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शिक्षा में असमानता से उपजता है आक्रोश-प्रो. जगमोहन सिंह राजपूतनिदेशक, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्उपभोक्तावादी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण आज दुनिया में भौतिकतावादी विचार हावी हैं। भारतीय संस्कृति में अगर हमने विकास के साथ-साथ मूल्यों पर भी जोर दिया होता तो आज जैसी आपा-धापी दिख रही है वह न होती। परन्तु हमारे समाज ने पश्चिमी आदर्श अपनाकर अपनी संस्कृति के मूल्यों को खत्म कर दिया। आज पर्चा “लीक” और विद्यार्थी वर्ग में बढ़ता मानसिक तनाव इसी संदर्भ में देखा जा सकता है। लेकिन मेरे विचार से आज जो कुछ चल रहा है उसका एक सामाजिक संदर्भ भी है। ऐसे में, जब दिख रहा हो कि गलत तरीके से सब कुछ सुलभ हो जाता है तो माता-पिता और परिवार भी उस रास्ते पर चलने में हिचक महसूस नहीं करते हैं। हमें व्यवस्था पर फिर से लोगों का विश्वास कायम करना है। अगर व्यवस्था में विश्वास हो जाए और लगने लगे कि नहीं, फलां संस्था में गलती हो ही नहीं सकती तो निश्चित रूप से लोग गलत प्रयास नहीं करेंगे। कोशिश होनी चाहिए कि समाज के सभी वर्ग मिलकर सभी संस्थाओं का सम्मान करें और उनमें विश्वास व्यक्त करें क्योंकि ये संस्थाएं देश के भविष्य का निर्माण करती हैं। इसमें सबसे बड़ी भूमिका शिक्षा की ही हो सकती है। आज के परिवेश में लोगों को इंजिनियरिंग और चिकित्सा क्षेत्र के अलावा कुछ और दिखता ही नहीं है। यह बहुत गलत परम्परा है। अगर बच्चा कला विषय में आगे पढ़ना चाहता है तो भी उसके माता-पिता पी.एम.टी. की परीक्षा देने का दबाव डालते हैं। यह गलत है। अधिक दोष तो उन माता-पिता का है जो 10-12 लाख रु. में पर्चा खरीदकर अपने बच्चे को मूल्य-विहीन जीवन में ढकेलना चाहते हैं।समय के साथ शिक्षा में सुधार होने चाहिए थे, पर नहीं हुए। इसका परिणाम यह हुआ कि समाज के समृद्ध वर्ग ने निजी विद्यालयों को तो पैसे के बल पर ऊंचा उठा लिया लेकिन सरकारी पैसे से चलने वाले विद्यालयों पर ध्यान देने वाला कोई नहीं बचा। वहां वे ही बच्चे जाते हैं जो निजी व रसूख वाले विद्यालयों में नहीं जा पाते। 1964-65 में डा. कोठारी आयोग ने सम्मान विद्यालय व्यवस्था की बात की थी। हमारे विद्यालयों की स्थिति खराब होने का कारण यही है कि जो वर्ग उन विद्यालयों को सही कर सकता है, वह उनमें रुचि ही नहीं लेता। निजी और सरकारी विद्यालयों में पढ़ रहे बच्चों के बीच खाई को पाटना जरूरी है। हम कुलीन और निजी विद्यालयों के जरिए समाज में एक नया वर्ग भेद पैदा कर रहे हैं। 10-15 साल बाद इस वर्ग-भेद के कारण जनता में एक आक्रोश पैदा होगा। देश में ऐसे-ऐसे मेडिकल और इंजिनियरिंग कालेज खुल रहे हैं जहां 20-25 लाख रुपए लेकर दाखिला दिया जाएगा। इससे समाज में आक्रोश पैदा होगा ही।9
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