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निवर्तमान संपादक,द सेंटिनल (गुवाहाटी)20 साल और हिन्दू घटने दीजिएअसम हाथ से निकल जाएगाअसम में हिन्दू घटे, बंगलादेशी बढ़े तो देखिए क्या नतीजा मिल रहा है। उत्तर-पूर्व की मौजूदा परिस्थितियां चिंताजनक हैं और तेजी से खतरनाक दिशा की ओर बढ़ रही हैं। मैंने अभी एक संगोष्ठी में इसकी चर्चा करते हुए कहा था कि आने वाले 20 साल में असम, बंगलादेश में मिल जाएगा। इसके पूरे आसार हैं। असम की वर्तमान सरकार इस षडंत्र में पूरी तरह सहायक बन रही है। अगर ऐसा हुआ तो दिल्ली वालों को असम आने के लिए पासपोर्ट लेना पड़ेगा। और असम ही क्या, पूरा उत्तर-पूर्व भारत इस मुख्यभूमि से कट जाएगा।मेरा ऐसा कहने का पुख्ता आधार है। सबसे बड़ी समस्या है असम में लागू आई.एम.डी.टी. एक्ट। राज्य पुलिस में मुस्लिमों को भर्ती किया जा रहा है। असम के गृह राज्यमंत्री रकीबुल हुसैन बंगलादेशी समर्थक गुट के व्यक्ति हैं। ये तीनों चीजें मिलकर बड़े षडंत्र की ओर ही संकेत करती हैं जिसके इसके पीछे पाकिस्तानी आई.एस.आई. है। असम के मुख्यमंत्री वही भाषा बोल रहे हैं जो आई.एस.आई. की है, जो बंगलादेशी समर्थक गुट की है। हालांकि असम में अभी आई.एस.आई. ने अपने अड्डे इतने नहीं बनाए हैं और वह बंगलादेश से ही यहां सब गतिविधियां संचालित कर रही है। 1994 की गृह मंत्रालय की रपट में साफ लिखा है कि कितने बड़े पैमाने पर आई.एस.आई. असम में अपने सूत्र जमा रही है। लेकिन आश्चर्य है कि अब 11 साल हो गए, उस रपट पर कुछ किया नहीं गया।दूसरी बात, हिन्दुस्थान एकमात्र ऐसा देश है जिसकी कोई आव्रजन नीति नहीं है। उत्तर प्रदेश और बिहार के दो मुख्यमंत्री, जो प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए हैं, कई बार कह चुके हैं कि उनके राज्य में बंगलादेशी घुसपैठिए काफी सालों से रह रहे हैं, उन्हें रहने दिया जाए, क्योंकि वे एक “नागरिक” के नाते वोट डालते हैं। मान लीजिए बिहार में 50 लाख बंगलादेशी हैं, लेकिन तब भी वह व्यक्ति जो प्रधानमंत्री बनना चाहता है, कहता है उन्हें वहीं बसा रहने दीजिए! ऐसा कहना उसी देश में संभव है जहां कोई आव्रजन नीति नहीं है। दूसरे, हिन्दुस्थान की तरह दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं जहां दो तरह के आव्रजन कानून लागू हैं। अगर इस देश की कोई आव्रजन नीति होती तो दो कानून संभव ही नहीं थे, क्योंकि अगर पहले कानून के रहते हुए दूसरा कानून लाया जाता है तो पहले वाले कानून को वह निष्प्रभावी कर देता है।इसके अलावा, दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है जहां का आव्रजन कानून अवैध घुसपैठियों के प्रति नरम हो। दुर्भाग्य से यह भारत में ही संभव है। हमारा आई.एम.डी.टी. एक्ट अवैध घुसपैठियों को निकाल बाहर करने के लिए नहीं, बल्कि उनको यहां सही-सलामत बसाने के लिए है। जबकि, दूसरे देश में क्या होता है, उसको भी देखें। ब्रिाटेन में गैर कानूनी रूप से रहने वाला विदेशी नागरिक पकड़ा जाता है तो उसको 10 दिन के अंदर देश से बाहर करना जरूरी होता है। फ्रांसीसी कानून में यह मियाद 30 दिन है और जर्मनी में 40 दिन। उधर हमारे आई.एम.डी.टी. एक्ट के अनुसार तो उस विदेशी नागरिक को कभी बाहर करने की बाध्यता ही नहीं है।तीसरे, हर देश में पकड़ा गया व्यक्ति विदेशी नागरिक है या नहीं, इसे सिद्ध करने का दायित्व, यानी जिसे हम अंग्रेजी में “ओनस आफ प्रूफ” कहते हैं, उस पकड़े गए अवैध व्यक्ति के ऊपर होता है। हमारे यहां पहले से चले आ रहे विदेशी नागरिक कानून-1946 में भी यही प्रावधान है, लेकिन आई.एम.डी.टी. एक्ट के तहत तो पकड़े गए अवैध बंगलादेशी नागरिक को नहीं सिद्ध करना होता कि वह बंगलादेशी है या सरकार को भी यह सिद्ध नहीं करना पड़ता। यह तो उन दो या तीन लोगों को ही प्रमाणित करना होता है, जिन्होंने उसके खिलाफ शिकायत की हो कि फलां व्यक्ति विदेशी नागरिक है।चौथी बात, हर देश के आव्रजन कानून के अनुसार “डिटेक्शन एंड डीपोर्टेशन” (पहचान और निर्वासन) का काम कार्यपालिका और पुलिस विभाग का है। जबकि आई.एम.डी. टी एक्ट के तहत अवैध विदेशी की “पहचान और निर्वासन” का काम उस न्यायाधिकरण को सौंपा गया है, जिसे विदेशी नागरिक को निकाल बाहर करने का कोई अधिकार ही प्राप्त नहीं है। ये जितने न्यायाधिकरण होते हैं उनके सब कत्र्ता-धत्र्ता “रिटायर्ड” (सेवानिवृत्त) न्यायाधीश होते हैं। हम उन्हें “रिटायर्ड एंड टायर्ड जजेस” कहते हैं, जो दोपहर 2 बजे के बाद काम नहीं करते हैं। उन्हें वेतन मिलता है पर काम के नाम पर कुछ नहीं होता। 1983 से आज तक इस न्यायाधिकरण ने 400 करोड़ रुपए खर्च किए हैं जबकि 1000 से भी कम बंगलादेशियों को इसने निकाला है। यह सोचने की बात है।डा. उमर खालिदी ने मुस्लिमबहुल जिलों की बात की है। वे अमरीका में रहते हैं, लेकिन मुझे तो उनकी बातों से अधिक खतरा उन लोगों से दिखता है जो भारत में रहकर उनके जैसी सोच पाले हुए हैं। राम विलास पासवान को ही देखिए, जो कहते हैं कि बिहार में मुस्लिम मुख्यमंत्री होना चाहिए। उनसे पूछना चाहिए कि वे ऐसा क्यों कह रहे हैं? खालिदी से तो हम बाद में पूछेंगे। (आलोक गोस्वामी से बातचीत पर आधारित)NEWS
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