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पाठकीय

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Jun 6, 2004, 12:00 am IST
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दिंनाक: 06 Jun 2004 00:00:00

पञ्चांगसंवत् 2061 वि., वार ई. सन् 2004 आषाढ़ कृष्ण 4 रवि 6 जून ,, ,, 5 सोम 7 ,, ,, ,, 6 मंगल 8 जून ,, ,, 7 बुध 9 “” ,, ,, 8 गुरु 10 “” ,, ,, 9 शुक्र 11 “” ,, ,, 10 शनि 12 “” अंक-संदर्भ -9 मई, 2004सर्वेक्षणों की राजनीति”मीडिया के अलीबाबा” रपट से एक बात साफ हो जाती है कि अधिकांश निजी टी.वी. चैनल कहीं न कहीं पूर्वाग्रह ग्रस्त रहे हैं। कुछ चैनलों के प्रस्तुतीकरण से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि वे भाजपा-विरोधी हैं। गलत सर्वेक्षणों के द्वारा इन्होंने राजग के विरुद्ध माहौल बनाने की कोशिश की। राजनीति-प्रेरित पत्रकारिता का यह स्वरूप निंदनीय व दु:खद है।-शक्तिरमण कुमार प्रसादश्रीकृष्ण नगर, पटना (बिहार)चुनाव पूर्व हो या मतदान बाद, किसी भी सर्वेक्षण को हार-जीत का आधार मानना बिल्कुल गलत है। मतदान प्रक्रिया गुप्त होने के कारण मतदाता सर्वेक्षणकर्ता को सही जानकारी ही देते हैं, यह निश्चित नहीं कहा जा सकता। यदि मतदान कई चरणों में हो रहा हो तब तो मतदान बाद के सर्वेक्षणों पर प्रतिबंध लगाना ही उचित है। इन सर्वेक्षणों का अन्य चरणों में होने वाले चुनावों पर गलत असर पड़ता है।-जयंत कश्यपहीरापुर, धनबाद (झारखण्ड)जनता पाखंडियों को समझती हैचुनावों से पूर्व जो दल आपस में लड़ते रहे, अब एक होने लगे हैं। वे भले ही साम्प्रदायिकता के विरुद्ध संघर्ष की बात करते रहे हों लेकिन वास्तव में उनका उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्ति ही है। इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार हैं। लेकिन जनता उनके इस पाखंड को समझती है।-ममता कुमारबी-20, फैंसी बाजार, गुवाहाटी (असम)जागरूक होता मुस्लिम समाजराष्ट्रनेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मुस्लिम समाज को एकता का संदेश देकर सुलह का रास्ता खोल दिया है। उसी का परिणाम है कि प्रबुद्ध मुस्लिम नेता और विचारक अब यह महसूस करने लगे हैं कि जब तक मुस्लिम समाज देश की मुख्यधारा से नहीं जुड़ेगा, उसका विकास सम्भव नहीं। अब समय ने जो करवट ली है, देश का प्रबुद्ध मुस्लिम समाज उसका लाभ उठाने के लिए तत्पर दिखाई देता है और यह स्वाभाविक भी है।-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)मंथन स्तंभ में श्री देवेन्द्र स्वरूप का आलेख “इतिहास के दोराहे पर खड़ा भारतीय मुसलमान” आंखें खोलने वाला है। देश-विभाजन के समय मुसलमानों का नेता कहलाने वाले जिन्ना व्यक्तिगत जीवन में इस्लाम से कोसों दूर थे। फिर भी मुसलमानों ने उन्हें अपना नेता माना और पाकिस्तान बनाने की मांग का समर्थन किया। कुछ भारतीय मुसलमानों को इस तुष्टीकरण की राजनीति का सच समझना चाहिए। उन्हें सोचना चाहिए कि मुसलमान जिनको अपना नेता मान रहे हैं, वे इस्लाम या मुस्लिम हितों के कितने निकट हैं?