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नेपाल नरेश से भारत सरकार क्या कहेगी?आप लड़ो माओवादियों सेऔर हम उन्हें सहारा देंगे?-प्रतिनिधिनेपाल के एक पर्वतीय क्षेत्र में प्रशिक्षण लेते हुए माओवादीनेपाल में माओवादी आतंकवाद: एक झलककुल मारे गए माओवादी 4,514 माओवादियों की मृत्यु 3,215 कानूनी कार्रवाई 4,691 माओवादियों द्वारा आत्मसमर्पण 16,362 मारे गए नागरिक 664 अपहरण 928 मारे गए सैनिक एवं अन्य सुरक्षाबल 991 स्रोत : रक्षा मंत्रालय (नेपाल), 25 अगस्त, 2002 तकयह एक ऐसी विडम्बना है जो केवल कांग्रेस-कम्युनिस्ट शासन में ही संभव है। एक ओर कम्युनिस्टों के दबाव में केन्द्र सरकार ने आन्ध्र प्रदेश के बर्बर हत्यारे कम्युनिस्ट आतंकवादी संगठन पीपुल्स वार ग्रुप (पी.डब्ल्यू., जी.) से प्रतिबंध हटाकर राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया ही है, तो दूसरी ओर नेपाल को भरोसा दिया जा रहा है कि माओवादियों से लड़ने के लिए भारत सरकार उसका पूरा सहयोग करेगी। इस सम्बंध में जल्दी ही नेपाल नरेश महाराजाधिराज ज्ञानेन्द्र भारत यात्रा पर आने वाले हैं। भारत सरकार की नीतियां नेपाल को भ्रमित ही नहीं कर रही हैं बल्कि उसे उल्टे संदेश भी दे रही हैं। क्योंकि जो सरकार अपने देश में कम्युनिस्ट आतंकवादियों को राजकीय अतिथि गृह में ठहराती है और बाजार-मोहल्लों में उन्हें खुलेआम घूमने की अनुमति देती है वही सरकार उन्हीं आतंकवादियों के सहयोगी माओवादियों को नेपाल में खत्म करने के लिए क्या मदद करेगी? क्या यह सब नेपाल को छलावे में रखने की कोशिश नहीं है? कम्युनिस्ट आतंकवादियों के सामने सरकार ने घुटने टेककर न केवल आंतरिक सुरक्षा के साथ समझौता किया है बल्कि नेपाल की स्थिति कमजोर कर भयावह कूटनीतिक भूल की है।राज्यों में कम्युनिस्ट आतंकवाद से जुड़ी हिंसक घटनाएं(कोष्ठक में कम्युनिस्ट आतंकवादियों द्वारा मारे गए लोगों की संख्या लिखी गई है।)राज्यों के नाम 1-1-02 से 30-6-02 तक 1-1-03 से 30-6-03 तक आंध्र प्रदेश 122(27) 356(77) बिहार 108(37) 123(56) छत्तीसगढ़ 124 (23) 122 (42) झारखण्ड 183(78) 173 (56) मध्य प्रदेश 12 (3) 10 (1) महाराष्ट्र 40 (17) 44 (14) उड़ीसा 31 (-) 25 (2) उत्तर प्रदेश 9 (4) 9 (5) प. बंगाल 8 (2) 3 (-) अन्य राज्य 9 (1) 14 (-) कुल 646(192) 879(253) उल्लेखनीय है कि नेपाल में माओवादी हिंसा के कारण पिछले 8 वर्षों में 10,000 से अधिक निर्दोष लोग मारे जा चुके हैं। फरवरी, 1996 में शुरू हुए इस आतंकवाद में मारे गए लोगों में से 30 प्रतिशत से अधिक पुलिस व सेना के जवान हैं। नेपाल सरकार और माओवादियों के बीच अनेक बार समझौता-वार्ता हुई, युद्धविराम की घोषणा हुई। लेकिन हर बार माओवादियों ने कोई न कोई बहाना बनाकर शांतिवार्ता को बीच में ही तोड़कर और तेजी से हिंसा का खूनी खेल प्रारंभ कर दिया। पिछले दिनों माओवादी नेता प्रचण्ड उर्फ पुष्पकमल दहल ने घोषणा की थी कि उनका दल समझौते के लिए तैयार है, लेकिन शर्त यह रखी कि यह वार्ता संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता में हो। हालांकि भारत नहीं चाहता कि नेपाल में माओवादी समस्या के समाधान के लिए किसी तीसरे पक्ष को शामिल किया जाए और न ही नेपाल सरकार इसके पक्ष में है। फिर भी नेपाल के कुछ प्रतिष्ठित लोग और राजनीतिक दल अपरोक्ष रूप से किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता का समर्थन कर रहे हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ की चर्चा तेजी से बढ़ी है। उधर नेपाल के माओवादी भारत के समर्थन से किसी भी प्रकार के समाधान को स्वीकार करते दिखाई नहीं देते हैं। पिछले दिनों सिलीगुड़ी (भारत) में नेपाल के माओवादी नेता मोहन वैद्य की गिरफ्तारी के बाद नेपाल में जैसी प्रतिक्रिया हुई, उससे कुछ तो सबक सीखना ही होगा। उस समय माओवादियों ने नेपाल में भारतविरोधी प्रदर्शन किए थे और यहां से ज्वलनशील पदार्थ लेकर जा रहे टैंकरों को आग के हवाले कर दिया था।यहां यह भी उल्लेखनीय है कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी तथा भारत के हिंसक माओवादी संगठन-माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एम.