर का विवाह भी उन्होंने जबर्दस्ती एक ईसाई परिवार में कर दिया है। जबकि दोनों छोटे बच्चे भी वहीं हैं। छोटे बेटे की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। मैं अकेली ही रह रही हूं।

आजकल आप क्या कर रही हैं?

मैं अपने ससुर की याद में बने स्कूल सुरजित सिंह मैमोरियल गुरु अमरदास पब्लिक स्कूल में रह रही हूं। मेरे पति ने इसके दूसरी तरफ सुरजित मैमोरियल अकादमी खोल ली है। उसका कहना है कि वो गुरुओं को नहीं मानता इसलिए गुरु शब्द हटा दिया है।

अपने पिता के परिवार के बारे में बतायें?

मैं निहंग संगठन के बाबा विधिचन्द, बाबा अमरजीत सिंह, बाबा दया सिंह सुर सिंह वालों की भतीजी हूं। मेरे परिवार ने मेरे पति के ईसाई बनने पर धिक्कारा परन्तु उन पर कोई असर नहीं हुआ। पिछले तीन वर्षों से मेरे गुजारे का खर्च मेरे परिवार वाले ही उठा रहे हैं। मैंने धर्म के लिए पति छोड़ा है परन्तु मैं अपने बच्चों को छोड़ने को तैयार नहीं हूं। मैं बच्चों को पाकर रहूंगी।

इन मिशनरियों ने मेरा पारिवारिक जीवन तबाह कर दिया। मेरा पति, मेरे बच्चे छीन लिये। मुझे ईसाई बनने को काफी मजबूर किया गया। मगर मैं शुरू से ही सिखी रंग में पली-बढ़ी, मैं इसे सहन नहीं कर सकी। मुझे लगा कि मुझे इसके विरुद्ध आगे आना चाहिए।

“अकाल पुरख की फौज” से आपको क्या मदद मिली?

“अकाल पुरख की फौज” ने मुझे काफी सहयोग दिया। उन्होंने मेरी लड़ाई को आधार दिया। उनके द्वारा अपने गांव वेईकुई में स्थापित सिलाई एवं कम्प्यूटर केन्द्र के जरिए मैंने लोगों से जुड़ना आरंभ किया इससे मुझे ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों के फैलाव का पता चला। वास्तव में सिखी का प्रचार न होना लोगों के मत परिवर्तन की वजह बन रहा है। वो हर तरह के हथकण्डे अपना रहे हैं चाहे विदेश भेजने का लालच हो या कुछ और।

गांव वालों और अन्य लोगों का आपके प्रति क्या रवैया रहा?

गांववालों एवं अन्य लोगों ने कोई विशेष मदद नहीं की। सभी बातें करते हैं कोई आगे आने को तैयार नहीं दिखता। किसी में भी इस पर रुचि नहीं दिखी। लोगों में लापरवाही एवं गैरजिम्मेदारी घर कर गई है।

अगर आपको धर्म के प्रसार के लिए अन्य जगह बुलाया जाए तो आप जाएंगी?

हां, जहां भी लोग मुझे बुलाएंगे, मैं जाने को तैयार हूं। मेरे जीवन का लक्ष्य अब लोगों को सिखी से जोड़ना है। यह सिखी एवं पंजाबियत पर प्रहार है जिसका मुकाबला सबको मिलकर करना होगा। अब तक सिर्फ संघ प्रेरित संगठनों ने ही मुझे सम्पर्क किया है।

इस समस्या के समाधान के लिए पंजाब के सिख और सहजधारी समाज में एकजुटता की कितनी आवश्यकता है तथा यह कैसे हो सकता है?

देखिए इस समस्या का समाधान आपस में मिलजुल कर ही किया जाना संभव है क्योंकि हम मिलजुल कर नहीं लड़ेंगे तो फिर कोई हल नहीं निकलेगा। अगर हम मिलजुल कर रहेंगे और इस चुनौती का सामना करेंगे तभी अच्छा नतीजा निकलेगा।

इस मामले में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी क्या कर रही है?

इस बारे में तो मैं ज्यादा बता नहीं सकती लेकिन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य भाई जसविंदर सिंह एडवोकेट और भाई जतिन्दर सिंह अमरीका ने काफी मदद की। कम्प्युटर सेंटर खोलने में उन्होंने ही मदद की। साथ ही एक गाड़ी भी दी ताकि पंथ का प्रचार किया जा सके।

सिख और हिन्दू महिलाएं इस खतरे का सामना कैसे कर सकती हैं?

इस मामले में हिम्मत के साथ खड़े होने की जरुरत है। लोग तरह-तरह के दबाव डालते हैं। मेरे ऊपर भी ईसाई लोगों द्वारा ईसाई बनने के लिए बड़ा दबाव डाला गया और कहा गया कि जब आपके पति ईसाई बन गए तो आपको क्या परेशानी है तो मैंने कहा, नहीं-नहीं, मैं ईसाई नहीं बन सकती।

आपका पंजाब की धर्मनिष्ठ महिलाओं के लिए क्या संदेश है?

मेरा संदेश है कि अगर हम एक दूसरे के साथ सहयोग कर काम नहीं करेंगे तो जो गैर हैं वे हम पर हावी हो जाएंगे। अगर गैरों को हम पर हावी नहीं होने देना है तो हिन्दू-सिखों को एक दूसरे का साथ देना होगा। मैं तो अकेली हूं, अगर सब लोग मेरे साथ आते हैं तो मैं काफी कुछ कर सकती हूं। अगर हम एकजुट होकर नहीं लड़े तो वे हम पर हावी हो जाएंगे और हम ढह जाएंगे।

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