-वैद्य विनोद कुमारभूरा, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)माता-पिता भी दोषी”बिना पढ़े पास होने का चस्का” रपट पढ़ी। यह सच है कि पर्चे “लीक” करने वाले जितने दोषी हैं, उतने ही दोषी बच्चों के माता-पिता भी हैं। यदि माता-पिता धन के बल पर अपने बच्चे को उत्र्तीण कराने के लिए इस प्रकार की प्रवृत्ति को बढ़ावा नहीं देंगे तो पर्चे “लीक” कराने वाला व्यक्ति भी इस दिशा में कदम नहीं बढ़ाएगा। कुछ धनी अभिभावक बचपन से ही लालन-पालन में बच्चों को काफी सुविधाभोगी बना देते हैं। वे भूल जाते हैं कि उनको संस्कारित करना, नेकी, ईमानदारी, सच्चाई के रास्ते पर चलने को प्रेरित करना कहीं अधिक जरूरी है।-सावित्री वाष्र्णेयमहापौर, नगर पालिका, अलीगढ़ (उ.प्र.)वर्तमान शिक्षा-व्यवस्था का एकमात्र उद्देश्य पैसा कमाना भर रह गया है। इसलिए माता-पिता व अभिभावक भी सोचते हैं कि येन-केन प्रकारेण परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली जाएं। इससे विद्यार्थियों में भी परिश्रम करने की प्रवृत्ति घटती है। इसका एक दुष्परिणाम यह सामने आ रहा है कि गरीब विद्यार्थियों में निराशा, कुंठा और हताशा घर कर रही है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा के वर्तमान स्वरूप को बदला जाए। जब तक शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण और ज्ञान प्राप्ति नहीं होगा, तंत्र और व्यवस्थाओं को ठीक करने से लाभ नहीं होगा।-सत्यनारायणडीडवाना (राजस्थान)चुनावी हिंसा क्यों?बिहार में लोकसभा चुनावों के दौरान जो हिंसा हुई, उससे कई प्रश्न उठते हैं। चुनावी हिंसा केवल बिहार की ही समस्या नहीं है। आंध्र प्रदेश, प.बंगाल, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के सभी प्रदेश संवेदनशील माने जाते हैं। यदि वास्तव में हमें लोकतंत्र चाहिए तो इन क्षेत्रों में चुनाव निर्विघ्न संपन्न कराने की व्यवस्था करनी होगी। इसके लिए मात्र सुरक्षा बलों की नियुक्ति पर्याप्त नहीं है बल्कि लोगों में चुनाव के प्रति उत्साह जगाना भी आवश्यक है। जनता में स्वस्थ लोकतंत्र का विकास करने की भावना जगाने से ही यह हिंसा रुक सकती है।-सुरेश प्रसादपानागढ़ बाजार, वद्र्धमान (प.बंगाल)ये खर्चीले विवाहोत्सवसामाजिक बुराइयों से सिखों को बचाने के उद्देश्य से सिख जत्थेदारों ने एक संयुक्त बैठक में कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए थे। जैसे, विवाह रात में नहीं, दिन में हों, वरमाला नहीं होगी, बारात में महिलाएं नहीं जाएंगी, विवाह गुरुद्वारों में ही होगा, शुद्ध शाकाहारी भोजन बनेगा, मांसाहार व शराब का सेवन नहीं होगा आदि-आदि। सामाजिक सुधार के लिए ये प्रयास स्वागत योग्य हैं। आजकल विवाह आदि समारोह बेहद खर्चीले होते जा रहे हैं। वैवाहिक आयोजन से कहीं अधिक ये समृद्धि-प्रदर्शन का माध्यम बनते जा रहे हैं। कहीं-कहीं तो मादक पेयों आदि की वजह से हुड़दंग, लड़ाई-झगड़े व कई बार गोली चलने जैसी दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं। सामाजिक सुधार के इस तरह के प्रयास सिर्फ सिखों के लिए न होकर सारे समाज के लिए होने चाहिए। इससे विवाह में होने वाली फिजूलखर्ची पर रोक लगेगी। खर्चीले होते जा रहे विवाहोत्सवों से समाज में अनेक कुरीतियां भी फैल रही हैं। सिख जत्थेदारों ने यह अच्छा प्रयास किया है। समाज के सभी वर्गों को इसका अनुसरण करना चाहिए।