सूखती नदियां, सिकुड़ते तीर्थ
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सूखती नदियां, सिकुड़ते तीर्थ

by
Oct 7, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Oct 2005 00:00:00

केरलकेरल में दम तोड़ती नदियांपानी की भूमि का “पानी” गायब-राजीव श्रीनिवासनमाना जाता है कि केरल का जन्म ही वर्षा से हुआ। यह उष्ण कटिबन्धीय प्रदेश मानसून पर निर्भर है। केरल के तटीय क्षेत्र वस्तुत: अत्यंत खूबसूरत हैं। परवूर और कोल्लम के चारों ओर की झीलें, निंदकारा के नदी मुहाने, अंबलापुझा का सागर तट, जिसे महाकवि तक्षी ने अपनी कृति “चेम्मीन” में अमर बना दिया, कोचीन में रेल और सड़क सेतु, जिसे मायाझी नदी पर प्रसिद्ध एम मुकुन्दन ने बनाया था। केरल के ये सभी स्थान अत्यंत ख्याति प्राप्त हैं।यह विश्वास करना कठिन है कि यह जल-प्रदेश आज जल की कमी का सामना कर रहा है। अभी भी, इस वर्ष दक्षिण-पश्चिमी मानसून के बरसने की आशाएं क्षीण हैं। इसके आने में हो रहा विलम्ब केवल केरल ही नहीं, समूचे देश की चिंता का विषय है, क्योंकि सकल घरेलू उत्पाद की दर वर्षा पर निर्भर है। आज केरल अपने जल संसाधनों के प्रति अपव्ययी प्रवृत्ति वाला और बेपरवाह दिखाई पड़ता है। राज्य में सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तन के कारण भी गंभीर जल संकट खड़ा हुआ है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण सूखती नीला नदी (पूर्व नाम भारतपुझा) है। यह केरल की उन बड़ी नदियों में से एक है जो पश्चिमी घाट के पर्वतों से निकलकर सागर में मिलती है। अब इसे क्या कहा जाए कि जो नदी कभी जल से लबालब रहती थी, अब अत्यंत छोटे और बूंद-बूंद कर बहते प्रवाह के रूप में बची है। उत्तर भारत की अनेक सूखी- रेत भरी नदियों के समान ही इसका भी हाल बेहाल है।एक तरफ केरल में वन क्षेत्रों का व्यापक विनाश किया गया है। बड़े पैमाने पर, विशेष रूप में मध्य केरल में जंगलों और हरियाली का सफाया हुआ है। “शोला” प्रजाति के जंगलों का सफाया कर वहां अब नकदी फसलें उगायी जा रही हैं। परिणामस्वरूप, केरल में बारिश तो कम हो ही गई है, और जैसे मेघालय के खासी क्षेत्र के पर्वतों और चेरापुंजी के आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण को नष्ट करने के लिए मतान्तरण जिम्मेदार माना जाता है, उसी प्रकार से केरल के प्राकृतिक स्थलों पर ये सब चीजें घटित हुईं।कोचीन के आस-पास के औद्योगिक प्रदूषण ने पेरियार नदी को देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक बना दिया है। वस्तुत: केरल की नदियां दम तोड़ रही हैं।इस क्षरण को सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तनों ने और हवा दी है। एक समय था कि तिरुअनन्तपुरम से कोचीन तक जल मार्ग द्वारा यातायात होता था और बड़े-बड़े मालवाहक जहाज जल मार्गों से सभी प्रकार की वस्तुओं और सामानों को लेकर आया-जाया करते थे। लेकिन देख-रेख के अभाव में ये जल मार्ग नष्ट हो रहे हैं।राज्य में एक समय ऐसा भी था कि प्रत्येक गांव में, प्रत्येक घर का अपना तालाब होता था और भी अनेक ऐसे जल स्रोत लोग बनाने में लगे रहते थे। पर आज यह स्थिति नहीं है।