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अंक-सन्दर्भ, 10 जुलाई, 2005हल्का बस्ता, हंसता बचपनपञ्चांगसंवत् 2062 वि. वार ई. सन् 2005 श्रावण शुक्ल 2 रवि 7 अगस्त, 05 ,, ,, 3 सोम 8 ,, (श्रावण सोमवार व्रत) ,, ,, 4 मंगल 9 ,, ,, ,, 5 बुध 10 ,, (नाग पंचमी) ,, ,, 6 गुरु 11 ,, ,, ,, 7 शुक्र 12 ,, (गोस्वामी तुलसीदास जयंती) ,, ,, 8 शनि 13 ,, आवरण कथा “बस्ते का बर्बर बोझ” प्रशंसनीय है। इसमें दिए गए आंकड़े तथा विशेषज्ञों की राय आज की भारतीय शिक्षा नीति में बदलाव के आधार बन सकते हैं। वास्तव में बस्ते का भारी बोझ बच्चों के बचपन के साथ खिलवाड़ है। भारी बस्ता बच्चों को शारीरिक एवं मानसिक रूप से क्षति पहुंचाता है। क्या आज शिक्षाविदों तथा सरकारी नीति-निर्माताओं के पास इस विकराल समस्या का कोई समाधान नहीं है? शिक्षा का व्यापारीकरण आज सबसे अधिक खतरनाक संकट है, जो देश के भावी कर्णधारों की जिन्दगी को प्रभावित कर रहा है।-हेमन्त सिंह2/28 डी.एम. कालोनी, बुलन्दशहर (उ.प्र.)शिक्षा के व्यावसायीकरण से सर्वशिक्षा अभियान असफल सिद्ध हो रहा है। सरकारी विद्यालय अब अध्यापकों को उत्तरदायित्व बोध कराने के माध्यम भर रह गए हैं। यह आयोजन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है, लेकिन दुर्भाग्य है कि पाञ्चजन्य की पहुंच गांवों तक नहीं है। गांवों में भी पाञ्चजन्य का संदेश पहुंचे इसके लिए इसका मूल्य कम कर वहां प्रसार बढ़ाने की जरूरत है।-चन्द्रकांत यादवचांदीतारा, चंदौली (उ.प्र.)ऐसी क्या मजबूरी?दिशादर्शन स्तंभ में श्री तरुण विजय का आलेख “देखिये भोजन पर कौन आ रहा है?” पढ़ा। केन्द्र सरकार को इन अलगववादी तत्वों को तभी पहचान लेना था, जब इन्होंने परवेज मुशर्रफ के भारत आगमन के समय भारत सरकार का निमंत्रण ठुकरा कर पहले जनरल से मिलने की उतावली दिखाई थी। किन्तु भारत में राजनीति ऐसी बीमारी है जिसका सबसे ज्यादा असर “रीढ़ की हड्डी” पर पड़ता है। शायद यही कारण है कि हमारे यहां के राजनेता कोई दमदार निर्णय नहीं ले पाते हैं। वरना क्या मजबूरी है कि एक अरब की आबादी वाले इस देश के “शूरवीर” राजनेता मुट्ठीभर गद्दारों की रीढ़ ठीक नहीं कर पा रहे हैं?-डा. हेमन्त शर्र्मा,महू (म.प्र.)हुर्रियत कान्फ्रेंस से सम्बन्ध रखने वाले चरमपंथी, जो वर्षों से भारत में पले-बढ़े हैं, वे आज पाकिस्तान पहुंचकर अपना असली रंग दिखा रहे हैं। हमारी सरकार भी इनकी आवभगत में हर समय तत्पर नजर आती है। आज जरुरत इस बात की है कि इन चरमपंथियों पर नकेल कसकर वर्षों से विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी हिन्दुओं को ससम्मान घाटी में बसाया जाए। ये लोग जब तक पूरी तरह स्थापित एवं खुशहाल नहीं हो जाते हैं, तब तक इन्हें सरकारी मदद भी प्रदान की जाए।-संजय कसेरा53, अखाड़ा रोड, देवास (म.प्र.)मतान्तरण रोकेंमतान्तरण के दो समाचार पढ़े। एक पंजाब से संबंधित था और दूसरा राजस्थान से। पूरे देश में पादरियों द्वारा मतान्तरण के लिए जोरदार अभियान चलाया जा रहा है और इसमें उन्हें लगातार सफलता भी मिल रही है। ऐसा क्यों हो रहा है, इस पर विचार करने की जरूरत है। पंजाब में चर्च बहुत तेजी से मतान्तरण करवा रहा है। उसका निशाना तथाकथित पिछड़ी जनजातियां होती हैं। कुछ समय पहले ईसाइयों के ही एक संगठन ने पादरियों की मतान्तरण की नीति का विरोध करते हुए एक आन्दोलन चलाया था। संगठन के सदस्य चर्च से मांग कर रहे थे कि वह मतान्तरण पर होने वाले खर्च को उनके विकास पर खर्च करें। किन्तु यह संगठन भी अब असरदार नहीं दिखता। हिन्दुओं को यह समझ लेना चाहिए कि चर्च के इरादे नेक नहीं हैं। इनका मुकाबला करने के लिए हमें ईसाई समुदाय में से ही देश भक्त ईसाइयों को ढूंढना होगा और उनकी हर प्रकार की मदद करनी होगी।