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डा. वीरेन्द्र कुमार विजयडा. वीरेन्द्र कमार ग्रामीण तकनीक विकास विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.), नई दिल्ली में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। प्रस्तुत है उनसे पाञ्चजन्य द्वारा की गई बातचीत के मुख्य अंश-जब हम समग्र रूप से चिन्तन करते हैं तो हमें स्पष्ट नजर आता है कि प्रकृति के साथ रहकर ही हम शान्ति एवं सच्चे सुख का अनुभव कर सकते हैं। अंधाधुंध विकास के चलते हमने पिछले 57 वर्षों में प्रकृति का भयानक शोषण किया है। अगर इसी तरह प्रकृति का भयानक शोषण चलता रहा, तो मुझे नहीं लगता कि हम अगले कुछ वर्षों में धरती को रहने लायक बचा पाएंगे।आज समय की मांग है कि हम ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों जैसे पेट्रोलियम, कोयला आदि जिनके स्रोत सीमित हैं, के स्थान पर अपारम्परिक स्रोत जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और जैव-ऊर्जा आदि की तकनीक को बढ़ावा दें। गांवों में पशुओं का गोबर बायो-गैस का अच्छा स्रोत है। आज सम्पूर्ण देश में छोटे स्तर पर लगभग 33 लाख बायो गैस संयंत्र काम कर रहे हैं। पर ये घरेलू आवश्यकता की पूर्ति करते हैं। बड़ी गौशालाओं और ग्रामों में जहां पर्याप्त गोबर उपलब्ध है वहां बड़े संयंत्र लगाकर व्यापक रूप से बायो गैस पैदा की जा सकती है। एक उल्लेखनीय बात यह है कि अब गोबर गैस संयंत्र द्वारा उत्पादित गैस को सी.एन.जी. सिलेण्डरों में भरा जा सकता है। हमने इस तकनीकी का सफल प्रयोग किया है। इस सिलेण्डर से हम अपने यहां कार चला रहे हैं और इसे चलाने में एक रुपए प्रति कि.मी. का खर्च आता है।संयंत्र की स्थापना में लागत भी कोई ज्यादा नहीं आती। मात्र 7-8 लाख रुपए में सिलेण्डर भरने का कारखाना लगाया जा सकता है। गांव-गांव में गो संरक्षण और गोपालन को प्रेरित करने में ये संयंत्र अत्यधिक उपयोगी साबित होंगे। ग्रामों में रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे। साथ ही गोबर गैस संयंत्र से निकलने वाली खाद खेतों के लिए अत्यंत लाभप्रद होती है। वैसे भी विश्व में जैविक खाद से बने अनाज की मांग बढ़ रही है।NEWS
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