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धर्म के साथ राष्ट्र भी नष्ट होता है”मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना”, ये इकबाल के शब्द हैं। हिन्दू धर्म ने सदियों से इस देश में आक्रमणकर्ताओं को झेला है और सभी मत-पंथों को अपने अन्दर समाहित कर लिया है, फिर भी यह नष्ट या भ्रष्ट नहीं हुआ। कारण है इसकी उदात्तता और इसके मूल में छिपा मानवता का संदेश। रहन-सहन हो, भाषा हो, पहनावा हो, खान-पान हो, कला, साहित्य या संस्कृति हो, भारत की विविधता में एकता है और यही भारतीयता है। हम भारतीयों ने विश्व को सर्वधर्म सद्भाव और “वसुधैव कुटुम्बकम्” का पाठ हमेशा पढ़ाया है।स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में कोई भी व्यक्ति तभी हिन्दू कहलाने का अधिकारी है जब वह समाज के लिए लिए कुछ भी सहने को तत्पर हो। उन महान गुरु गोविन्द सिंह के समान, जिन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना रक्त बहाया, रणक्षेत्र में अपने लाडले बेटों का बलिदान होते देखा। पर जिनके लिए उन्होंने अपना तथा अपने सम्बंधियों का रक्त चढ़ाया, उनके ही द्वारा परित्यक्त होने पर वह घायल सिंह चुपचाप हट गया और दक्षिण में जाकर चिर निद्रा में सो गया। परन्तु जिन्होंने कृतघ्नतापूर्वक उनका साथ छोड़ दिया था, उनके लिए अभिशाप का एक शब्द भी उस वीर के मुंह से न फूटा। यह है आदर्श उस महान गुरु का।आजकल इस बात की बड़ी चर्चा है कि हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता किसमें है? हिन्दू धर्म का शीर्षस्थ गुण कौन-सा है? किसे हिन्दू धर्म शिरोभूषण कहा जा सकता है? भले ही इस चर्चा के पीछे सचाई जानने की वास्तविक इच्छा हो अथवा मात्र शब्दों का छल, पर चर्चा चलती रहती है। हम हिन्दुओं में से ऐसे कितने होंगे जिन्हें इसकी जानकारी होगी कि अपने धर्म का शिरोभूषण वास्तव में कौन है?किसी भी धर्म का रहस्य न समझते हुए उसकी प्रशंसा व्यर्थ है। विदेशी लोग कितने ही विद्वान एवं तीक्ष्ण बुद्धि हों, वे हमारे धर्म और हमारी समाज-व्यवस्था के बीच का अन्तर समझ नहीं सकते। क्योंकि हमारी समाज-व्यवस्था की अनेक बातों में धर्म की सत्ता चलती है। हिन्दू धर्म का एक अनुभाग, जिसे उपनिषद् कहते हैं, ऐसा है जिसमें परम, सार्वभौम, सत्य, शाश्वत, चिरन्तन ज्ञान और विचारों का वर्णन है। संसार के अन्य किसी सुसंगत धर्म- मत में इसका अभाव है।हिन्दू धर्म में दंत कथाओं का प्रचुर भंडार है किन्तु अन्य किसी धर्म की अपेक्षा हिन्दू-धर्म की यथार्थ विषयवस्तु इन दंत कथाओं पर कम से कम निर्भर है। पाश्चात्य लोगों की श्रद्धा पर ऐतिहासिक कैंची चलाई जाए तो उनकी श्रद्धा कहीं टिकेगी नहीं। उनकी श्रद्धा एवं विश्वास का कोई आधार नहीं बचेगा। किन्तु हिन्दू धर्म के साथ ऐसा नहीं है। सत्य के अन्वेषण के लिए चलने वाली प्रत्येक दौड़-धूप, सत्य संधान का प्रत्येक प्रयोग हिन्दू धर्म में पवित्र माना गया है। ब्राूनो अगर भारत में जन्मा होता तो कभी जीवित नहीं जलाया गया होता, गैलीलियो यदि भारतवासी होता तो कभी सताया न गया होता।हिन्दू धर्म एक ऐसे समाज का धर्म है जो कभी बर्बर नहीं बना। ज्ञान एवं शिक्षा के साथ हमारा कभी विरोध, संघर्ष नहीं रहा। सत्य के विविध स्वरूपों में हम कोई भेद नहीं करते। हिन्दू धर्म की मूर्ति पूजा भी ज्ञान-विरोधी नहीं। हमें अपनी श्रद्धा के प्रति प्रामाणिक होना चाहिए। यहां गणित विद्या भी दैवीय है और शास्त्रज्ञ भी ऋषि ही हैं। पाणिनी, आर्यभट्ट, धन्वन्तरि और सुश्रुत सभी को हमारे यहां ऋषि माना जाता है।”अपना धर्म नष्ट हो रहा है, कलियुग आ गया”, ऐसा कहने वालों को भली-भांति ध्यान रखना चाहिए कि जो नष्ट होने जा रहे हैं, वे उनके अंधविश्वास हैं, न कि धर्म के सत्य व शाश्वत सिद्धान्त। कोई सुबह उठकर चाय पीता है या सर घुटाने के स्थान पर केश रखता है तो इससे हिन्दू धर्म समाप्त होने वाला नहीं है। जाति, व्यवसाय, रहन-सहन, आचार-व्यवहार से सभी नष्ट हो जाएं, फिर भी हिन्दू धर्म यथावत अभंग खड़ा रहेगा। हिन्दू धर्म के आचार-विचार इतनी अल्पावधि में ईसाई देशों में फैल रहे हैं, इसी से क्या हम हिन्दू धर्म के भविष्य के विषय में कल्पना नहीं कर सकते?क्या हम नहीं जानते कि धर्म-पंथों के विलुप्त होने से राष्ट्र भी नष्ट हो जाते हैं? प्राचीन मिस्र और बेबीलोन की सभ्यता के इतिहास की दु:खद कहानी यह सत्य बताती है। वे राष्ट्र मर गए, सदा के लिए नष्ट हो गए। उनके पुनर्जीवित होने की कोई संभावना अब नहीं है, क्योंकि उन्होंने अपने पूर्वजों की विचार-धरोहर को त्याग दिया। भारत वर्ष ऐसा आततायी आत्मघाती काम कभी नहीं करेगा। भारतवर्ष अपनी अस्मिता का त्याग नहीं करेगा बल्कि वह संसार भर में छा जाएगा।NEWS
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