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वही गंगाजल हूंडा. पंकज परिमलमटमैला-मटमैला बहुत आजकल हूंअक्लमंद हूं बहुत, जरा-सा पागल हूं,बार-बार तुमने दूषित भी किया मुझेवही सनातन नदी, वही गंगाजल हूं।देखीं कई सभाएं और कई दंगेबड़े जरा परमेश्वर से देखे नंगे,जिन्हें नालियां ही जीवन में सदा रुचीं,उनकी जिह्वा पर भी हूं हर-हर-गंगे।बार-बार मरहम भी तुमने दिया मुझेकहीं तुम्हारी बातों से भी घायल हूं।किया तुम्हारी कई पीढ़ियों का तर्पणनहर-नहर बांटा तूने सारा जीवन,घाट-घाट का पानी पीने वालों नेघाट-घाट से पाट दिया है मेरा तन।बार-बार तेरे मन में आतंक रचूंबढ़ी चलूं निर्बाध, बाढ़ की हलचल हूं।26
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