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इन्हें क्या कहें?
गत दिनों कोलकाता में एक कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री भी उपस्थित थे। जब उन्हें पता चला कि कार्यक्रम में सरस्वती-वन्दना भी गायी जाएगी तो वे यह कहते हुए सभास्थल से चलते बने कि यह भारत के सेकुलर स्वरूप के विरुद्ध है। कम्युनिस्टों का ऐसा करना और कहना कोई नई बात नहीं है। लेकिन चिन्तनीय बात यह है कि जिस बंगाल में दुर्गा, काली और सरस्वती की पूजा हर गली में होती है, वहां के मंत्री ऐसा क्यों करते हैं? स्पष्ट है उनकी इस मानसिकता के पीछे वोट-बैंक की राजनीति काम करती है। वोट पाने के लालच में इनकी मानसिकता यह हो गई है क जानबूझकर ऐसे कार्यक्रमों में जाओ और किसी प्रार्थना की आड़ में मीडिया के आकर्षण का केन्द्र बनो। और जब ये मीडिया की नजर में आ गए तो अपने मतदाताओं के बीच भी पहुंच गए।
शराब बनाम मौत
देश के पिछड़े राज्यों में से एक उड़ीसा में अवैध शराब का धंधा जोरों पर है। एक ओर जहां शराब से होने वाली आय के लिए राजनीतिज्ञ शराब को खुली छूट दिए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर आबकारी विभाग की ढिलाई के कारण पूरे राज्य में अवैध शराब के ठेके धड़ल्ले से चल रहे हैं। इस अवैध शराब को पीने के कारण निरन्तर लोगों की मौतें भी हो रही हैं। वस्तुस्थिति तो यह है कि शराब से राज्य के राजस्व में जितने प्रतिशत की वृद्धि हुई, उससे दस गुणा लोगों की अवैध शराब के कारण मृत्यु हो चुकी है। 1992 में कटक में 206 लोगों की शराब के कारण मौत होने के बाद से ये मौतें आज भी जारी हैं। हालांकि कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने इस ओर ध्यान दिया है और कुछेक गांवों में स्थानीय लोगों की जागरुकता से शराबबंदी करवाने में सफलता भी मिली है परन्तु सरकार द्वारा इस पर ध्यान न देने के कारण आज भी अवैध शराब के कारण मौतें हो ही रही हैं।
नेपाल में गतिरोध
एक उम्मीद जगी थी कि माओवादियों के वार्ता की मेज पर आने के बाद नेपाल में लम्बे समय से चली आ रही राजनीतिक उठापटक और हिंसाचार पर लगाम लग जाएगी। लेकिन दो दौर की वार्ता के बाद फिर रूकावट आ गई। माओवादी नेता प्रचण्ड ने इस गतिरोध के लिए सरकार पर आरोप मढ़ते हुए कहा कि उसने विदेशी शक्तियों के साथ सांठ-गांठ करके संघर्ष-विराम को खत्म किया है। प्रचण्ड ने इसमें काठमांडू स्थित अमरीकी राजदूत माइकल मैलिनोवस्की का नाम लिया। माओवादी कहते हैं वार्ता में गतिरोध उनके कारण नहीं हुआ है।
उधर नेपाली कांग्रेस के नेता राम शरण महत ने कहा कि चूंकि माओवादी कम्युनिस्ट विचारों से प्रेरित हैं अत: उनके वार्ता की मेज पर लौटने के आसार अत्यंत क्षीण हैं। अन्तरराष्ट्रीय संगठन रिवोल्यूशनरी इंटरनेशनल मूवमेंट से जुड़े माओवादी शांति वार्ता में वि·श्वास नहीं रखते। महत ने शांतिवार्ता से माओवादियों के बाहर जाने के समय पर टिप्पणी की कि 4 सितम्बर को पांच दलों के आंदोलन के शुरू होते ही उन्होंने वार्ता से मुंह क्यों मोड़ा? माओवादी इस आंदोलन में रोड़े अटकाना चाहते हैं।
जल्लाद की तलाश में बिहार सरकार
बिहार सरकार एक विचित्र समस्या में फंस गई है। उसे कोई जल्लाद नहीं मिल रहा है जो सर्वोच्च न्यायालय से मृत्युदंड प्राप्त पांच अपराधियों को फांसी पर लटका सके। कुछ दिनों पूर्व ही भागलपुर जेल में बंद पांच अपराधियों की याचिका को जब सर्वोच्च न्यायालय ने ठुकरा दिया, तब एक जल्लाद की तलाश प्रारम्भ हुई। जेल अधिकारियों की कठिनाई यह है कि जेल के जल्लाद की एक वर्ष पूर्व मृत्यु हो गई है और उसके परिवार के लोग इस कार्य को करने के लिए तैयार नहीं है। इससे पूर्व अन्तिम मृत्युदंड 2000 में दिया गया था और उसके लिए भागलपुर के ही बाबुपूर गांव के एक व्यक्ति को अस्थायी तौर पर रखा गया था। जल्लादों की नई पीढ़ी इस प्रकार एक दिन के लिए कार्य करने की बजाय स्थायी नौकरी चाहती है। सरकार के सामने मुश्िकल यह है कि अभी 30 और अपराधी ऐसे हैं जिन्हें मृत्युदंड मिला है और उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की हुई है। यदि उनकी याचिकाएं निरस्त हो जाती हैं तो राज्य सरकार पर मृत्युदंड शीघ्र देने का दबाव और बढ़ जाएगा। फिलहाल तो अनेक हत्याओं के अपराधी कुंअर पासवान, कृष्णा मोची, नंदलाल मोची, धर्मेंद्र सिंह और दुर्गावती जेल में फांसी लटकाए जाने की प्रतीक्षा में हैं।
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