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उर्दू अखबारों ने लिखास्वामी जी की गिरफ्तारी”बाबरी ध्वंस” से बड़ी घटना है-शाहिद रहीम11 नवम्बर, 2004 की संध्या को कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती की गिरफ्तारी की खबरें मिर्च-मसाले के साथ पाठकों को परोसने में उर्दू अखबार भी किसी से पीछे नहीं हैं। परन्तु दो बातें विशेष तौर पर उभरकर सामने आई हैं एक तो यह कि शंकराचार्य के अस्तित्व की महत्ता के सवाल उठाए जा रहे हैं और उन्हें संविधान के समक्ष आम नागरिक के बराबर माना जा रहा है। दूसरी बात यह है कि उनकी गिरफ्तारी के लिए जयललिता सहित भाजपा को भी दोषी ठहराया जा रहा है। ज्यादातर अखबार स्वामी जी को “धीरेन्द्र ब्राहृचारी” जैसा साधारण और राजनीतिबाज व्यक्ति मानते हैं और यह निश्चित करके बहस कर रहे हैं कि उन्हें गिरफ्तार करने से पहले तमिलनाडु पुलिस ने सौ बार सोचा होगा, परन्तु प्रमाण ठोस थे, इसलिए कानून का पालन करना ही पड़ा। नई दुनिया, दिल्ली के अनुसार, स्वामी जयेन्द्र सरस्वती के कहने पर धर्मान्तरण के खिलाफ कानून बनाने वाली मुख्यमंत्री जयललिता के पास उनके दोषी होने के ठोस प्रमाण मौजूद हैं। यद्यपि यह अखबार राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को भी पूरी ईमानदारी से रेखांकित करता है। अखबार ने लिखा है कि 1980 ई. में मीनाक्षीपुरम के हरिजनों ने इस्लाम स्वीकार लिया और मुसलमान बन गए, उन्हें दुबारा हिन्दू बनाने में स्वामी जी ने अपनी तमाम शक्ति झोंक दी। “शक्ति रथम” के नाम से दक्षिण भारत के गांव-गांव की यात्रा की, हरिजनों के लिए “विकास संगठन” और मंदिरों का निर्माण किया और अपने अनुयायिओं को आदेश दिया कि हरिजन मंदिर में नहीं आ सकते तो, हम मंदिर लेकर उनके पास जाएंगे। (21-27 नवम्बर-पृ. 3,4,26)जमायत-ए-इस्लामी, के अद्र्ध-साप्ताहिक अखबार “दावत” ने अपने 25, नवम्बर के संपादकीय में स्वीकार किया है कि “स्वामी जयेन्द्र सरस्वती के” “सामाजिक अस्तित्व” को नकारा नहीं जा सकता, उनका “माननीय” होना भी सभी संदेहों से ऊपर है।”मुम्बई के प्रसिद्ध दैनिक “इन्कलाब” का मत है कि “मंदिरों के न्यास पर कब्जा करने की घिनौनी राजनीति के दौर में कुछ भी संभव है। जयललिता भी यही मानती हैं, और इसीलिए वह अपना प्रभाव जो शंकराचार्य का सहयोग करने के कारण खराब हो गया था उसे बदलने में लग गई हैं।” (21 नवम्बर, पृ.-9)इसी अखबार में इस विषय पर प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक “हसन कमाल” की पंक्तियों को जाने बिना “उर्दू मीडिया” का “दष्टिकोण” समझा नहीं जा सकता। “कमाल” का मत है- “हिन्दुस्थान की मजहबी तारीख (धार्मिक-इतिहास) में स्वामी जी की गिरफ्तारी, “बाबरी ध्वंस” से बड़ी घटना है। इससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद् और हिन्दुत्ववादियों में भूचाल आ गया है।”कोलकाता और दिल्ली से एक साथ प्रकाशित होने वाले दैनिक “अखबार-ए-मश्रिक” ने अपने 24 नवम्बर के सम्पादकीय में एक अलग ही दृष्टिकोण स्थापित किया है कि “हिन्दुस्थान के तमाम राजनीतिक दल इस समय जयललिता के साथ हैं। कांग्रेस, लोक जनशक्ति पार्टी और वामपंथी दलों से लेकर द्रविड़ पार्टियों तक सभी का मानना है कि “कानून” को अपना काम करने की आजादी दी जानी चाहिए, कोई भी व्यक्ति “कानून” से ऊपर नहीं है। जहां तक दक्षिण पंथी दलों का सवाल है तो उन्हें पांच वर्ष की खुली अवधि मिली थी, वे राममंदिर निर्माण की दिशा में कुछ ठोस काम कर सकते थे, पर सच्चाई यह है कि वे कुछ करना ही नहीं चाहते। हालांकि जयललिता ने शंकराचार्य की गिरफ्तारी करवा कर “भाजपा” को करने के लिए काम दे दिया है, वर्ना काम के अभाव में वे आपस में ही लड़ते रहते और “उमा भारती” काण्ड की पुनरावृत्ति होती रहती। अब तो जयललिता से किसी बड़े समझौते के बिना न तो शंकराचार्य की रिहाई संभव है, न भाजपा का राजनीति की मुख्यधारा में आना”। (हिन्दुस्थान समाचार)10
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