सी.सी.) तथा पीपुल्स वार ग्रुप (पी.डब्ल्यू.जी.) के बीच तालमेल है और ये एक-दूसरे को सहायता करते रहे हैं। सिलीगुड़ी गलियारे के माध्यम से नेपाल के माओवादी- एम.सी.सी. तथा पी.डब्ल्यू.जी. को हथियार और आर्थिक मदद पहुंचा रहे हैं। इस साठगांठ की कलई खोलने वाली एक रपट पिछले दिनों प. बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार को भी भेजी गई पर माओवादियों के पालक कम्युनिस्टों ने न केवल उस रपट की अनदेखी की वरन उसे कूड़े के ढेर में फेंक दिया। भारत और नेपाल के माओवादियों के बीच साठगांठ का ही परिणाम है कि सन् 2000 के बाद से नेपाल में माओवादी हिंसा में तेजी आयी है। 17-18 फरवरी, 2002 को नेपाल के अछाम जिले में माओवादियों ने लगभग 136 सुरक्षाकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया था। इस हमले में सैकड़ों माओवादियों ने एकजुट होकर पुलिस चौकी को नेस्तनाबूद कर दिया था। उसी वर्ष 14 नवम्बर को जुम्ला और गोरखा जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में माओवादियों ने हिंसा का नंगा तांडव कर लगभग 300 सुरक्षाकर्मियों को मार गिराया था।नेपाल में माओवादियों को कुचलने में भारत सरकार वैसे भी कोई ठोस कदम नहीं उठा सकती क्योंकि अब वे वामपंथी केन्द्र में प्रमुख हिस्सेदार हैं, जिनके द्वारा शासित पश्चिम बंगाल में सन् 1977 और 2001 के बीच लगभग 43,837 हत्याएं हुईं। औसत लगभग 1735.5 व्यक्ति प्रतिवर्ष का था। कांग्रेस के शासन के दौरान यह संख्या 503 से 533 व्यक्ति प्रतिवर्ष रही। वार्षिक औसत में यह वृद्धि वास्तव में कम्युनिस्ट आतंकवाद के कारण है। पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्टों के शासन के दौरान राजनीतिक शत्रुता के कारण भी बलात्कार की घटनाओं में पर्याप्त बढ़ोत्तरी हुई है। उदाहरण के लिए, सन् 1992-96 के बीच पांच वर्षों में बलात्कार की आधिकारिक संख्या 3712 थी, लेकिन सन् 1997-2001 के बीच यह संख्या बढ़कर 4847 हो गई। सन् 1980-1990 के दौरान औद्योगिक आतंकवाद के चलते फैक्टरियों के बंद होने से आत्महत्याओं की 63 घटनाएं हुईं और सन् 1991-2001 में ऐसी 85 घटनाएं हुईं। वर्तमान में पश्चिम बंगाल में लगभग 19 लाख श्रमिकों वाली 53,000 औद्योगिक इकाइयां बंद हो गई हैं। इस राज्य में 1421 लोगों की भूख और चिकित्सा के अभाव में मृत्यु हुई। एक प्रकार से कम्युनिस्ट उन आम लोगों की मृत्यु पर ही पनप रहे हैं जिन लोगों का उन्हें सत्ता दिलाने में योगदान रहा है। सन् 1982 में कोलकाता के बिजन सेतु पर दिनदहाड़े 18 आनंदमार्गियों को जलाया जाना, सन् 1971 में कोसीपुर में 150 नक्सलियों की हत्या, बर्दवान में सेन भाइयों की हत्या और गरबेटा, केशपुर, नानुर, छोटा अंगरिया में कम्युनिस्टों द्वारा की जा रही लगातार हत्याएं भयावह कम्युनिस्ट आतंकवाद के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।केरल, प. बंगाल, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ (बस्तर) आदि क्षेत्रों में कम्युनिस्ट आतंकवाद ने हजारों निर्दोष भारतीयों की जान ली है, जिनमें प्राय: सभी हिन्दू थे। कम्युनिस्ट आतंकवाद हिन्दू विरोधी ही है। नेपाल में भी माओवादी आतंकवादी हिन्दुओं को ही अपना निशाना बना रहे हैं।कम्युनिस्ट आतंकवादियों द्वारा जून, 2003 तक 9,773 लोगों को मारा जा चुका है। इस प्रकार गत 20 वर्षों में भारत के विभिन्न भागों में 78,210 भारतीय नागरिक कम्युनिस्ट, इस्लामी अथवा चर्च प्रेरित पूर्वांचलीय आतंकवादी संगठनों द्वारा मारे जा चुके हैं। विडम्बना यह है कि पिछले वर्षों में कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़े संगठनों की हिंसात्मक गतिविधियों में लगातार वृद्धि होती रही है। जैसे, सन् 2001 में कम्युनिस्ट हिंसा की 1208 घटनाएं हुईं थीं और 564 लोग मारे गए थे। परन्तु 2002 में 1465 घटनाएं हुईं जिनमें 482 लोग मारे गए। इन हिंसात्मक गतिविधियों तथा उनमें होने वाली हत्याओं में इस वर्ष 30 जून तक क्रमश: 31.06 प्रतिशत और 36.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।37
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