सक्रिय विदेशी हाथ - 3
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सक्रिय विदेशी हाथ – 3

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Nov 12, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Nov 2005 00:00:00

विदेशों में स्वदेश का अपमान करने वाले “भारतीय”- शंकर शरणवरिष्ठ पत्रकार एवं विश्लेषक श्री शंकर शरण ने गैर सरकारी संगठनों को मिलने वाले विदेशी धन, भारत के सेकुलरों द्वारा दुनियाभर में दिए जाने वाले भारत-विरोधी बयानों, उन्हें मिलने वाले विदेशी पुरस्कारों आदि की राजनीति पर एक लम्बा लेख लिखा है, जिसके अंश क्रमश: प्रकाशित किए जा रहे हैं। यहां प्रस्तुत है उसी आलेख की तीसरी कड़ी। -सं.इन सवालों के जवाब साफ नहीं हैं। इसलिए नहीं कि जवाब खोजना मुश्किल है, बल्कि इसलिए कि सेकुलरिज्म की कसम खाए हमारे वरिष्ठ पत्रकार ऐसे महत्वपूर्ण तथ्यों को सामने नहीं लाना चाहते। इसके बावजूद धीरे-धीरे इतना हम जान चुके हैं कि अमरीका, यूरोप घूमने, वहां भारत (सरकार) की निन्दा करने, यहां की काली तस्वीर खींचने और तरह-तरह के पुरस्कार पाने में एक तारतम्य है। ध्यान रहे इस तरह के अभियान ठीक वर्ष 1998 से तेज हुए जब वाजपेयी सरकार बनी। दूसरे शब्दों में, इस सरकार को हिन्दूवादी बताकर कलंकित करने का सुनिश्चित कार्यक्रम था। इसके लिए जब कोई तथ्य नहीं मिलते थे, तो उन्हें गढ़ा जाता था। डांग, झाबुआ, क्योंझर आदि कांडों के सहारे (जिनमें कई तो “कांड” भी नहीं थे) जिस तरह जान-बूझ कर हिन्दू-विरोधी अन्तरराष्ट्रीय वितंडा खड़ा किया गया, वह बड़ी गंभीरता से जांचने-परखने का विषय है। पिछले पांच-छह सालों में कुछ भारतीयों को विदेशों से जो पुरस्कार, निमंत्रण मिले और जिस बात के लिए मिले, उनमें एक सुनिश्चित साजिश झलकती है। भारत सरकार और समाज की काली तस्वीर खींचो, पाकिस्तान का बचाव करो, ईसाई मिशनरियों व इस्लामी संगठनों को मदद पहुंचाओ और इनाम लो! निर्मला जी को यह पता था या नहीं, मगर पैटर्न यही है। ऐसे गांधीवादियों को देखकर गांधी जी की आत्मा जरूर करवट ले रही होगी।यह भारत-विरोधी अन्तरराष्ट्रीय प्रचार परियोजना अदृश्य शक्तियों द्वारा परिचालित है। वे अलग-अलग और भिन्न-भिन्न उद्देश्यों से काम कर रहे हैं। मगर भारत को बदनाम, कमजोर और हो सके तो तोड़ने के प्रयास में वे एक हैं। इसमें यहां के कुछ “प्रतिष्ठित” लोगों, नामों का सच्चा-झूठा इस्तेमाल होता है। यदि वे प्रतिष्ठित न हों, तो उन्हें पुरस्कार, प्रचार आदि देकर प्रतिष्ठित बनाया जाता है ताकि पश्चिम की अनजान जनता को भरोसा दिलाया जा सके कि भारत के लोग कितने अन्धकार और कष्ट में हैं। फिर इसका उपयोग यह होता है कि जॉन दयाल जैसे भारतीय एक्टिविस्ट व पत्रकार अपने गले में ऐसी इबारत लिखी तख्ती लगाकर पश्चिमी देशों में घूमते हैं कि “भारत में हिन्दुत्व दलितों, ईसाइयों, मुसलमानों के साथ बलात्कार करता है और उन्हें मारता है।” ऐसा झूठा प्रचार इसलिए भी किया जाता है ताकि पश्चिमी जनता, सरकारें, वित्तीय संगठन भारत में “शान्ति लाने” और “प्रकाश फैलाने” के लिए ईसाई मिशनरी संगठनों, प्रचारकों को भरपूर पैसा और अन्य सहयोग दें। विदेशों में इस भारत-विरोधी दुष्प्रचार में “साउथ एशियन” संज्ञा-विशेषण वाले (परन्तु वस्तुत: इस्लामी, पाकिस्तानी वर्चस्व वाले) अनेक संगठनों का भी सक्रिय सहयोग रहता है ताकि पश्चिमी नीति-निर्माताओं को प्रामाणिक रूप से आश्वस्त किया जा सके कि भारत में ऐसा कोई लोकतंत्र नहीं, जिसे पाकिस्तान से बेहतर समझें ताकि पाकिस्तान के इस्लामी एजेंडे के प्रति पश्चिम की आंखों में धूल झोंकी जा सके ताकि उसके प्रति अमरीकी जनमत का रुख कड़ा हो सके।