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उल्फा अध्यक्ष ने राष्ट्रपति बुश को पत्र लिखा

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Jul 8, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Jul 2005 00:00:00

अमरीका से दखल की गुहार, “आजाद” असम के लिए सहयोग की मांग-आचार्य राधा गोविन्द थोङगामअसम में अपनी उपस्थिति बरकरार रखने के लिए उल्फा (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रन्ट ऑफ असम) प्रतिदिन किसी न किसी घटना को अंजाम देता है। उल्फा का गठन उस समय हुअा था जब आसू (आल असम स्टूडेन्ट्स यूनियन) ने 1979 में असम की धरती से बंगलादेशी मुसलमानों को बाहर निकालने की मांग उठाई थी। किन्तु समाचार माध्यमों तथा कांग्रेस सरकार ने आसू की इस मांग को असम में अन्य राज्यों से आए लोगों को भगाने के अर्थ में प्रचारित किया। इस कारण यह मांग दब सी गई। रही-सही कसर उल्फा ने पूरी कर दी।उल्फा के आंदोलन का मुख्य उद्देश्य असम की “आजादी” है। यह बात उल्फा के अध्यक्ष अरविन्द राजखोवा के उस घोषणापत्र से ज्ञात होती है, जो उसने गत 22 मई को बंगलादेश की जमीन से प्रसारित किया है। उल्फा ने पहले आसू के आंदोलन के स्वर में स्वर मिलाकर कहा कि विदेशियों को असम से हटाओ। मगर बाद में विदेशी शब्द की जगह बाहर से आने वाले, विशेषकर गैरअसमियाओं यानी भारतीयों के अर्थ में प्रयोग किया। क्योंकि जबसे म्यांमार से उसका अड्डा समाप्त हुआ है, बंगलादेश ने उल्फा को अपने यहां शरण दी है। तबसे बंगलादेश उल्फा का हितैषी हो गया है। उल्फा की इस करवट से विदेशी निकालो आन्दोलन एक दुर्भाग्यपूर्ण परिहास बन गया है। उल्फा भारत सरकार से युद्ध विराम-शांति समझौता वार्ता में तीसरे पक्ष की उपस्थिति के पक्ष में है। इसके लिए उसने पाकिस्तान व बंगलादेश की ओर संकेत किया था। लेकिन भारत सरकार ने असम निवासी डा. मामोनि जैसे विश्वसनीय व्यक्ति का नाम सामने रखा है।आसू का रुदन”आसू” अर्थात् अखिल असम छात्र संघ ने ही सन् 1977 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति के समय न केवल असम की, बल्कि पूर्वोत्तर की मूलभूत अशांति के कारणों में से एक पूर्वी बंगाल के मुसलमानों के आक्रमणों से बचाने की आवाज उठायी थी। असम को 1874 में बंगाल प्रांत से अलग किया गया था ताकि जो काम केरल, मद्रास तथा बंगाल में अंग्रेज न कर पाए थे उसे यहां कर सकें। वह था ईसाई राष्ट्र का भारत भूमि पर निर्माण करना।अंग्रेजों ने असम को ईसाई राष्ट्र बनाने के षडंत्र के तहत ही शायद सन् 1918-19 में जनजाति आरक्षण कानून बनाया था जिसे वहीं सबसे पहले लागू किया। जब बात न बनी तो 1946 में नेशनल काउंसिल आफ नागालिम बनवाकर फिजो के नेतृत्व में सशस्त्र क्रांति के द्वारा नागा स्वीधानता की मांग उठवाई। फिजो असफल हुआ तो अमरीका की भूमि पर एन.एस.सी.एन. को जन्म देकर नीदरलैण्ड, हांगकांग और बैंकाक में आश्रय दिया गया ताकि भारत, रूस और चीन उन पर सीधा आरोप न लगा सकें। नागा सशस्त्र आतंकवादी संगठनों ने सबसे पहले घोषित किया कि वे 14 अगस्त, 1947 तक स्वाधीन थे।उल्फा का खुलासाउल्फा ने सार्वभौमत्व का दावा प्रस्तुत किया कि असम को एक सम्प्रभुता सम्पन्न देश माना जाए, क्योंकि 14 अगस्त, 1947 तक वह स्वाधीन भारत के अधीन नहीं था, 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत का गठन हुआ है।अमरीका की मध्यस्थताउल्फा सोचता है, अमरीका जो भी करेगा वह उसके हक में ही होगा, क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना करके अमरीका सब कुछ कर सकता है। मगर अमरीका के राष्ट्रपति को सौ बार सोचना पड़ेगा कि वह उल्फा के अनुरोध को मानें या न मानें, क्योंकि तब उस पर एक विद्रोही गुट की बात मानने का आरोप लगेगा। असम की जनता एवं सरकार को यह सोचना होगा कि क्या उनके द्वारा सन् 1905 से प्रारंभ किया गया प्रजातंत्र का आन्दोलन झूठा था? क्या उनका बलिदान झूठा था, क्योंकि उल्फा तो 1979 में ही उदित हुआ है।NEWS

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