इस स्थिति के लिए राज्य सरकार ही जिम्मेदार है। तिरुअनंतपुरम के पास मुत्तादा में एक आकर्षक तालाब था, जो मुझे बचपन में अत्यंत मनभावन लगता था। आज इसके विशाल जल स्रोत को पूर्णतया पाटकर, इस पर एक पांच मंजिला भवन निर्मित कर दिया गया है। विडम्बना यह है कि इस भवन में “भूजल संरक्षण अधिकारी” का कार्यालय भी है।वामपंथी प्रभाव के कारण देश में केरल ऐसा राज्य बन गया है जहां के खेतीहर मजदूरों को सर्वाधिक आय होती है, उन्हें पेंशन जैसी सुविधाएं भी प्राप्त हैं। इसके चलते मजदूरों का जीवन स्तर तो अवश्य सुधरा, लेकिन इसका उल्टा प्रभाव भी पड़ा। राज्य में महंगी मजदूरी ने धान की खेती को दूभर बना दिया। धान के बड़े-बड़े खेत खाली रहने लगे और कालान्तर में वामपंथी सरकार ने इन कृषि योग्य जमीनों के आवासीय इस्तेमाल की अनुमति दे दी। जलस्तर के लिए यह सब अत्यंत खतरनाक सिद्ध हुआ है। लोगों ने पानी की जरूरत के लिए जहां कुंए गहरे कराए वहीं “बोर-वेल” की नई तकनीक ने भी जल स्रोतों पर कहर ढाया। आज जो चिंताजनक स्थिति है, उसमें कुंए पाटे जा रहे हैं, जमीन से जल खींचने की नई तकनीक ने मानो कुंओं को अप्रासंगिक बना दिया है।इन सभी के ऊपर, पलक्कड़ में कोका-कोला की नवस्थापित इकाई ने नयी समस्या खड़ी कर दी है। इसने ऐसे खतरनाक तरीके से भूजल का दोहन किया है कि किसान अपने दैनन्दिन जीवन और कृषि कार्यों के लिए मिलने वाले जल के संकट से जूझने को मजबूर हैं। साथ ही कम्पनी ने अपने जहरीले कचरे को खाद के नाम पर किसानों के जिम्मे कर दिया है। कोका-कोला के उत्पाद कीटनाशकों और जहरीले रासायनिक पदार्थों के चलते किस कदर प्रदूषित हैं इसका पता हाल ही में तब चला, जब इसके उत्पादों से भरे जहाजों पर “अमरीकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन” ने अमरीका आने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कोका-कोला संयंत्र पलक्कड़ जिले के उस इलाके में स्थापित है जहां पहले से ही पानी की भारी कमी है। इस संयंत्र की कारगुजारियों के विरुद्ध भारत संसाधन केन्द्र नामक एक गैर-सरकारी संगठन के अकेले कर्ता-धर्ता अमित श्रीवास्तव ने इतना हल्ला-गुल्ला मचाया कि कोका कोला कम्पनी के समक्ष गंभीर परेशानियां पैदा हो गईं। इसके चलते अमरीका की प्रसिद्ध “वालस्ट्रीट जनरल” पत्रिका ने अमित श्रीवास्तव को अपने मुख पृष्ठ पर स्थान दिया।अंतत: केरल के प्रसिद्ध जलस्रोत और नहरें आज मछलियों एवं जलीय पौधों से रहित हो गए हैं और यह एक विनाशकारी जलीय खर-पतवार “हाकिन्च” के कारण हुआ है। इस विदेशी पौधे ने जल स्रोतों में अपने अभेद्य जाल से जीवन के लिए आवश्यक आक्सीजन को ही नष्ट कर दिया है। यह उन विदेशी पौधों का एक उदाहरण है जो देशी जलीय पौधों व जन्तुओं पर कहर बरपा रहे हैं। यह विदेशी पौधा कभी किसी के द्वारा साज-सज्जा के लिए यहां लाया गया था। इन खतरों के बावजूद केरल के लोगों में समृद्धि बढ़ी है, पर किसकी कीमत पर?NEWS

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