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-गोपाल सच्चर
हिन्दूविहीन कश्मीर में
निजामे मुस्तफा की तैयारी
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शौकत अजीज के साथ प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह
23नवम्बर, 2004 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शौकत अजीज के भारत आगमन और नई दिल्ली में भारतीय नेताओं के साथ हुई बातचीत को लेकर जम्मू-कश्मीर में विशेष रुचि दिखाई दी, क्योंकि राज्य की जनता आतंकवाद से त्रस्त हो चुकी है। उन्हें लगता है कि पाकिस्तान के साथ बातचीत के परिणामों पर उनका भविष्य निर्भर है।
इस वार्ता में राज्य की जनता की दिलचस्पी इसलिए और भी बढ़ गई है क्योंकि कश्मीर घाटी के अलगाववादियों ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल के श्रीनगर आने के बावजूद भेंटवार्ता के उनके निमंत्रण को ठुकरा दिया था। किन्तु पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से मिलने के लिए हुर्रियत के नेता नई दिल्ली तक पहुंच गए। दूसरी ओर नई दिल्ली ने कश्मीर के सत्तारूढ़ दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.) की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ भोज में शामिल कर लिया। इससे केवल यही जाहिर हुआ कि सारा मामला कश्मीर और केवल कश्मीर तक ही सीमित होकर रह गया था।
इसी वजह से जम्मू तथा लद्दाख के लोगों में चिन्ता का उत्पन्न होना स्वाभाविक है, क्योंकि इस संबंध में किसी भी निर्णय का प्रभाव सबसे ज्यादा उन पर ही पड़ने वाला है।
जम्मू तथा लद्दाख के लिए चिन्ता का एक विषय और भी है। केन्द्र सरकार कोई स्पष्ट नीति अपनाने की बजाय पाकिस्तान तथा अलगाववादियों के साथ राज्य को स्वायत्तता दिए जाने पर विचार करने लगी है और 1953 से पहले की स्थिति बहाल करने की भी चर्चा होने लगी है। इससे देश की अखण्डता के लिए संघर्ष करने वाले देशभक्तों को धक्का पहुंचा है, क्योंकि ये लोग देश के बाकी हिस्से के साथ जम्मू-कश्मीर की एकजुटता के रास्ते में आने वाले सभी अवरोधों को दूर करने का भरसक प्रयास करते रहे हैं। इसलिए इन लोगों ने, विशेषकर जम्मू और लद्दाख की जनता ने इस पहल का कड़ा विरोध किया है।
देश की एकजुटता के प्रति चिंतित लोगों का यह भी कहना है कि केन्द्र को पाकिस्तान के साथ इस राज्य के बारे में बातचीत करते समय बड़ी सतर्कता से काम लेने की आवश्यकता है। बातचीत से पहले राज्य में सुरक्षाबलों की संख्या घटाना, स्वायत्तता की चर्चा करना और फिर अलगाववादियों को पाकिस्तानी नेतृत्व के साथ बात करने की छूट देना स्पष्ट करता है कि भारत के इस भाग में देश की संप्रभुता को कमजोर किया जा रहा है तथा पाकिस्तान को इस सारे विवाद में एक पक्ष बनाया जा रहा है।
इस सबके बावजूद पिछले कुछ समय के घटनाचक्र से यही दिखाई पड़ रहा है कि दोनों पड़ोसी देशों की जनता आपस की उन दूरियों को दूर होते देखना चाहती है, जो कुछ राजनीतिज्ञों के कारण उत्पन्न हुई हैं।
कश्मीर में क्या हुआ?
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शौकत अजीज की भारत यात्रा से ठीक पहले प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह दो दिन के लिए कश्मीर में थे। वहां उनके द्वारा घोषित महत्वाकांक्षी “पुनर्निर्माण योजना” ने राज्य के वासियों को भ्रमित तथा निराश ही किया है। प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 24,000 करोड़ रु. के आर्थिक पैकेज के अंतर्गत यह “पुनर्निर्माण योजना” बड़ी दिलचस्प है। छानबीन के बाद पता चला है कि इस पैकेज के तहत जिस जल विद्युत परियोजना पर 15,000 करोड़ रु. खर्च होने हैं उस पर राज्य में पहले से काम चल रहा है। इनमें दुल्ाहस्ती, बघलियर, सेवा हाइडल, सल्लु तथा अन्य परियोजनाएं शामिल हैं। इन सभी परियोजनाओं पर पिछले 20-25 वर्षों से काम चल रहा है। उदाहरण के तौर पर दुलहस्ती की 390 मेगावाट ऊर्जा का निर्माण करने वाली महत्वाकांक्षी परियोजना। 14 अप्रैल, 1983 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के हाथों इसकी नींव का पत्थर रखा गया था। इस पर अब तक करीब 4,500 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं, लेकिन यह परियोजना आज तक क्रियान्वित नहीं हुई है।
प्रधानमंत्री ने 24,000 नई नौकरियों के निर्माण तथा नई भर्तियों पर लगी रोक हटाने की भी घोषणा की है। 24,000 नए पदों में से 14,000 पद आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के होंगे, जिनकी नियुक्ति गांवों में की जाएगी। अन्य नई रिक्तियों के अंतर्गत 5000 जवानों वाली भारतीय रिजर्व पुलिस की पांच बटालियनों और केन्द्रीय रिजर्व पुलिस की भी पांच बटालियनों का गठन करना शामिल है।
डा. मनमोहन सिंह ने घाटी से पलायन के बाद जम्मू तथा अन्य क्षेत्रों में बसे कश्मीरी हिन्दू परिवारों को दो कमरों के मकान प्रदान करने की भी घोषणा की है। पर उन्होंने इन विस्थापितों को दुबारा उनके घरों या कश्मीर घाटी में ही अन्यत्र कहीं बसाने के बारे में कोई बात नहीं की। हालांकि इस दिशा में कुछ समय पूर्व 2,800 करोड़ रुपए की कार्ययोजना भी तैयार की गई थी तथा बड़गाम और अन्य क्षेत्रों में निर्माण कार्य शुरू भी हो चुका था।
कश्मीरी हिन्दुओं के घाटी लौटने के बारे में प्रधानमंत्री की चुप्पी ने भविष्य की योजनाओं के संदर्भ में कई आशंकाएं पैदा की हैं, क्योंकि लोग यह मानते हैं कि विस्थापितों का आदर के साथ घाटी में लौटना न केवल विस्थापितों के हित में होगा बल्कि राज्य के लिए भी सम्मान की बात होगी। वरना, साबित यही होगा कि सरकारी योजनाएं उन्हीं के हित में बनी हैं जो कश्मीर को निजामे मुस्तफा बनाना चाहते हैं।
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