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अभिभावकों पर नैतिक जिम्मेदारी-गोविन्द सिंह नेगीप्रधानाचार्य, भारतीय विद्या भवन विद्यालयछात्रों की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन आवश्यक हो जाता है। पहले तो विद्यालयीन परीक्षाओं में बच्चों के प्राप्तांकों के आधार पर योग्यता सूची बनती थी और उसके आधार पर विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश मिल जाता था। परन्तु कुछ बोर्ड अपने छात्रों को जब अधिक अंक देने लगे और योग्यता सूचियों में गड़बड़ियां होने लगीं तो प्रवेश परीक्षाओं का चलन आरम्भ हुआ।ऐसी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र “लीक” होने की घटनाओं की पुनरावृत्ति आश्चर्य तो पैदा करती ही है, छात्रों में भी तनाव पैदा होता है। मुझे लगता है देश के स्तर पर एक ही पाठ्यक्रम के लिए समान राष्ट्रीय परीक्षा हो तो संभवत: इतनी अधिक परीक्षाएं नहीं आयोजित करनी पड़ेंगी। साथ ही, छोटी कक्षाओं के लिए सी.बी.एस. ई. द्वारा प्रस्तावित सतत और व्यापक मूल्यांकन की पद्धति उचित प्रकार लागू हो तो समस्याएं कम हो सकती हैं। प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में श्रेणी (ग्रेड) प्रणाली लागू होनी चाहिए। बच्चे में केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, व्यक्तित्व विकास के हर पहलू का आकलन किया जाना चाहिए।व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करना टेढ़ी-खीर है परन्तु परीक्षा पद्धति में बदलाव लाया जा सकता है। इससे पाठ्यक्रम में भी आवश्यक सुधार होंगे। इस दिशा में काफी अर्से से सोचा जा रहा है, कुछ आगे काम भी हुआ है, पर क्रियान्वयन के बाद उसकी सही देख-रेख नहीं हो पाई है। बच्चे के व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के लिए किताबी शिक्षा के अलावा अन्य क्षेत्रों में उसकी उपलब्धियों पर गौर किया जाए। इसके लिए सभी विद्यालयों, परीक्षा बोर्डों, विश्वविद्यालयों को एकजुट होकर काम करना होगा। बच्चे के मन में ऊंची आमदनी वाले व्यवसायों के प्रति आकर्षण होना सहज समझा जा सकता है। आजकल अभिभावक नए-नए क्षेत्र और उनमें आकर्षक अवसर देखते हैं अत: वे अपने बच्चों के सामने वही आदर्श प्रस्तुत करते हैं। नए-नए रास्ते खुल रहे हैं अत: अत्यधिक आपा-धापी दिखाई दे रही है। अभिभावकों को बच्चों में रुझान की दिशा समझनी चाहिए। जरूरी नहीं कि बच्चा विज्ञान विषय में रुचि रखता हो। हो सकता है कला के विषय उसे अधिक पसंद हों अत: ऐसे बच्चे को जबरदस्ती विज्ञान पढ़ने को बाध्य किया जाएगा तो उसका भविष्य बिगड़ सकता है। इसलिए सर्वप्रथम तो अभिभावकों का नैतिक दायित्व बनता है कि बच्चे के भविष्य की उचित प्रकार चिंता करें न कि उसे मानसिक दबाव का भागीदार बनाएं।10
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