-नरेश कुमार गुप्ताअम्बेदकर नगर, बटाला रोड, गुरदासपुर (पंजाब)अंक-सन्दर्भ -3 जुलाई, 2005आवरण कथा “देश के नेता कौन?” पढ़ी। सामान्यत: यह देखने को मिल रहा है कि राजनेताओं के प्रति लोगों का विश्वास घटने लगा है। ऐसा क्यों होता है? शायद राजनेता अब उतने संवेदनशील नहीं रहे कि किसी दुर्घटना को अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानकर वे अपने पद से इस्तीफा दे दें। वे उन व्यक्तियों के प्रति भी जवाबदेही महसूस नहीं करते, जिन्होंने उन्हें चुनकर भेजा है। यह दुर्भाग्य ही है कि आम लोगों के लिए अपेक्षित सुविधाएं जुटाने में शासन असफल है और केवल कागजी खानापूर्ति की जा रही है। नेता तो वह है, जो सबके लिए “आदर्श” हो, परंतु आज के नेताओं के कारण तो “नेता” शब्द ही मजाक बनकर रह गया है।-गजानन पाण्डेय, म.नं. 2-4-936,निम्बोली अड्डा, काचीगुडा, हैदराबाद (आंध्र प्रदेश)हाथ दाउद न आयापूरी दुनिया में मचा, इस शारी का शोरचप्पे-चप्पे पर पुलिस, मगर चला न जोर।मगर चला न जोर, हाथ दाउद न आयावेश बदलकर उसने सबको खूब छकाया।कह प्रशान्त पहले से ज्यादा नाम हो गयारहे टापत ेसारे, उसका काम हो गया-प्रशान्तसमर्पण की मिसालपाञ्चजन्य पढ़ते हुए श्री डालचन्द चौरसियाउनकी उम्र 80 वर्ष है। कमर थोड़ी झुक गई है और लाठी के सहारे चलते हैं। इसके बावजूद वे जुन्नारदेव (छिंदवाड़ा) की सड़कों पर पैदल ही घूम-घूम कर पाञ्चजन्य का वितरण करते हैं। इन सज्जन का नाम है श्री डालचन्द चौरसिया। एक हाथ में लाठी और दूसरे हाथ में पाञ्चजन्य की प्रतियां लेकर ये हर सप्ताह 100 घरों में जाते हैं। बाल्यकाल से स्वयंसेवक श्री चौरसिया पाञ्चजन्य तब से वितरित कर रहे हैं, जब इसकी कीमत मात्र 35 पैसे थी। इन्हें डा. हेडगेवार, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे मनीषियों का सान्निध्य प्राप्त हुआ है। वर्तमान में श्री चौरसिया रा.स्व.संघ, जुन्नारदेव के संघचालक हैं। इन्होंने आजादी की लड़ाई और संघ पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए छिड़े संघर्ष में भी भाग लिया था और जेल गए थे।-गोविंद चौरसियाकार्यकारी सम्पादक, जनपक्ष 3,प्रेस काम्पलेक्स, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)आज के समय में आप किस नेता की बात कर रहे हैं? आज के नेता तो अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान व मल्लिका सहरावत हैं। नई पीढ़ी के लिए नेता सामाजिक, धार्मिक या राजनीतिक क्षेत्र से नहीं, बल्कि फिल्मी दुनिया के हैं। “एम.टी.वी. संस्कृति” भारतीय युवाओं को इतना प्रभावित कर चुकी है कि उन्हें स्वामी विवेकानन्द से लेकर डा. अम्बेडकर तक का कोई स्मृति-ज्ञान नहीं है।-वेद प्रकाश विभीषणस्वामी विवेकानन्द मार्ग, जी.टांड़, गया (बिहार)मुखपृष्ठ पर स्वामी विवेकानन्द का चित्र पलट करके लगाया गया है। इस कारण पगड़ी उल्टी छपी है। “स्वामी विवेकानन्द : ए पिक्टोरियल बायोग्राफी” में एक भी चित्र ऐसा नहीं है। ऐसी भूल आगे न हो, इसका ध्यान रखें।-प्रो. चमन लाल सप्रू80, डीलक्स अपार्टमेन्ट, वसुन्धरा एन्कलेव (दिल्ली)शिवाजी का अनुसरण करेंदिशादर्शन में रा.