-मधु पोद्द-मधु पोद्दारपटेल नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)खोयी पहचान मिलेगीछोड़ निराशा भाजपा, पुन: करे संघर्षउसके हाथों आएगा, फिर से भारतवर्ष।फिर से भारतवर्ष, पुन: जनता में जाएंअपने असली मुद्दे उनके बीच उठाएं।कह “प्रशांत” तब ही खोयी पहचान मिलेगीफिर से जनता सिर-आंखों पर बैठायेगी।।-प्रशांतसूक्ष्मिकावाह-वाहवे उनकीपरवाहबिल्कुल नहीं करतेक्योंकिउनकी बात परवाह-वाहनहीं करते…!!!-अमर पेन्टर “मलंग”गणेश चौक,कटनी (म.प्र.)पुरस्कृत-पत्रस्वस्थ लोकतंत्र के लिए….सामान्यत: लोगों में, चाहे शिक्षित व संपन्न हों या अशिक्षित व गरीब, राष्ट्रीयता, आदर्श, नैतिकता आदि का अभाव ही दिखता है। अधिकांश में पश्चिम की अंधी नकल, भौतिकता व विलासितापूर्ण जीवन जीने की होड़-सी दिखाई देती है। यह स्थिति केवल हमारे नेताओं व उच्चाधिकारियों की ही नहीं बल्कि समाज के आम आदमी की भी होती जा रही है। इसी का परिणाम है कि सब तरफ भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। कहीं परीक्षा के प्रश्नपत्र “लीक” हो जाते हैं, कहीं फर्जी “उपाधियां” बांटी जाती हैं तो कहीं फर्जी नियुक्तियां होती हैं।इन सबके पीछे मुख्य कारण नैतिकता आधारित शिक्षा का अभाव है। ऐसी शिक्षा का अभाव है जो लोगों को आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा दे, उनमें राष्ट्रीयता और आध्यात्मिकता के संस्कार भरे। वर्तमान शिक्षा पद्धति की नींव तो अंग्रेजों द्वारा डाली गई थी, जिसका उद्देश्य ही था भारतीय संस्कृति से कटे हुए “काले अंग्रेजों” की फौज खड़ी करना। राष्ट्र के निर्माण में शिक्षा का स्थान सर्वोपरि होता है, यदि वही दूषित हो गई तो देश का अध:पतन हो जाता है।ऐसी शिक्षा के अभाव में स्वस्थ लोकतंत्र का विकास भी संभव नहीं है। आखिर वैचारिक दृष्टि से अपरिपक्व मतदाता सही प्रत्याशी कैसे चुन सकते हैं? वे प्रत्याशी की योग्यता-अयोग्यता का विचार किए बिना, जाति-मजहब आदि की संकीर्ण सोच को लेकर अपने अमूल्य मत का उपयोग करते हैं। इसलिए स्वस्थ लोकतंत्र और देश के विकास के लिए मूल्याधारित शिक्षा का होना बहुत जरूरी है। जब तक देश का बुद्धिजीवी, चिंतक और शासक वर्ग इस बुनियादी तथ्य को समझकर शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन नहीं करते, देश का समुचित विकास संभव नहीं है।-बाबूराव सोनवणेडी-207, म.प्र. हाउसिंग बोर्डरायपुर नाका, दुर्ग (छत्तीसगढ़)हर सप्ताह एक चुटीले, ह्मदयग्राही पत्र पर 100 रु. का पुरस्कार दिया जाएगा। सं.29

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