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लेफ्टिनेंट अर्जुन रे को कम्प्यूटर के प्रपत्र सौंपते हुए रा.स्व. संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन। चित्र में बाएं हैं सम्पादक श्री तरुण विजय व सबसे दाएं भारत प्रकाशन के तत्कालीन अध्यक्ष श्री सत्यनारायण बंसलपाञ्चजन्य के सेवा काय1. अयोध्या हुतात्मा निधि – 7,01,597 रु.2. पाञ्चजन्य कारगिल विजय कोष- 7,80,640 रु.कुल – 14,82,217 रु.लगभग 56 वर्षों से राष्ट्रीयता का स्वर मुखरित करने वाला साप्ताहिक पाञ्चजन्य ने भी आपदा के समय समाज सेवा के लिए हाथ बढ़ाए। पूर्व केन्द्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री जगमोहन के शब्दों में, “पाञ्चजन्य में वैसे समाचार मिलते हैं, जिन्हें दूसरे अखबार उपेक्षित करते हैं।” इसी प्रकार पाञ्चजन्य भी उन लोगों की सहायतार्थ आगे आता है, जिन्हें दुनिया अछूत मानती है। वर्ष था 1990 का और अयोध्या आन्दोलन जोरों पर था। उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह सरकार ने 30 अक्तूबर और 2 नवम्बर को अयोध्या में रामभक्तों पर गोली चलवा दी। इससे अनेक रामभक्त शहीद हो गए। इस घटना के बाद पाञ्चजन्य ने “अयोध्या हुतात्मा निधि” नाम से अपने पाठकों से धनराशि एकत्रित की। अल्प समय में ही इस निधि में 7,01,597 रु. की राशि जमा हो गई और यह राशि शहीद रामभक्तों के आश्रितों को सौंपी गई। इसके बाद पाञ्चजन्य 1999 में पुन: सेवा के क्षेत्र में उतरा। कारगिल युद्ध से प्रभावित वीर जवानों के परिजनों को सहायता पहुंचाने के उद्देश्य से इस पत्र ने “पाञ्चजन्य विजय कोष” की स्थापना की। इस कोष में 7,80,640 रुपए जमा हो गए। यह राशि भी एक स्वयंसेवी संस्था के माध्यम से वीर शहीद सैनिकों के परिजनों तक पहुंचाई गई। इतना ही नहीं पाञ्चजन्य ने विजय कोष की राशि से खरीदे गए 5 कम्प्यूटर 17 अक्तूबर, 2001 को 14वीं कोर के जनरल अफसर कमांडिग (जी.ओ.सी.) लेफ्टिनेंट जनरल अर्जुन रे को लद्दाख में तैनात सैनिकों के लिए भेंट किए।20
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