स्व. संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन का बौद्धिक “हमारे नेतृत्व का आदर्श शिवाजी” मार्मिक और उत्साहवद्र्धक लगा। हिन्दवी स्वराज के लिए शिवाजी ने जिन आदर्शों को अपनाया था, उन्हीं आदर्शों को आज के नेता भी अपनाएं, तभी हिन्दू समाज आगे बढ़ेगा और देश का विकास होगा।-दिलीप शर्मा, 114/2205,एम.एच.वी. कालोनी, कांदिवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)ये दोहरे मापदण्डआज के इस अत्याधुनिक समाज में इमराना और मुख्तारन माई के साथ जो कुछ भी हुआ है, वह निन्दनीय और शर्मनाक है। भारतीय कानून में एक बलात्कारी को जहां कड़ी सजा देने का प्रावधान है वहीं भारत में ही मजहब की आड़ में बलात्कार पीड़िता एक नारी को सजा और बलात्कारी को सम्मान दिया जा रहा है। इन दोहरे मापदण्डों को तत्काल समाप्त करना चाहिए।-रामानन्द यादव, ग्रा.-हरीश्चन्दपुर,पो.-जयलालगढ़, पूर्णिया (बिहार)श्रद्धाञ्जलिसी.आर. ईरानीबेबाक लेखनी के धनीगत 23 जुलाई को कोलकाता में देश के जाने-माने पत्रकार एवं अंग्रेजी दैनिक “द स्टेट्समैन” के मुख्य सम्पादक श्री सी.आर. ईरानी का निधन हो गया। स्व. ईरानी विचारोत्तेजक लेखों के लिए जाने जाते थे। उन्होंने कई पुस्तकों की भी रचना की थी। श्री ईरानी के निधन पर राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने अपने शोक सन्देश में कहा, “स्टेट्समैन में अपने चार दशक के कार्यकाल के दौरान उन्होंने अपनी एक अलग छाप छोड़ी थी।” प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने उन्हें अद्वितीय सम्पादक एवं विद्वान विश्लेषक बताया। लोकसभा में विपक्ष के नेता एवं भाजपा अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा, “मुझे यह जानकर दु:ख हुआ कि भारतीय पत्रकारिता के दिग्गज श्री सी.आर. ईरानी अब हमारे बीच नहीं रहे। मीडिया जगत के दीर्घकालिक जीवन में उन्होंने अपने बेबाक स्वतंत्र चिन्तन, घटनाओं और व्यक्तियों पर सटीक टिप्पणियों तथा अपनी पैनी लेखनी से ख्याति अर्जित की। आपातकाल के दौरान और तत्पश्चात् जब आवश्यकता पड़ी तब प्रेस की आजादी के लिए उनके साहसिक संघर्ष ने उन्हें लोकतंत्र के प्रेमियों का चहेता बना दिया।” पाञ्चजन्य परिवार की ओर से उन्हें भावभीनी श्रद्धाञ्जलि।कितने दुर्भाग्य की बात है इस अत्याधुनिक सभ्य समाज में, जहां प्रगति अपने पंख उठाये आसमान में उड़ रही है, चंद्रमा और मंगल जैसे ग्रहों तक पहुंचने के प्रयास हो रहे हैं, वहीं अमानवीय कृत्यों से पीड़ित इमराना जैसी महिलाएं अपने ऊपर हुए अत्याचारों के विरुद्ध उठाई गई आवाज की सजा पा रही हैं। जिस समाज को उनके साथ होना चाहिए था, वही समाज उन्हें कटघरे में खड़ा और समाज से निष्कासित कर एकांगी जीवन जीने को बाध्य कर रहा है।-शकुन त्रिवेदी, 25,ए.सी.आर. एवेन्यू, कोलकाता (प.बंगाल)जल संरक्षण करें”कहां गया पानी?” शीर्षक के अन्तर्गत जल संकट के बारे में पढ़ा। जल ही जीवन है। जल जहां है, जगदीश (भगवान) वहां है। किन्तु आज पानी दूध से भी महंगा हो गया है। लोग भूख या बीमारी से नहीं बल्कि पानी की कमी से दु:खी हैं। बिहार जैसा प्रदेश भी इस समस्या से त्रस्त है। पंजाब में भूमिगत जलस्तर काफी नीचे जा रहा है। इसके पीछे कारण है- प्रकृति (पृथ्वी) का अत्यधिक शोषण। इसलिए वर्षा जल का संरक्षण आवश्यक है। विकास के नाम पर प्रकृति पर नियंत्रण की कुचेष्टा नहीं की जाए। गांव का पानी गांव में, खेत का पानी खेत में, इस सिद्धान्त को अपना कर तालाब आदि बनवाए जाएं तो समस्या का समाधान होगा।-नैनाराम सेपटावा, रा.उ.मा.वि.,देवली पाबूजी, जिला-पाली (राज.)NEWS
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