निर्मला जी या जॉल दयाल जी या सेड्रिक प्रकाश कोई अकेले उत्साही नहीं थे। कई उदाहरण सामने हैं। तीस्ता सीतलवाड, प्रफुल्ल बिदवई, अरुंधती राय, रिटायर्ड एडमिरल रामदास जैसे कई महानुभावों को पिछले पांच-छह सालों में विभिन्न पश्चिमी संगठनों द्वारा अनेक पुरस्कार और निमंत्रण मिले। फलस्वरूप इन्होंने बारम्बार पाकिस्तान, अमरीका, यूरोप की यात्राएं की हैं। उन यात्राओं में इनके बयानों और उससे निकलने वाले निष्कर्षों में अपूर्व समानता है। उतने ही बड़े-बड़े झूठ भी। एडमिरल रामदास “पाकिस्तान इण्डिया पीपुल्स फोरम फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी” के भारतीय शाखा के अध्यक्ष हैं। जनवरी, 1997 में अंग्रेजी दैनिक एशियन एज ने लिखा था कि अमरीकी नीति-निर्माताओं ने कश्मीर के सम्बन्ध में एक घातक रणनीति बनाई है। इसमें भारत की उन गैर सरकारी संस्थाओं (एन.जी.ओ.) की सेवाएं लेने पर ध्यान केन्द्रित किया गया, जो अमरीकी कांग्रेस के समक्ष भारत विरोधी गवाहियां दे सकती हैं, जो कश्मीर के बारे में इच्छित सूचनाएं जुटा सकती हैं और जो भारत सरकार पर दबाव डालने का एक साधन बन सकती हैं। एशियन एज के अनुसार ऐसा एक प्रमुख एन.जी.ओ. है “पाकिस्तान-इण्डिया पीपुल्स फोरम फार पीस एंड डेमोक्रेसी”। इस फोरम की प्रमुख हस्तियों में तीस्ता सीतलवाड और एडमिरल रामदास हैं।इन्हीं रामदास जी को “वीमेंस एक्शन फार न्यू डायरेक्शंस” एवं “इंस्टीटूट फार एनर्जी एंड एनवारयनमेंट” फरवरी 2002 में वाशिंगटन की यात्रा पर ले गए। वहां रामदास जी मानो पाकिस्तानी प्रवक्ता की तरह बयान दे रहे थे। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना के पास “प्रभावशाली कमांड, संचार, सूचना-व्यवस्था आदि कुछ नहीं है।” तात्पर्य हुआ कि इसलिए नाभिकीय हथियारों के मामले में भारत पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता। यानी पाकिस्तानी तानाशाही और भारतीय लोकतंत्र बराबर! साथ ही उन्होंने जनरल मुशर्रफ की भूरि-भूरि प्रशंसा की। रामदास ने भारत पर यह आरोप भी लगाया कि भारत ने पाकिस्तान के “नो-वार पैक्ट” प्रस्ताव को खारिज कर तनाव बढ़ाया है।रामदास जी भारत से कश्मीर की “आजादी” के भी खुले हिमायती हैं। 14-15 अप्रैल, 2001 को नागपुर में “द चर्च ऑफ नार्थ इंडिया” ने “पाकिस्तान इण्डिया पीपुल्स फोरम फार पीस एंड डेमोक्रेसी” का भारतीय सम्मेलन कराया। उसमें भाग लेने वाले एक सज्जन पी.सी. देशमुख ने उसका विवरण दिया है, जिससे यह निष्कर्ष निकाले बिना नहीं रहा जा सकता कि यह तथाकथित फोरम वस्तुत: भारत में पाकिस्तानी दुष्प्रचार चलाने के लिए एक मुखौटा मात्र है। उस सम्मेलन में पाकिस्तान की आलोचना में उठने वाले हर स्वर को जबरन बन्द कराया गया। जबकि भारत के विरुद्ध जाने वाली हर तरह की बात कही गई। अगस्त, 2003 में आपको और तीस्ता सीतलवाड को “इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ इवांजेलिकल चर्चेज” नामक मिशनरी संगठन ने “ग्राहम स्टेंस इंटरनेशनल अवार्ड फॉर रिलीजियस हार्मोनी” प्रदान किया था। इस संगठन और अवार्ड के नाम से ही सन्देश साफ है कि मजहबी सौहार्द के लिए आवश्यक है कि विदेशी ईसाई मिशनरियों को बिना किसी बाधा के मतान्तरण कराने दिया जाए। यदि कोई इस मतान्तरण कार्यक्रम को रोकता है, तो वह “रिलीजियस हार्मोनी” बिगाड़ता है!इसी प्रकार तीस्ता सीतलवाड की पत्रिका “कम्युनलिज्म कॉम्बैट” (सबरंग कम्युनिकेशंस), जिसे सच कहें तो “हिन्दू कॉम्बैट” कहा जाना चाहिए, ने एक बार लोक सभा चुनाव में प्रचार अभियान चलाया था। यह सितम्बर 1999 की बात है जब एन.जी.ओ. के एक पूरे समूह ने देश के बड़े-बड़े अखबारों में पूरे पृष्ठ के कई विज्ञापन छपवाए। इनमें भाजपा को महिलाओं और अल्पसंख्यकों का दुश्मन बताया गया था। इन विज्ञापनों में करीब 75 लाख रुपए खर्च हुए थे। तब बात उठी कि इन एन.जी.ओ. में कई ने विदेशों से अनुदान लेने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवाया हुआ था। अर्थात इन विज्ञापनों में विदेशी धन का उपयोग किया गया जो भारत की विदेशी मुद्रा विनियम एक्ट की धारा 5 (1) का उल्लंघन था। यह धारा विदेशी अनुदान लेने वाले संगठनों को राजनीतिक कार्यकलाप से रोकती है। जब विज्ञापन अभियान की प्रमुख संचालक तीस्ता जी से इण्डियन एक्सप्रेस ने इस पर पूछा तो उनका उत्तर था कि सारा खर्च उनकी पत्रिका “कम्युनलिज्म कॉम्बैट” ने उठाया है, जो भारतीय स्रोतों से जुटाया गया। लेकिन इन्हीं तीस्ता जी ने इण्डिया टुडे को बताया कि यह धन विभिन्न एन.जी.ओ. के सहयोग से इकट्ठा किया गया था। धन कहां से आया, स्पष्ट नहीं हुआ पर हमारे मीडिया में ऐसे कारनामों पर कोई आक्रोश नहीं उपजता।जुलाई, 2000 में तीस्ता जी के सबरंग कम्युनिकेशंस ने एक और लाक्षणिक अभियान चलाया। विश्व हिन्दू परिषद् (वि.हि.प.) ने संयुक्त राष्ट्र के समक्ष विमर्शी स्वयंसेवी संगठन की मान्यता प्राप्त करने के लिए आवेदन किया था। सबरंग ने दुनियाभर के लोगों से अपील की कि वे संयुक्त राष्ट्र को धुआंधार विरोध-पत्र भेज कर वि.हि.प. को यह मान्यता मिलने से रोकें, क्योंकि यह वह संगठन है, जो अन्य अपराधों के अलावा “पिछले दो सालों से ईसाइयों के विरुद्ध घृणा अभियान चला रहा है।” सबरंग ने वि.हि.प. के विरुद्ध आपत्ति करने के लिए पाकिस्तान को धन्यवाद भी दिया। पाकिस्तान के साथ तीस्ता जी की यह हिन्दू-विरोधी एकता बड़ी लाक्षणिक थी। शिक्षा-प्रद भी। उचित यह था कि तीस्ता जी अपना वि.हि.प. विरोधी अभियान भारत में ही चलातीं।सबरंग की वेबसाइट पर “पाकिस्तान-इण्डिया पीपुल्स फोरम” का “लोगो” (प्रतीक चिन्ह) भी तीस्ता जी का एक लाक्षणिक बयान ही था। उसमें पाकिस्तान और भारत का ऐसा नक्शा बनाया गया था, जिसमें दोनों देशों के क्षेत्रफल लगभग बराबर बना दिए गए थे। कैसे? वह ऐसे कि पूरे जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान का अंग दिखाया गया था और सम्पूर्ण उत्तर-पूर्वी भारत को गायब कर दिया गया था। जब सुप्रसिद्ध स्तम्भ-लेखिका वर्षा भोसले ने नवम्बर, 2002 में रिडिफ वेबसाइट पर अपने लेख में इसे भारत को तोड़ने की ख्वाहिश का प्रतीक बताया तो सबरंग ने साइट से वह “लोगो”े हटा लिया। शायद “लोगो” तीस्ता जी की महत्वाकांक्षा के बारे में कुछ ज्यादा ही कह रहा था।जब फरवरी, 2002 में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में अयोध्या से लौट रहे 59 हिन्दू जल कर मरे थे, तो तीस्ता जी ने अमरीकी पत्र वाशिंगटन पोस्ट को यह जोरदार बयान दिया: “आप किसी घटना को अलग करके नहीं देख सकते। उसके लिए दिए भड़कावे को नहीं भूलना चाहिए। ये (जलाए गए) लोग किसी सद्भावपूर्ण सभा में नहीं गए थे। वे तो मन्दिर बनाने के लिए अवैध लामबन्दी में लगे थे और उन्होंने जानबूझ कर भारत के मुसलमानों को भड़काया।” ध्यान रहे, यह बयान उस कांड वाले दिन ही आ गया था, जब प्रतिक्रियात्मक दंगे शुरू नहीं हुए थे। तीस्ता जी गोधरा की नृशंसता को स्वाभाविक बताते हुए कह रही थीं कि जल कर मरे हिन्दू ही दोषी थे। इसीलिए उन्होंने बयान में यह झूठ भी जोड़ा कि वे सभी हिन्दू मृतक-स्त्रियों, बच्चों समेत-सामान्य तीर्थयात्री नहीं, वरन् एक्टिविस्ट थे।अपने ऐसे ही कारनामों से तीस्ता जी इस्लामी, ईसाई मिशनरी संगठनों के बीच लोकप्रिय हुई हैं। सन् 2001 में कैथोलिक चर्च द्वारा इन्हें “पैक्स क्रिस्टी इंटरनेशनल पीस प्राइज” से पुरस्कृत किया गया। पैक्स क्रिस्टी नाम से ही स्पष्ट है: जो केवल ईसाइयत द्वारा शान्ति का दावा करती है। तीस्ता जी को यह पुरस्कार देने का कारण बताया गया कि इन्होंने 1993 के मुम्बई दंगों में पुलिस के मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह को उजागर किया था। यह भी कि उन्होंने पाकिस्तान-भारत (भारत-पाकिस्तान नहीं) संवाद बढ़ाने में खूब प्रयास किए। “पैक्स क्रिस्टी” ने तीस्ता को हिन्दुत्व की जानकार और इस विषय पर पुस्तक-लेखिका भी बताया। यह वही तीस्ता हैं जो गुजरात दंगों से सम्बन्धित बेस्ट बेकरी मामले में विवादों के घेरे में हैं। अब तीस्ता जी के इन कामों की जांच सर्वोच्च न्यायालय के महापंजीयक कर रहे हैं। किन्तु ध्यान देने की बात यह है कि पूरी दुनिया में भारतीय न्याय व्यवस्था, भारत की सरकार की भरपूर बदनामी की जा चुकी है, उद्देश्य पूरा हो चुका है।अरुंधती राय भी इसी तरह की हस्ती हैं। उन्हें अमरीकी “लेन्नान फाउंडेशन” ने यह कह कर पुरस्कृत किया कि वह बड़ी बहादुरी से भारत की जुल्मी सत्ता से लड़ रही हैं। अरुंधती घेाषित रूप से कहती हैं कि वह भारत की नागरिक नहीं वरन् “ग्लोबल सिटीजन” हैं। जैसा ऊपर उद्धृत है, उनके शब्दों में, “राष्ट्रीय झंडा कपड़े का टुकड़ा मात्र है, जो दिमाग को तंग बनाता है और मुर्दों को लपेटने के काम आता है।” यह और बात है कि अरुंधती जी भारत भूमि की सारी सुविधाएं उठाती हैं। यहां तक कि वन्य कानूनों का उल्लंघन करके उन्होंने पंचमढ़ी के संरक्षित वन प्रदेश में अपना खूबसूरत बंगला बनवाया। होशंगाबाद जिला प्रशासन के अनुसार उन्होंने अनियमित तरीके से जमीन लेकर अवैध बंगले बनाए। इस आरोप को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी सही पाया और अरुंधती की अपील खारिज कर दी। यही अरुंधती जी भारत में मुसलमानों के लिए जीवन “भयंकर” बताती हैं। भारत के परमाणु परीक्षणों को दुनिया के लिए खतरा दिखाती हैं।…जारीNEWS

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